Thursday, November 10, 2016

बड़े और कड़े फैसले अचानक ही लिए जाते हैं (अनिल बिहारी श्रीवास्तव) 500 और 1000 के नोट अचानक बंद किए जाने की घोषणा के साथ ही प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया था। जो लोग अर्थ शास्त्र पर अधिकार रखते हैं और जिन्हें काले धन के खतरों की समझ है वे तो बोल ही रहे थे लेकिन इसके साथ उन लोगों ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिन्हें अर्थतंत्र की विशेष समझ नहीं है, जिन्होंने काले धन के बारे में सिर्फ सुना है और उसके दुष्प्रभाव को कभी प्रत्यक्ष तौर महसूस नहीं किया। प्रधानमंत्री के कदम का मोटे तौर पर स्वागत ही किया गया है। राजनीतिक कारणों से कुछ दलों और नेताओं ने दबी जुबान से समर्थन किया तो किसी ने स्वागत के साथ फैसले से जुड़ी खामियों गिना दीं। यहां दो प्रतिक्रियाओं का उल्लेख करना जरूरी लग रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उन्हें आम आदमी की परवाह नहीं है। इस तरह फैसला लिए जाने से किसानों, छोटे दुकानदारों और गृहणियों के लिए अत्यंत अस्त-व्यस्त करने वाली स्थिति पैदा हो गई है। असली अपराधी रियल एस्टेट या विदेशों में छुपाकर रखे गए अपने कालेधन से चिपककर बैठे हैं। बहुत बढिय़ा श्रीमान मोदी! गौरतलब है कि राहुल की प्रतिक्रिया से पहले कांगे्रस के कुछ बड़े नेता संतुलित अंदाज में मोदी के फैसले का स्वागत कर चुके थे। बहरहाल, दूसरी प्रतिक्रिया का उल्लेख करना जरूरी है। यह एक नितांत अल्प शिक्षित कड़ी मेहनत कर अपने परिवार को चलाने वाली महिला लक्ष्मी(परिवर्तित नाम) की है। यह महिला घरों में खाना बनाने का काम करती है। सुबह सात बजे से रात नौ बजे तक उसे खटते देखा जा सकता है। 9 नवम्बर की सुबह कहती सुनी गई- मोदी(जी) ने बढिय़ा काम किया है। उन्होंने काली कमाई वालों को जोरदार तमाचा मारा है। प्रधानमंत्री के फैसले के चलते लक्ष्मी को हुई चिन्ता सिर्फ इस बात की है कि उसकी झुग्गी में रखे पांच-पांच सौ के दो नोटों को बदलने बैंक तक जाना पड़ेगा परन्तु वह खुश है। दोनों ही प्रतिक्रियाओं में कितना अंतर है। दोनों व्यक्तियों की शिक्षा, स्तर और बौद्धिक समझ में जमीन-आसमान सा अंतर है। एक को प्रधानमंत्री के फैसले पर कथित शंकाएं हैं और दूसरे को प्रधानमंत्री पर भरोसा है। दरअसल, राहुल गांधी की प्रतिक्रिया में मैदानी वास्तविकताओं का अभाव दिखाई देता है। उसके पीछे कारण राजनीतिक हो सकता है। इस तरह के गम्भीर और चिंतन योग्य विषय पर कुछ भी कहने के पहले हवा का रुख देखना उचित होता है। कांगे्रस उपाध्यक्ष दीवार पर लिखी इबारत तक ठीक से क्यों नहीं पढ़ पा रहे हैं। अधिकांश उद्योगपतियों, अर्थशास्त्रियों, व्यावसायियों, राजनीतिक दलों तथा राजनेताओं और आम लोगों ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उधर, मोदी के आलोचकों की प्रतिक्रियाएं देखने पर तर्क की बजाय उनकी खीझ अधिक सामने आती है। यह खीझ सिर्फ राजनीति से जुड़े लोगों तक सीमित नहीं थी। इसकी झलक मीडिया के एक वर्ग में तक में देखी गई जो मोदी का राष्ट्र के नाम सम्बोधन खत्म होते ही नाक-भौंह सिकोडऩे लगा था। फैलाए गए भ्रम का प्रभाव था कि पेट्रोल पम्पों और एटीएम में लोगो की ऐसी लाइनें लगीं कि दूसरे दिन शाम तक कम नहीं हो सकीं। वित्तमंत्री अरूण जेटली की इस बात से कौन सहमत नहीं होगा कि सरकार के इस फैसले से कालेधन के कारोबारियों पर प्रभावी लगाम कस सकेगी। इससे आतंकवाद, मादक पदार्थों के कारोबार, कालाधन और भ्रष्टाचार में लिप्त तत्वों पर सीधी चोट पड़ी है। साथ ही दो नंबर में धन के लेने-देने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगने के साथ बैंकिं ग क्षमता में वृद्धि होगी। कुछ लोगों को शिकायत है कि सरकार ने 500 और 1000 के नोट बंद करने से पहले पर्याप्त समय नहीं दिया। वे आम आदमी की कथित मुश्किलों को गिना, ट्वीट कर और कुछ टीवी चैनलों पर नकारात्मक बहसों में भागीदारी कर माहौल बिगाडऩे की कोशिश करते दिखाई दिए। यह कारस्तानी कल रात से ही शुरू कर दी गई थी। क्या ऐसी हरकतों से सरकार के फैसले पर कोई फर्क पडऩे वाला है? मोदी सरकार ने गोपनीयता के साथ पूरी तैयारी कर रखी थी। ताजा खबर यह है कि बैंकों ने नई करंसी और छोटे नोट पहुंचाए जा चुके हैं। एकाध दिन में सब कुछ सामान्य हो जाएगा। अर्थ व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाले इस फैसले की सफलता की पूरी आशा है। आखिर ऐसे कड़े फै सले इसी तरह अचानक लिए जाते हैं। ढिंढोरा पीट कर काम किया जाता तब काला धन रखने वालों को बच निकलने का मौका नहीं मिल जाता?

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