Thursday, October 11, 2012

पंजाब में शांति के विरूद्ध साजिश तो नहीं?

बुधवार को अकाल तख्त में पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल अरूण श्रीधर वैद्य के हत्यारों का सम्मान करके किस तरह का संदेश देने की कोशिश की गई है? जनरल वैद्य के हत्यारों, हरजिन्दर सिंह जिन्दा और सुखदेव सुक्खा का सम्मान किए जाने की घटना वाकई चिन्ता का विषय है। दरबार साहिब के मैनेजर ने जिन्दा और सुक्खा की बरसी पर आयोजित अखण्ड पाठ के समापन के पश्चात उनके परिजन का सम्मान किया। जिन्दा के भाई भूपिन्दर सिंह और सुक्खा की मां सुरजीत कौर को सिरोपा भेंट किए गए। खास बात यह है कि इस अवसर पर शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव दलमेघ सिंह, दल खालसा के प्रवक्ता कंवरपाल सिंह और दमदमी टकसाल के प्रवक्ता भाई मोखम सिंह मौजूद थे। 10 अगस्त 1986 को जनरल वैद्य की हत्या के लिए दोषी पाए गए जिन्दा और सुक्खा को 9 अक्टूबर 1992 को फांसी दे दी गई थी। जिन्दा और सुक्खा की बीसवीं बरसी पर उनका सम्मान किए जाने की इस घटना को शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के उस फैसले से जोड़ कर देखने की जरूरत महसूस होने लगी है जिसमें आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए लोगों की याद में स्मारक बनाने का प्रस्ताव है। इन घटनाओं पर पंजाब में सत्ताधारी शिरोमणि अकाली दल -बादल की चुप्पी आश्चर्य का विषय है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने अवश्य चिन्ता व्यक्त की है। इस आशंका को निराधार नहीं कहा जा सकता कि पंजाब में कुछ कट्टरपंथी ताकतें पुराने जख्मों को कुरेदने की कोशिश कर रहीं हैं। उनकी बढ़ती सक्रियता राज्य के अल्पसंख्यकों में भय पैदा कर सकती है। पिछले दिनों रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल के एस बरार ने यह आरोप लगाया था कि पंजाब में अकाली दल की सरकार के कार्यकाल में कट्टरपंथी और पृथकतावादी शक्तियां पुन: सक्रिय होने लगीं हैं। उन्होंने यह टिप्पणी लंदन में स्वयं पर हुए आतंकवादी हमले के बाद की थी। जनरल बरार ने आपरेशन ब्लू स्टार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। 77 वर्षीय इस फौजी ने जोर देकर कहा है कि ब्लू स्टार में मारे गए लोग आतंकवादी थे, उन्हें शहीद नहीं माना जा सकता। दरअसल, जनरल बरार पर लंदन में किया गया हमला इस बात का प्रमाण हैं कि भारत हो या विकसित देश दोनों ही जगह मौजूद आतंकवादी और उनके हमदर्द पूरी तरह ठण्डे नहीं पड़े हैं। वे पंजाब को उसी बुरे दौर में पुन: धकेलने की कोशिश कर रहे हैं । संभवत: कांग्रेस और भाजपा भी इसी बात को महसूस करने लगीं हैं। आतंकवाद के उस काले दौर में पंजाब में मारे गए लोगों की संख्या को लेकर अलग-अलग दावे लिए जाते हैं। एक जानकारी के अनुसार 1981 से लेकर 1993 के बीच आतेकवादी हिंसा में 11694 लोग मारे गए थे। यह तथ्य हैं कि सिख धर्म की रक्षा और सिखों के साथ हुए कथित अन्याय के विरोध के नाम पर किए गए खून-खराबे में मारे गए इन लोगों में 7139 सिख थे। जाहिर है कि पंजाब में आतंकवाद के उस दौर में आतंकवादियों ने सिखों को ही अधिक नुकसान पहुंचाया था। लोगों का याद होगा कि उस बुरे दौर में आतंकवादी समूचे पंथ की ओर से बोलने का दावा करते थे। जिन सिखों ने आतंकवाद का विरोध किया या आतंकवादियों द्वारा पंथ के नाम पर बोलने के अधिकार पर सवाल उठाया, उन्हें आतंकवादियों ने अपना दुश्मन मान लिया था। पंजाब लगभग दो दशक से शांत है लेकिन लग रहा है कि पृथकतावादी और कट्टरपंथी ताकतें अंदर ही अंदर अपना काम कर रहीं हैं। उस दूसरी और तीसरी पीढी़ को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है जो मैदानी सच्चाई को नहीं जानती है। ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी से फेसबुक में पेज लोड किए जा रहे हैं। विदेशों से संचालित वेबसाट्स में खालिस्तानी सामग्री, मैप और गाने भरे हैं। एक वेब साइट उन सिखों के समर्थन के नाम पर चंदा उगाहती है जो आतंकवाद संबंधी आरोपों के कारण भारतीय जेलों में हैं। कुल मिलाकर स्थिति को सामान्य नहीं माना जा सकता है। पूरी तरह नजर रखने और सतर्कता बरतने की जरूरत हैं। जनरल बरार ने जो आशंका व्यक्त की है उसे जिन्दा और सुक्खा का सम्मान किए जाने की घटना से बल मिला है। सवाल यह है कि पंजाब की बादल सरकार इस गंभीर विषय पर स्वयं कितनी गंभीर है। -----अनिल बिहारी श्रीवास्तव

