Tuesday, October 9, 2012

जीजाजी घोटाला: सच सामने आए

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा ने अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज तो किया है लेकिन आरोपों की न्यायिक जांच संबंधी मुद्दे पर उनका मौन आश्चर्यजनक है। वाड्रा का कहना है कि केजरीवाल और प्रशंात भूषण ने सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए गलत, अवमाननापूर्ण और आधारहीन आरोप लगा कर उनका और उनके परिवार का नाम बदनाम करने की कोशिश की है। एक दिन पूर्व ही वाड्रा ने कहा था कि सभी तरह की नकारात्मकता से निबट सकते हैं। इस बीच डी एल एफ ने भी केजरीवाल और भूषण के आरोपों को खारिज किया था। केजरीवाल और भूषण का कहना है कि डी एल एफ ने वाड्रा को सरकार से फायदों के एवज में बिना गारंटी के धन दिया था। डी एल एफ ने जोर दिया हेै कि उसका वाड्रा के साथ एक उद्यमी के रूप में पारदर्शी सौदा हुआ था। डी एल एफ के बयान और वाड्रा द्वारा किए गए पलटवार से केजरीवाल और भूषण का रत्तीभर प्रभावित नहीं दिखना तथ्यों को लेकर उनके आत्म विश्वास को दर्शा रहा है। केजरीवाल ने डी एल एफ के बयान को आधा सच निरूपित कर दिया है। उनका यह कहना गलत नहीं है कि वाड्रा को उठाए गए सवालों के जवाब देना चाहिए। इस बीच केजरीवाल और भूषण के लिए मनोबल बढ़ाने वाला घटनाक्रम यह हुआ कि वाड्रा पर लगाए गए आरोपों को भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के विरूद्ध एक मुद्दे के रूप में भुनाने की कोशिश शुरू कर दी । उधर, सामाजिक कार्यकर्ता ने तक केजरीवाल को समर्थन कर दिया है। अन्ना का कहना है कि वाड्रा पर लगाए गए आरोपों की न्यायिक जांच होनी चाहिए। केजरीवाल और भूषण द्वारा वाड्रा की घेराबन्दी की कोशिश ने कांग्रेस के विरोधी दलों को एक बार फिर सक्रिय कर दिया है। यह मुद्दा आने वाले दिनों में कांग्रेस के बड़ा सिरदर्द साबित हो तो आश्चर्य नहीं होगा। कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार के लिए दूसरा कार्यकाल वैसे भी कांटों भरी राह पर चलने जैसा साबित होता रहा है। उस पर घोटालो और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं। इन में से किसी भी आरोप का जवाब दमदारी से देने में कांग्रेस और उसकी मनमोहन सरकार कहां कामयाब हो पाई? ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि भ्रष्टाचारियों के बीच फंसे बेबस इंसान जैसी नजर आने लगी है। अबतक राजनीतिक विरोधी ही कांग्रेस और कांग्रेसियों की खिचाई करते रहे हैं परंतु वाड्रा पर केजरीवाल कंपनी का सीधा हमला 10 जनपथ भक्तों के होश उड़ा दिने के लिए पर्याप्त है। यही कारण है कि वाड्रा पर आरोप लगते ही एक वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री वाड्रा के बचाव की मुद्रा में आ गए। कांग्रेस के बड़बोले प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी केजरीवाल और भूषण के आरोपों को असत्य करार दिया है। सरकार और कांग्रेस दोनों ही वाड्रा की ओर से युद्ध के लिए तत्पर हैं? जबकि आरोप वाड्रा पर लगें है इसलिए उनका सामना करने की जिम्मेदारी भी वाड्रा पर है। वाड्रा सीना ठोंक कर क्यों नहीं कहते कि वह किसी भी प्रकार की जांच के लिए तैयार हैं। फिर उनके समक्ष कानूनी विकल्प भी है। अगर केजरीवाल के आरोप असत्य हैं तब वाड्रा उन पर मुकदमा ठोंकें । वाड्रा के बचाव में सरकार के लोगों के बयान और कांग्रेसियों की मोर्चाबंदी देशवासियों के मन उठ रहे सवालों का उत्तर नहीं दे पा रही है। इस बात में क्या गलत होगा यदि पिछले पांच वर्षों में राबर्ट वाड्रा द्वारा अर्जित सम्पत्ति की जांच की जाती है। वाड्रा की हैसियत आम आदमी जैसी नही है। वह सत्ताधारी पार्टी की अध्यक्ष के दामाद हैं। उनकी स्थिति नाजुक है। वाड्रा की किसी भी चूक या गलती के साबित होने की स्थिति में इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। केजरीवाल और प्रशांत भूषण को कच्चा खिलाड़ी मानने की गलती भी नहीं की जानी चाहिए। नियम और कानूनों की उन्हें खासी जानकारी है। वाड्रा के विरूद्ध मोर्चा खोलने से पहले तथ्यों को लेकर वे अवश्य आश्वस्त हुए होंगे। केजरीवाल ने डी एल एफ के बयान को आधा सच बताया है, जाहिर है कि उनके पास कुछ और जानकारी है। कहते है,धुआं उठा हो तो आग अवश्य होगी। वाड्रा पर लगे आरोपों का जवाब सिर्फ तथ्यपूर्ण उत्तर से ही संभव है। लोगों के मन में वाड्रा को लेकर पैदा हुए संदेह का शीघ्र निवारण जरूरी है अन्यथा इसको विश्वास में बदलने में कितनी देर लगेगी?

No comments: