Friday, November 25, 2016

नोटबंदी से केजरीवाल क्यों बेहाल? -अनिल बिहारी श्रीवास्तव दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा है यदि प्रधानमंत्री यह साबित कर दें कि 500 और 1000 हजार रुपए के नोट बंद कराने से कालाधन खत्म हुआ है तो वह उनकी प्रशंसा में ताली बजाएंगे और उनके नाम का जाप करने लगेंगे। नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही केजरीवाल और उनकी पार्टी के लोग इसके विरोध में हर घण्टे एक नया बयान दे रहे हैं। केजरीवाल ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सीधे निशाना साध रखा है। उनका आरोप है कि नोटबंदी के पीछे आठ लाख करोड़ का घोटाला है। केजरीवाल की मांग हेै कि नोटबंदी का फैसला वापस लिया जाए। उन्हें तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन मिल रहा है। ममता बनर्जी दो बार दिल्ली आ चुकीं हैं। हालांकि नोटबंदी पर लगभग सभी विपक्षी दल किसी न किसी रूप में विरोध कर रहे हैं। इनमें से कुछ को शिकायत नोटबंदी के तरीके को लेकर है। कुछ का कहना है कि सरकार ने पूरी तैयारी के बिना ही अपना फैसला लागू कर दिया जिससे आम आदमी, किसान और मजदूरों को काफी दिक्कत हो रही है। विपक्षी दलों के बीच नोटबंदी फैसले के विरूद्ध एकता दिखाने की कोशिश भी की जा रही है। दूसरी ओर इस बात पर भी लोगों का ध्यान गया है कि विपक्षी नेताओं में मोदी विरोध के नाम पर प्रचार लूटने की होड़ लगी है। इन दिनों केजरीवाल कुछ अधिक मुखर हो गए हैं। उधर, निष्पक्ष विश£ेषकों को मानना है कि केजरीवाल द्वारा लगाए जा रहे आरोपों का विशेष असर दिखाई नहीं दे रहा। यह धारणा बन रही है कि केजरीवाल सिर्फ मोदी विरोधी अपनी सोच के चलते नोटबंदी के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। सोशल मीडिया में केजरीवाल और उनकी मण्डली की सक्रियता से साबित हो रहा है कि सारा काम बंद कर पूरी टीम बयान झाडऩे और टिप्पणियां करने में मस्त है। पिछले दो दिनों से ट्वीटर पर आम आदमी पार्टी की हर पोस्ट में दो नारे लिखे दिखते हैं- नोट नहीं पीएम बदलो और अब भाजपा को वोट नहीं। यहां गौर करने लायक तथ्य यह है कि नोटबंदी के विरूद्ध केजरीवाल के अभियान को उनके उन पुराने साथियों समर्थन नहीं मिल पा रहा जिनके बूते केजरीवाल ने अपनी पहचान बनाई थी। इनमें प्रमुख नाम समाजसेवी अन्ना हजारे, योगगुरू बाबा रामदेव, फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन के दिनों के दर्जनोंं सहयोगी अब केजरीवाल का साथ छोड़ कर जा चुके हैं। उनमें से कुछ को केजरीवाल की कार्यप्रणाली का विरोध करने पर आम आदमी पार्टी से बाहर कर दिया गया। नोटबंदी पर समाजसेवी अन्ना हजारे ने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के फैसले की प्रशंसा करते हुए आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल किए जा रहे विरोध की हवा निकाल दी। अन्ना ने कहा, जो जैसा चश्मा पहनता है उसे वैसा ही दिखता है। सरकार के इस फैसले पर कौन क्या कह रहा है हमें नहीं देखना। हमारा मानना है कि हमें समाज और देश की भलाई को देखना चाहिए। अन्ना ने कहा कि हम तो लंबे समय से मांग ही कर रहे थे कि 500 और 1000 के नोट बंद किए जाएं। मोदी सरकार ने हमारी मांग के अनुरूप कदम उठाया है। बाबा रामदेव सरकार के पक्ष में पूरी तरह डटे हैं। पिछले दिनों उन्होंने यह तक कहा कि कालाधन, नकली मुद्रा, आतंकवाद और नक्सली समस्या से निबटने के लिए सरकार द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले का विरोध एक तरह से राष्ट्रद्रोह जैसी हरकत है। बाबा रामदेव ने सन 2011 मेंं कालेधन की विदेश से वापसी और भ्रष्टाचार नियंत्रक कानून