Friday, November 25, 2016
नोटबंदी से केजरीवाल क्यों बेहाल?
-अनिल बिहारी श्रीवास्तव
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा है यदि प्रधानमंत्री यह साबित कर दें कि 500 और 1000 हजार रुपए के नोट बंद कराने से कालाधन खत्म हुआ है तो वह उनकी प्रशंसा में ताली बजाएंगे और उनके नाम का जाप करने लगेंगे। नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही केजरीवाल और उनकी पार्टी के लोग इसके विरोध में हर घण्टे एक नया बयान दे रहे हैं। केजरीवाल ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सीधे निशाना साध रखा है। उनका आरोप है कि नोटबंदी के पीछे आठ लाख करोड़ का घोटाला है। केजरीवाल की मांग हेै कि नोटबंदी का फैसला वापस लिया जाए। उन्हें तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन मिल रहा है। ममता बनर्जी दो बार दिल्ली आ चुकीं हैं। हालांकि नोटबंदी पर लगभग सभी विपक्षी दल किसी न किसी रूप में विरोध कर रहे हैं। इनमें से कुछ को शिकायत नोटबंदी के तरीके को लेकर है। कुछ का कहना है कि सरकार ने पूरी तैयारी के बिना ही अपना फैसला लागू कर दिया जिससे आम आदमी, किसान और मजदूरों को काफी दिक्कत हो रही है। विपक्षी दलों के बीच नोटबंदी फैसले के विरूद्ध एकता दिखाने की कोशिश भी की जा रही है। दूसरी ओर इस बात पर भी लोगों का ध्यान गया है कि विपक्षी नेताओं में मोदी विरोध के नाम पर प्रचार लूटने की होड़ लगी है।
इन दिनों केजरीवाल कुछ अधिक मुखर हो गए हैं। उधर, निष्पक्ष विश£ेषकों को मानना है कि केजरीवाल द्वारा लगाए जा रहे आरोपों का विशेष असर दिखाई नहीं दे रहा। यह धारणा बन रही है कि केजरीवाल सिर्फ मोदी विरोधी अपनी सोच के चलते नोटबंदी के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। सोशल मीडिया में केजरीवाल और उनकी मण्डली की सक्रियता से साबित हो रहा है कि सारा काम बंद कर पूरी टीम बयान झाडऩे और टिप्पणियां करने में मस्त है। पिछले दो दिनों से ट्वीटर पर आम आदमी पार्टी की हर पोस्ट में दो नारे लिखे दिखते हैं- नोट नहीं पीएम बदलो और अब भाजपा को वोट नहीं। यहां गौर करने लायक तथ्य यह है कि नोटबंदी के विरूद्ध केजरीवाल के अभियान को उनके उन पुराने साथियों समर्थन नहीं मिल पा रहा जिनके बूते केजरीवाल ने अपनी पहचान बनाई थी। इनमें प्रमुख नाम समाजसेवी अन्ना हजारे, योगगुरू बाबा रामदेव, फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन के दिनों के दर्जनोंं सहयोगी अब केजरीवाल का साथ छोड़ कर जा चुके हैं। उनमें से कुछ को केजरीवाल की कार्यप्रणाली का विरोध करने पर आम आदमी पार्टी से बाहर कर दिया गया।
नोटबंदी पर समाजसेवी अन्ना हजारे ने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के फैसले की प्रशंसा करते हुए आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल किए जा रहे विरोध की हवा निकाल दी। अन्ना ने कहा, जो जैसा चश्मा पहनता है उसे वैसा ही दिखता है। सरकार के इस फैसले पर कौन क्या कह रहा है हमें नहीं देखना। हमारा मानना है कि हमें समाज और देश की भलाई को देखना चाहिए। अन्ना ने कहा कि हम तो लंबे समय से मांग ही कर रहे थे कि 500 और 1000 के नोट बंद किए जाएं। मोदी सरकार ने हमारी मांग के अनुरूप कदम उठाया है।
बाबा रामदेव सरकार के पक्ष में पूरी तरह डटे हैं। पिछले दिनों उन्होंने यह तक कहा कि कालाधन, नकली मुद्रा, आतंकवाद और नक्सली समस्या से निबटने के लिए सरकार द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले का विरोध एक तरह से राष्ट्रद्रोह जैसी हरकत है। बाबा रामदेव ने सन 2011 मेंं कालेधन की विदेश से वापसी और भ्रष्टाचार नियंत्रक कानून की मांग लेकर आंदोलन चलाया था। इसके अंतर्गत अपने हजारों अनुयायियों के साथ उन्होंने दिल्ली में सामूहिक अनशन किया था।
