Monday, November 14, 2016
अब लुटेरों का काला चि_ा खोलने की तैयारी
(अनिल बिहारी श्रीवास्तव)
500 और 1000 हजार के पुराने नोटों पर लागू प्रतिबंध को लेकर कुछ राजनीतिक दल और क्षेत्रीय क्षत्रप जिस तरह की बयानबाजी और विरोध कर रहे हैं उसका जवाब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान यात्रा से लौटने के बाद एक विशाल सभा में दे दिया। उन्होंने नोटबंदी वापस लेने और छूट समय सीमा को कुछ बढ़ाने जैसी मांगों को सिरे से खारिज कर दिया है। मोदी ने साफ कर दिया है कि कालेधन के खिलाफ उनका अभियान जारी रहेगा। उनके पास अभी कई परियोजनाएं हैं जिन्हें भविष्य में लागू किया जाएगा। इसके लिए वह कोई भी नतीजे भुगतने को तैयार हैं। प्रधानमंत्री ने माना कि लोगों को हो रही असुविधा का उन्हें अहसास है। उन्होंने देशवासियों से सिर्फ पचास दिनों का समय मांगा है ताकि कालेधन के खिलाफ उनकी लड़ाई सफल हो सके।
मोदी का भाषण लोगों के दिलों को छू देने वाला रहा। वह इस समय हो रही बेसिर-पैर की या आधारहीन आरोपों से लैस बयानबाजी नहीं थी। उसमें सरकार के अगुआ का आत्मविश्वास, अपने फैसले की सफलता को लेकर आश्वस्त होना और जनविश्वास मिलने को भरोसा साफ दिखाई दिया। यह सही है कि नोटबंदी के तुरन्त बाद प्रधानमंत्री के थाईलैंड और जापान यात्रा पर चले जाने के बाद यहां कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा की गई बयानबाजी और मीडिया के एक वर्ग द्वारा किए जा रहे कवरेज के पीछे छिपी मंशा ने आम लोगों के छोटे से हिस्से को विचलित सा कर दिया था लेकिन प्रधानमंत्री की स्वदेश वापसी और उनके वक्तव्य से निश्चित रूप से आश्ंाकाओं और अनिश्चितता के बादल छंट सकेंगे। नोटबंदी के फैसले को शुरूआत में ही व्यापक समर्थन मिलता दिखने लगा था। वास्तव में यह फैसला कुछ खास लोगों के लिए भौंचक कर देने वाला रहा लेकिन नोटबंदी के विरूद्ध जिस तरह से सबसे पहले कांगे्रस की ओर से विरोध हुआ वह चौंकाने वाला था। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी की अगुआ मायावती, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने नोटबंदी के विरूद्ध बयान दिए। तर्क दिया जा रहा था कि फैसले से आम लोगों विशेषकर किसानों, मजदूरों, गरीबों और महिलाओं को काफी असुविधा हो रही है। मुलायम सिंह यादव की यह मांग कतई भी व्यावहारिक नहीं कही जा सकती कि नोटबंदी लागू करने से लोगों को समय दिया जाना था। केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली ने सटीक कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा कि समय देकर क्या कालाधन रखने वालों को अपनी व्यवस्था कर लेने का मौका दिया जाता। जेटली कि बात सही है। आखिर बड़े फैसले अचानक ही लिए और लागू किए जाते हैं। उधर, मायावती आधारहीन तर्कों से लैस आरोप सरकार पर लगा रहीं थीं। उन्हें केन्द्रीय मंत्री उमा भारती की ओर से तीखे कटाक्ष का सामना करना पड़ा। उमाभारती के इस बयान पर गौर किया जाना चाहिए कि बहन मायावती को नोटों की मालाओं को छिपाने में परेशानी हो रही है इसलिए वह आदरणीय प्रधानमंत्री के फैसले की आलोचना कर रहीं हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फै सले के दूसरे दिन ही इसके विरूद्ध मैदान में कूद पड़ीं। वह एक ही राग गा रहीं हैं कि इससे गरीबों को परेशानी हो रही है। ममता बनर्जी नोटबंदी को वापस लेने की मांग तो कर रहीं हैं परन्तु उनके पास इस बात का जवाब नहीं मिल रहा कि कालेधन और नकली मुद्रा जैसी समस्या से कैसे निबटा जाए। ममता बनर्जी के विरोध से समझ आ रहा है कि इसके पीछे कारण विशुद्ध राजनीतिक है। वह स्वयं को गरीबों और आम आदमी का हमदर्द साबित कर अपनी मोदी विरोधी इमेज को चमकाने का प्रयास कर रहीं हैं। गौरतलब है कि ममता को इस काम में उनके गठबंधन के सहयोगी दलों का ही समर्थन नहीं मिला है। यहां तक कि उनके मित्र और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने नोटबंदी के फैसले का समर्थन कर दिया। जहां तक अरविन्द केजरीवाल का सवाल है तो उनक