Tuesday, October 9, 2012
मान का सम्मान नहीं करने वालों को मानद रैंक क्यों?
खिलाडिय़ों और ग्लैमर वल्र्ड से जुड़े लोगों को मानद रैंक देने से कम से कम वायु सेना ने तौबा कर ली है। यदि वायुसेना के एक शीर्ष अधिकारी के हवाले से आई खबर पर विश्वास करें तब साफ हो जाएगा कि ऐसी हस्तियों को मानद रैंक देने का कोई मतलब नहीं होता जो इसका महत्व नहीं जानतीं तथा उनका सम्मान करने से सेना को कोई लाभ तक नहीं मिलता। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को वायुसेना ने लगभग दो वर्ष पहले ग्रुप कैप्टेन का मानद रैंक प्रदान किया था। इसी तरह क्रिकेट कप्तान महेंद्रसिंह धोनी को लेफ्टिनेंट कर्नल का मानद रैंक दिया गया था। सेना के सूत्रों के अनुसार दोनों ने मानद रैंक प्राप्त करने के बाद एक बार भी पलटकर नहीं झांका। पिछले दो वर्षों के दौरान उनके इस उदासीन व्यवहार से ऐसा प्रतीत हुआ मानों सेना द्वारा प्रदत्त मानद रैंक स्वीकार करके उन्होंने सेना पर ही अहसान किया हो। उल्लेखनीय है कि खिलाडिय़ों और ग्लैमर वल्र्ड के लोगों को सेना मानद रैंक से सम्मानित करती रही है। पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिल देव को सन 2008 में टेरिटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल के रैंक से सम्मानित किया जा चुका है। टेरिटोरियल आर्मी के विज्ञापनों और होर्डिंग्स में कपिलदेव की तस्वीर छपती रही है। टेरिटोरियल आर्मी के कार्यक्रमों में कपिलदेव शामिल होते रहे हैं। दक्षिण भारत के फिल्मी सुपर स्टार मोहनलाल और शूटर अभिनव बिन्द्रा को भी सेना ने मानद रैंक प्रदान किए हैं। सेना द्वारा मानद रैंक से सम्मानित हस्तियों में और भी नाम हैं। ऐसे लोगों को मानद रैंक देने के पीछे मकसद युवाओं को सेना की ओर आकर्षित करना रहता है। वे युवा पीढ़ी के लिए पे्ररणा के स्रोत की तरह होते हैं। सेना के इस प्रयोग की सफलता के आंकड़े जुटाना लगभग असंभव काम होगा। यह जानकारी भला कैसे एकत्र की जा सकती है कि सेना में शामिल युवकों में से कितनों ने इन हस्तियों से प्रेरणा ली थी। वायुसेना के उस अधिकारी ने जिस अंदाज में धोनी और तेंदुलकर के उदासीन रवैये के प्रति अप्रसन्नता व्यक्त की है उसके बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सम्मान किस का होना चाहिए? सीधी सी बात है जो सम्मान का मान रखे उसी का सम्मान किया जाए।
धोनी और तेंदुलकर ने पूरी ठसक के साथ क्रमश: थल सेना और वायुसेना की वर्दी पहन कर रैंक प्राप्त किए थे। उस कार्यक्रम की तस्वीरें आज भी लोगों का याद होंगी। आज वायुसेना के अधिकारी बता रहे कि रैंक लेने के बाद से धेानी और तेंदुलकर ने पलट कर नहीं देखा। खिलाडिय़ों का ऐसा रवैया वाकई निराशाजनक और खीझ पैदा करने वाला है। सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल और ग्रुप कैप्टेन के पदों का अपना खासा महत्व है। इनकी अपनी गरिमा है। सेना के किसी भी अंग के लोग ही बता सकते हैं कि संबंधित ओहदा पाने के लिए उन्होंने कितना परिश्रम और त्याग किया है। आप कितने भी बड़े तीस मार खां हो सकते है लेकिन अनुशासित बलों का हिस्सा बनना आसान नही होगा। अनुशासित बलों में शामिल होने के लिए एक कड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। वहां कड़े अनुशासन का पालन करना होता है। धोनी और तेंदुलकर की अपनीं व्यस्तताएं होंगी। खेल और विज्ञापनों से कमाई की जुगत में लगीं इन दोनों क्रिकेट हस्तियों के पास समय कहां है जो वे कुछ और सोचें। हां, उनसे यह अवश्य पूछा जा सकता है कि जनाब,आपके पास समय नही था तो मानद रैंक प्रस्ताव को स्वीकार क्यों किया था? हमारे यहां कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने किसी मानद पद को स्वीकार तो कर लिया किन्तु उससे जुड़ी जिम्मेदारियों और दायित्वों के निर्वाह के प्रति वे गम्भीर नहीं दिखे। पिछले चार दशक के दौरान अनेक फिल्मी हस्तियों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया जा चुका है। यह शोध का विषय हो सकता है कि इनमें से कितने लोगों ने राज्यसभा की कार्रवाई में भाग लेकर स्वयं को एक जिम्मेदार सदस्य या नागरिक साबित किया? गायिका लता मंगेशकर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने राज्यसभा की किसी बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। साफ बात है कि रूचि नहीं है तो इस तरह के प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं करने चाहिए। भाजपा लहर में चुनाव जीत कर फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र भी लोकसभा में जा पहुंचे थे। फिल्मी पर्दे पर सैंकड़ों बार गरजते रहे धर्मेन्द्र की लोकसभा में आवाज सुनने के लिए लोग तरस गए। बहरहाल, यहां मुद्दा सेना के पदों की गरिमा बनाए रखने का है। तेंदुलकर और धोनी के उदाहरणों के चलते खिलाडिय़ों और ग्लैमर वल्र्ड के लोगों को मानद रैंक नहीं देने का फैसला सही है। वायुसेना अधिकारी की टिप्पणी पर धोनी और तेंदुलकर के पास सफाई में कहने के लिए कुछ है?
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