की मांग लेकर आंदोलन चलाया था। इसके अंतर्गत अपने हजारों अनुयायियों के साथ उन्होंने दिल्ली में सामूहिक अनशन किया था। लोकप्रिय फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने भी नोटबंदी के फेैसले को पूरा समर्थन दिया है। अनुपम खेर के विरूद्ध केजरीवाल किस मुंह से जुबान चला सकते हेैं। अन्ना हजारे के आन्दोलन इंडिया अगेंस्ट करप्शन के समय केजरीवाल को कितने लोग जानते थे? बताया जाता है कि उस समय मनीष सिसोैदिया ने अनुपम खेर्र को फोन कर उनसे दिल्ली आने का अनुरोध किया था ताकि लोगों के सामने एक ऐसा चेहरा आन्दोलन का समर्थक बताया जा सके जिसे सभी जानते हों और जो लोकप्रिय हो। सिसौदिया के अनुरोध पर खेर और प्रीतिश नंदी अन्ना के उस आन्दोलन के समर्थन में दिल्ली गए थे। खेर आज आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जो लोग कभी भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ आन्दोलन कर रहे थे उनमें से कुछ लोग आज नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं। खेर ने केजरीवाल का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों ही इशारों में कहा कि आपका काम दिल्ली में ह,ै उसे करें। राष्ट्रीय मुद्दों पर क्यों सिर खपा रहे हैं। नोटबंदी को लेकर भले ही विपक्षी राजनीतिक दल एक साथ खड़े नजर आ रहे हों लेकिन उनकी आपसी खुन्नस साफ महसूस की जा सकती है। कांगे्रस और वामपंथी दलों को लग रहा है कि ममता बनर्जी द्वारा किए जा रहे विरोध के पीछे कारण सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा है। ममता साबित करना चाहतीं हैं कि वह मोदी विरोधी खेमे की सबसे ताकतवर नेता हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी राजनीति में कमजोर पड़ती अपनी स्थिति को मजबूत करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। शिवसेना ने नोटबंदी के तरीक के विरोध में ममता बनर्जी के साथ चल कर अपनी खीझ उजागर कर दी। अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को विपक्षी दलों से कोई विशेष समर्थन नहीं मिल रहा है। सच्चाई यह है कि अधिकांश विपक्षी नेताओं को केजरीवाल की नीयत पर ही संदेह है। किसी ने टिप्पणी की कि जो व्यक्ति अपने गुरू का साथ छोड़ बैठा वह किसी दूसरे का कितना सगा हो सकता है। राजनीतिक और कुछ अज्ञात कारणों से नोटबंदी को लेकर मोदी और केन्द्र सरकार का वे भले विरोध कर रहे हों परन्तु केजरीवाल को हीरो बनने को मौका कम से कम विपक्षी दल नहीं देने वाले। केजरीवाल के संदर्भ में दूसरी बात यह है कि उनके आए दिन के अनर्गल प्रलापों के कारण आम आदमी पार्टी की छवि प्रभावित हुई। सभी विपक्षी राजनीतिक दल केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं और उनके अतीत से परिचित हैं। वे जानते हैं कि मोदी का विरोध करने में केजरीवाल के साथ खड़े होने का अर्थ अपनी राजनीतिक आत्महत्या का प्रयास जैसी बात हो जाएगी। भाजपा के सूत्र केजरीवाल के इस सुझाव को हास्यास्पद मानते हैं कि नोटबंदी आदेश फिलहाल वापस लिया जाए और दो माह बाद पूरी तैयारी से कालेधन के खिलाफ अभियान शुरू हो जिसमें नए सिरे से नोटबंदी भी शामिल हो। कहा जा रहा है कि केजरीवाल की मांग मानने का अर्थ कालेधन को सफेद होने का मौका देना होगा। इससे आतंकवादियों, नक्सलियों और उग्रवादियों के साथ-साथ नकली नोटों के सौदागरों को तैयारी करने का अवसर मिल जाएगा। लोग जानना चाहते हैं कि केजरीवाल मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई एक बड़ी लड़ाई में पलीता लगाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? नोटबंदी ने केजरीवाल का हाल क्यों बेहाल सा कर दिया है?