Tuesday, October 9, 2012

मान का सम्मान नहीं करने वालों को मानद रैंक क्यों?

खिलाडिय़ों और ग्लैमर वल्र्ड से जुड़े लोगों को मानद रैंक देने से कम से कम वायु सेना ने तौबा कर ली है। यदि वायुसेना के एक शीर्ष अधिकारी के हवाले से आई खबर पर विश्वास करें तब साफ हो जाएगा कि ऐसी हस्तियों को मानद रैंक देने का कोई मतलब नहीं होता जो इसका महत्व नहीं जानतीं तथा उनका सम्मान करने से सेना को कोई लाभ तक नहीं मिलता। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को वायुसेना ने लगभग दो वर्ष पहले ग्रुप कैप्टेन का मानद रैंक प्रदान किया था। इसी तरह क्रिकेट कप्तान महेंद्रसिंह धोनी को लेफ्टिनेंट कर्नल का मानद रैंक दिया गया था। सेना के सूत्रों के अनुसार दोनों ने मानद रैंक प्राप्त करने के बाद एक बार भी पलटकर नहीं झांका। पिछले दो वर्षों के दौरान उनके इस उदासीन व्यवहार से ऐसा प्रतीत हुआ मानों सेना द्वारा प्रदत्त मानद रैंक स्वीकार करके उन्होंने सेना पर ही अहसान किया हो। उल्लेखनीय है कि खिलाडिय़ों और ग्लैमर वल्र्ड के लोगों को सेना मानद रैंक से सम्मानित करती रही है। पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिल देव को सन 2008 में टेरिटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल के रैंक से सम्मानित किया जा चुका है। टेरिटोरियल आर्मी के विज्ञापनों और होर्डिंग्स में कपिलदेव की तस्वीर छपती रही है। टेरिटोरियल आर्मी के कार्यक्रमों में कपिलदेव शामिल होते रहे हैं। दक्षिण भारत के फिल्मी सुपर स्टार मोहनलाल और शूटर अभिनव बिन्द्रा को भी सेना ने मानद रैंक प्रदान किए हैं। सेना द्वारा मानद रैंक से सम्मानित हस्तियों में और भी नाम हैं। ऐसे लोगों को मानद रैंक देने के पीछे मकसद युवाओं को सेना की ओर आकर्षित करना रहता है। वे युवा पीढ़ी के लिए पे्ररणा के स्रोत की तरह होते हैं। सेना के इस प्रयोग की सफलता के आंकड़े जुटाना लगभग असंभव काम होगा। यह जानकारी भला कैसे एकत्र की जा सकती है कि सेना में शामिल युवकों में से कितनों ने इन हस्तियों से प्रेरणा ली थी। वायुसेना के उस अधिकारी ने जिस अंदाज में धोनी और तेंदुलकर के उदासीन रवैये के प्रति अप्रसन्नता व्यक्त की है उसके बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सम्मान किस का होना चाहिए? सीधी सी बात है जो सम्मान का मान रखे उसी का सम्मान किया जाए। धोनी और तेंदुलकर ने पूरी ठसक के साथ क्रमश: थल सेना और वायुसेना की वर्दी पहन कर रैंक प्राप्त