लोकप्रिय फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने भी नोटबंदी के फेैसले को पूरा समर्थन दिया है। अनुपम खेर के विरूद्ध केजरीवाल किस मुंह से जुबान चला सकते हेैं। अन्ना हजारे के आन्दोलन इंडिया अगेंस्ट करप्शन के समय केजरीवाल को कितने लोग जानते थे? बताया जाता है कि उस समय मनीष सिसोैदिया ने अनुपम खेर्र को फोन कर उनसे दिल्ली आने का अनुरोध किया था ताकि लोगों के सामने एक ऐसा चेहरा आन्दोलन का समर्थक बताया जा सके जिसे सभी जानते हों और जो लोकप्रिय हो। सिसौदिया के अनुरोध पर खेर और प्रीतिश नंदी अन्ना के उस आन्दोलन के समर्थन में दिल्ली गए थे। खेर आज आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जो लोग कभी भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ आन्दोलन कर रहे थे उनमें से कुछ लोग आज नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं। खेर ने केजरीवाल का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों ही इशारों में कहा कि आपका काम दिल्ली में ह,ै उसे करें। राष्ट्रीय मुद्दों पर क्यों सिर खपा रहे हैं।
नोटबंदी को लेकर भले ही विपक्षी राजनीतिक दल एक साथ खड़े नजर आ रहे हों लेकिन उनकी आपसी खुन्नस साफ महसूस की जा सकती है। कांगे्रस और वामपंथी दलों को लग रहा है कि ममता बनर्जी द्वारा किए जा रहे विरोध के पीछे कारण सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा है। ममता साबित करना चाहतीं हैं कि वह मोदी विरोधी खेमे की सबसे ताकतवर नेता हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी राजनीति में कमजोर पड़ती अपनी स्थिति को मजबूत करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। शिवसेना ने नोटबंदी
के तरीक के विरोध में ममता बनर्जी के साथ चल कर अपनी खीझ उजागर कर दी।
अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को विपक्षी दलों से कोई विशेष समर्थन नहीं मिल रहा है। सच्चाई यह है कि अधिकांश विपक्षी नेताओं को केजरीवाल की नीयत पर ही संदेह है। किसी ने टिप्पणी की कि जो व्यक्ति अपने गुरू का साथ छोड़ बैठा वह किसी दूसरे का कितना सगा हो सकता है। राजनीतिक और कुछ अज्ञात कारणों से नोटबंदी को लेकर मोदी और केन्द्र सरकार का वे भले विरोध कर रहे हों परन्तु केजरीवाल को हीरो बनने को मौका कम से कम विपक्षी दल नहीं देने वाले। केजरीवाल के संदर्भ में दूसरी बात यह है कि उनके आए दिन के अनर्गल प्रलापों के कारण आम आदमी पार्टी की छवि प्रभावित हुई। सभी विपक्षी राजनीतिक दल केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं और उनके अतीत से परिचित हैं। वे जानते हैं कि मोदी का विरोध करने में केजरीवाल के साथ खड़े होने का अर्थ अपनी राजनीतिक आत्महत्या का प्रयास जैसी बात हो जाएगी।
भाजपा के सूत्र केजरीवाल के इस सुझाव को हास्यास्पद मानते हैं कि नोटबंदी आदेश फिलहाल वापस लिया जाए और दो माह बाद पूरी तैयारी से कालेधन के खिलाफ अभियान शुरू हो जिसमें नए सिरे से नोटबंदी भी शामिल हो। कहा जा रहा है कि केजरीवाल की मांग मानने का अर्थ कालेधन को सफेद होने का मौका देना होगा। इससे आतंकवादियों, नक्सलियों और उग्रवादियों के साथ-साथ नकली नोटों के सौदागरों को तैयारी करने का अवसर मिल जाएगा। लोग जानना चाहते हैं कि केजरीवाल मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई एक बड़ी लड़ाई में पलीता लगाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? नोटबंदी ने केजरीवाल का हाल क्यों बेहाल सा कर दिया है?
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