ी आये दिन कि बयानबाजी से लोगों के कान पक से गए हैं। केन्द्र सरकार के लगभग हर फैसले का विरोध और हर दूसरे दिन मोदी को कोसने के कारण केजरीवाल को गम्भीरता से लिया जाना कम होता जा रहा है। नोटबंदी के विरूद्ध कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का पॉश्चर प्रभावहीन माना जा रहा है। पैसे निकालने के लिए राहुल का एटीएम के सामने लाइन में लगना सियासी नाटक ही माना गया। मोदी की इस टिप्पणी को लोगों ने चटकारे लेकर पढ़ा और सुना कि जिन पर घोटालों के गम्भीर आरोप लग चुके हैं वह आज 4000 रुपए निकालने के लिए एटीएम के बाहर लाइन में लगे हैं।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नोटबंदी को विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए सवाल उठाया है कि कालेधन के खिलाफ सरकार के इस फैसले से इन विपक्षी नेताओं को क्या समस्या है? आखिर यही विपक्ष कालेधन के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग करता रहा है। जेटली भी कमोवेश ऐसी ही टिप्पणी कर चुके हैं। जेटली ने जानना चाहा कि गरीबों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं को समस्या के नाम पर विरोध कर कुछ राजनीतिक दल अपने किस-किस प्रकार के हित साधने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में कालेधन और नकली मुद्रा ने हमारी अर्थ व्यवस्था के लिए गम्भीर खतरा खड़ा करना शुरू कर दिया था। इस धन का उपयोग आतंकवाद, मादक पदार्थों का गैरकानूरी व्यापार में भी हो रहा था। सरकार के फैसले से दो फायदे होने कि आशा की जा रही है। एक- नकली मुद्रा के फैलाव पर प्रभावी रोक लग सकेगी। दो- अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी। रियल एस्टेट सहित कई अन्य क्षेत्रों में दाम गिरने की आशा व्यक्त की जा रही है। इससे देश में कैशलेस व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाने के लिए माहोैल बनेगा। उल्लेखनीय है कि आम आदमी तमाम परेशानियों के बाद भी यह स्वीकार कर रहा है कि नोटबंदी के अच्छे नतीजे आएंगे।
नोटबंदी लागू होने के बाद आशंका से भरा जो माहौल देश के विभिन्न भागों में दिखाई दिया उसके लिए सरकार को कुछ हद तक ही दोष दिया जा सकता है। इसके लिए विपक्षी नेताओं की बयानबाजी और कतिपय मीडिया समूहों द्वारा किया गया कवरेज भी जिम्मेदार है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता के दायित्वों के नाम फैसले का विरोध जैसा लक्ष्य साध कर कतिपय टीवी चैनलों ने कवरेज किए। ऐसे टीवी कवरेज देख कर अति साधारण समझ रखने वाला तक समझ रहा था कि इरादा सरकार की बखिया उधेडऩे का चल रहा है। सबसे तेज होने का दावा करने वाला एक टीवी चैनल तो मोदी के राष्ट्र के नाम प्रसारण के खत्म होने के आधा घण्टा बाद ही नोटबंदी फैसले के विरूद्ध टीका-टिप्पणी करने लगा था। चर्चा शुरू कर दी गई थी। चर्चा में भाग लेने वाले एक अतिथि ने नोटबंदी का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री की प्रशंसा करनी चाही तो उन्हें यह कह कर रोक दिया गया कि हमारी चर्चा का विषय किसी की स्तुति नहीं है। दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक मीडिया में एक अन्य वर्ग था जो नोटबंदी से आमजन को हो रही परेशानी सामने लाने के साथ-साथ इस फैसले के फायदे बताते जा रहा था।
बहरहाल, मोदी के ताजा भाषण से अनिश्चितता और भ्रम का माहौल अवश्य सुधरेगा। मोदी ने जिस तरह के आक्रामक तेवर दिखाए और देशवासियों से सहयोग के लिए भावुक अपील की है उसका असर दिखना ही चाहिए। उन्होंने कालेधन वालों और भ्रष्ट तत्वों के विरूद्ध अपनी अन्य परियोजनाओं की बात कर अवश्य ही कई लोगों की नींद उड़ा दी होगी। प्रधानमंत्री ने यह तक कहा है कि पिछले 70 सालों से देश को लूटने वालों का काला चिट्ठा भी वह खोल सकते हैं इस काम के लिए अगर एक लाख लोगों को नौकरी देनी पड़ी तो वह ऐसा करने से झिझकेंगे नहीं। एक बात तो तय है कि मोदी सरकार ने कई लोगों का चैन छीन लिया है।
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