किए थे। उस कार्यक्रम की तस्वीरें आज भी लोगों का याद होंगी। आज वायुसेना के अधिकारी बता रहे कि रैंक लेने के बाद से धेानी और तेंदुलकर ने पलट कर नहीं देखा। खिलाडिय़ों का ऐसा रवैया वाकई निराशाजनक और खीझ पैदा करने वाला है। सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल और ग्रुप कैप्टेन के पदों का अपना खासा महत्व है। इनकी अपनी गरिमा है। सेना के किसी भी अंग के लोग ही बता सकते हैं कि संबंधित ओहदा पाने के लिए उन्होंने कितना परिश्रम और त्याग किया है। आप कितने भी बड़े तीस मार खां हो सकते है लेकिन अनुशासित बलों का हिस्सा बनना आसान नही होगा। अनुशासित बलों में शामिल होने के लिए एक कड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। वहां कड़े अनुशासन का पालन करना होता है। धोनी और तेंदुलकर की अपनीं व्यस्तताएं होंगी। खेल और विज्ञापनों से कमाई की जुगत में लगीं इन दोनों क्रिकेट हस्तियों के पास समय कहां है जो वे कुछ और सोचें। हां, उनसे यह अवश्य पूछा जा सकता है कि जनाब,आपके पास समय नही था तो मानद रैंक प्रस्ताव को स्वीकार क्यों किया था? हमारे यहां कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने किसी मानद पद को स्वीकार तो कर लिया किन्तु उससे जुड़ी जिम्मेदारियों और दायित्वों के निर्वाह के प्रति वे गम्भीर नहीं दिखे। पिछले चार दशक के दौरान अनेक फिल्मी हस्तियों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया जा चुका है। यह शोध का विषय हो सकता है कि इनमें से कितने लोगों ने राज्यसभा की कार्रवाई में भाग लेकर स्वयं को एक जिम्मेदार सदस्य या नागरिक साबित किया? गायिका लता मंगेशकर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने राज्यसभा की किसी बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। साफ बात है कि रूचि नहीं है तो इस तरह के प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं करने चाहिए। भाजपा लहर में चुनाव जीत कर फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र भी लोकसभा में जा पहुंचे थे। फिल्मी पर्दे पर सैंकड़ों बार गरजते रहे धर्मेन्द्र की लोकसभा में आवाज सुनने के लिए लोग तरस गए। बहरहाल, यहां मुद्दा सेना के पदों की गरिमा बनाए रखने का है। तेंदुलकर और धोनी के उदाहरणों के चलते खिलाडिय़ों और ग्लैमर वल्र्ड के लोगों को मानद रैंक नहीं देने का फैसला सही है। वायुसेना अधिकारी की टिप्पणी पर धोनी और तेंदुलकर के पास सफाई में कहने के लिए कुछ है?

जीजाजी घोटाला: सच सामने आए

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा ने अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज तो किया है लेकिन आरोपों की न्यायिक जांच संबंधी मुद्दे पर उनका मौन आश्चर्यजनक है। वाड्रा का कहना है कि केजरीवाल और प्रशंात भूषण ने सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए गलत, अवमाननापूर्ण और आधारहीन आरोप लगा कर उनका और उनके परिवार का नाम बदनाम करने की कोशिश की है। एक दिन पूर्व ही वाड्रा ने कहा था कि सभी तरह की नकारात्मकता से निबट सकते हैं। इस बीच डी एल एफ ने भी केजरीवाल और भूषण के आरोपों को खारिज किया था। केजरीवाल और भूषण का कहना है कि डी एल एफ ने वाड्रा को सरकार से फायदों के एवज में बिना गारंटी के धन दिया था। डी एल एफ ने जोर दिया हेै कि उसका वाड्रा के साथ एक उद्यमी के रूप में पारदर्शी सौदा हुआ था। डी एल एफ के बयान और वाड्रा द्वारा किए गए पलटवार से केजरीवाल और भूषण का रत्तीभर प्रभावित नहीं दिखना तथ्यों को लेकर उनके आत्म विश्वास को दर्शा रहा है। केजरीवाल ने डी एल एफ के बयान को आधा सच निरूपित कर दिया है। उनका यह कहना गलत नहीं है कि वाड्रा को उठाए गए सवालों के जवाब देना चाहिए। इस बीच केजरीवाल और भूषण के लिए मनोबल बढ़ाने वाला घटनाक्रम यह हुआ कि वाड्रा पर लगाए गए आरोपों को भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के विरूद्ध एक मुद्दे के रूप में भुनाने की कोशिश शुरू कर दी । उधर, सामाजिक कार्यकर्ता ने तक केजरीवाल को समर्थन कर दिया है। अन्ना का कहना है कि वाड्रा पर लगाए गए आरोपों की न्यायिक जांच होनी चाहिए। केजरीवाल और भूषण द्वारा वाड्रा की घेराबन्दी की कोशिश ने कांग्रेस के विरोधी दलों को एक बार फिर सक्रिय कर दिया है। यह मुद्दा आने वाले दिनों में कांग्रेस के बड़ा सिरदर्द साबित हो तो आश्चर्य नहीं होगा। कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार के लिए दूसरा कार्यकाल वैसे भी कांटों भरी राह पर चलने जैसा साबित होता रहा है। उस पर घोटालो और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं। इन में से किसी भी आरोप का जवाब दमदारी से देने में कांग्रेस और उसकी मनमोहन सरकार कहां कामयाब हो पाई? ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि भ्रष्टाचारियों के बीच फंसे बेबस इंसान जैसी नजर आने लगी है। अबतक राजनीतिक विरोधी ही कांग्रेस और कांग्रेसियों की खिचाई करते रहे हैं परंतु वाड्रा पर केजरीवाल कंपनी का सीधा हमला 10 जनपथ भक्तों के होश उड़ा दिने के लिए पर्याप्त है। यही कारण है कि वाड्रा पर आरोप लगते ही एक वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री वाड्रा के बचाव की मुद्रा में आ गए। कांग्रेस के बड़बोले प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी केजरीवाल और भूषण के आरोपों को असत्य करार दिया है। सरकार और कांग्रेस दोनों ही वाड्रा की ओर से युद्ध के लिए तत्पर हैं? जबकि आरोप वाड्रा पर लगें है इसलिए उनका सामना करने की जिम्मेदारी भी वाड्रा पर है। वाड्रा सीना ठोंक कर क्यों नहीं कहते कि वह किसी भी प्रकार की जांच के लिए तैयार हैं। फिर उनके समक्ष कानूनी विकल्प भी है। अगर केजरीवाल के आरोप असत्य हैं तब वाड्रा उन पर मुकदमा ठोंकें । वाड्रा के बचाव में सरकार के लोगों के बयान और कांग्रेसियों की मोर्चाबंदी देशवासियों के मन उठ रहे सवालों का उत्तर नहीं दे पा रही है। इस बात में क्या गलत होगा यदि पिछले पांच वर्षों में राबर्ट वाड्रा द्वारा अर्जित सम्पत्ति की जांच की जाती है। वाड्रा की हैसियत आम आदमी जैसी नही है। वह सत्ताधारी पार्टी की अध्यक्ष के दामाद हैं। उनकी स्थिति नाजुक है। वाड्रा की किसी भी चूक या गलती के साबित होने की स्थिति में इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। केजरीवाल और प्रशांत भूषण को कच्चा खिलाड़ी मानने की गलती भी नहीं की जानी चाहिए। नियम और कानूनों की उन्हें खासी जानकारी है। वाड्रा के विरूद्ध मोर्चा खोलने से पहले तथ्यों को लेकर वे अवश्य आश्वस्त हुए होंगे। केजरीवाल ने डी एल एफ के बयान को आधा सच बताया है, जाहिर है कि उनके पास कुछ और जानकारी है। कहते है,धुआं उठा हो तो आग अवश्य होगी। वाड्रा पर लगे आरोपों का जवाब सिर्फ तथ्यपूर्ण उत्तर से ही संभव है। लोगों के मन में वाड्रा को लेकर पैदा हुए संदेह का शीघ्र निवारण जरूरी है अन्यथा इसको विश्वास में बदलने में कितनी देर लगेगी?