Monday, November 14, 2016

अब लुटेरों का काला चि_ा खोलने की तैयारी (अनिल बिहारी श्रीवास्तव) 500 और 1000 हजार के पुराने नोटों पर लागू प्रतिबंध को लेकर कुछ राजनीतिक दल और क्षेत्रीय क्षत्रप जिस तरह की बयानबाजी और विरोध कर रहे हैं उसका जवाब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान यात्रा से लौटने के बाद एक विशाल सभा में दे दिया। उन्होंने नोटबंदी वापस लेने और छूट समय सीमा को कुछ बढ़ाने जैसी मांगों को सिरे से खारिज कर दिया है। मोदी ने साफ कर दिया है कि कालेधन के खिलाफ उनका अभियान जारी रहेगा। उनके पास अभी कई परियोजनाएं हैं जिन्हें भविष्य में लागू किया जाएगा। इसके लिए वह कोई भी नतीजे भुगतने को तैयार हैं। प्रधानमंत्री ने माना कि लोगों को हो रही असुविधा का उन्हें अहसास है। उन्होंने देशवासियों से सिर्फ पचास दिनों का समय मांगा है ताकि कालेधन के खिलाफ उनकी लड़ाई सफल हो सके। मोदी का भाषण लोगों के दिलों को छू देने वाला रहा। वह इस समय हो रही बेसिर-पैर की या आधारहीन आरोपों से लैस बयानबाजी नहीं थी। उसमें सरकार के अगुआ का आत्मविश्वास, अपने फैसले की सफलता को लेकर आश्वस्त होना और जनविश्वास मिलने को भरोसा साफ दिखाई दिया। यह सही है कि नोटबंदी के तुरन्त बाद प्रधानमंत्री के थाईलैंड और जापान यात्रा पर चले जाने के बाद यहां कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा की गई बयानबाजी और मीडिया के एक वर्ग द्वारा किए जा रहे कवरेज के पीछे छिपी मंशा ने आम लोगों के छोटे से हिस्से को विचलित सा कर दिया था लेकिन प्रधानमंत्री की स्वदेश वापसी और उनके वक्तव्य से निश्चित रूप से आश्ंाकाओं और अनिश्चितता के बादल छंट सकेंगे। नोटबंदी के फैसले को शुरूआत में ही व्यापक समर्थन मिलता दिखने लगा था। वास्तव में यह फैसला कुछ खास लोगों के लिए भौंचक कर देने वाला रहा लेकिन नोटबंदी के विरूद्ध जिस तरह से सबसे पहले कांगे्रस की ओर से विरोध हुआ वह चौंकाने वाला था। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी की अगुआ मायावती, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने नोटबंदी के विरूद्ध बयान दिए। तर्क दिया जा रहा था कि फैसले से आम लोगों विशेषकर किसानों, मजदूरों, गरीबों और महिलाओं को काफी असुविधा हो रही है। मुलायम सिंह यादव की यह मांग कतई भी व्यावहारिक नहीं कही जा सकती कि नोटबंदी लागू करने से लोगों को समय दिया जाना था। केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली ने सटीक कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा कि समय देकर क्या कालाधन रखने वालों को अपनी व्यवस्था कर लेने का मौका दिया जाता। जेटली कि बात सही है। आखिर बड़े फैसले अचानक ही लिए और लागू किए जाते हैं। उधर, मायावती आधारहीन तर्कों से लैस आरोप सरकार पर लगा रहीं थीं। उन्हें केन्द्रीय मंत्री उमा भारती की ओर से तीखे कटाक्ष का सामना करना पड़ा। उमाभारती के इस बयान पर गौर किया जाना चाहिए कि बहन मायावती को नोटों की मालाओं को छिपाने में परेशानी हो रही है इसलिए वह आदरणीय प्रधानमंत्री के फैसले की आलोचना कर रहीं हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फै सले के दूसरे दिन ही इसके विरूद्ध मैदान में कूद पड़ीं। वह एक ही राग गा रहीं हैं कि इससे गरीबों को परेशानी हो रही है। ममता बनर्जी नोटबंदी को वापस लेने की मांग तो कर रहीं हैं परन्तु उनके पास इस बात का जवाब नहीं मिल रहा कि कालेधन और नकली मुद्रा जैसी समस्या से कैसे निबटा जाए। ममता बनर्जी के विरोध से समझ आ रहा है कि इसके पीछे कारण विशुद्ध राजनीतिक है। वह स्वयं को गरीबों और आम आदमी का हमदर्द साबित कर अपनी मोदी विरोधी इमेज को चमकाने का प्रयास कर रहीं हैं। गौरतलब है कि ममता को इस काम में उनके गठबंधन के सहयोगी दलों का ही समर्थन नहीं मिला है। यहां तक कि उनके मित्र और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने नोटबंदी के फैसले का समर्थन कर दिया। जहां तक अरविन्द केजरीवाल का सवाल है तो उनक ी आये दिन कि बयानबाजी से लोगों के कान पक से गए हैं। केन्द्र सरकार के लगभग हर फैसले का विरोध और हर दूसरे दिन मोदी को कोसने के कारण केजरीवाल को गम्भीरता से लिया जाना कम होता जा रहा है। नोटबंदी के विरूद्ध कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का पॉश्चर प्रभावहीन माना जा रहा है। पैसे निकालने के लिए राहुल का एटीएम के सामने लाइन में लगना सियासी नाटक ही माना गया। मोदी की इस टिप्पणी को लोगों ने चटकारे लेकर पढ़ा और सुना कि जिन पर घोटालों के गम्भीर आरोप लग चुके हैं वह आज 4000 रुपए निकालने के लिए एटीएम के बाहर लाइन में लगे हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नोटबंदी को विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए सवाल उठाया है कि कालेधन के खिलाफ सरकार के इस फैसले से इन विपक्षी नेताओं को क्या समस्या है? आखिर यही विपक्ष कालेधन के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग करता रहा है। जेटली भी कमोवेश ऐसी ही टिप्पणी कर चुके हैं। जेटली ने जानना चाहा कि गरीबों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं को समस्या के नाम पर विरोध कर कुछ राजनीतिक दल अपने किस-किस प्रकार के हित साधने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में कालेधन और नकली मुद्रा ने हमारी अर्थ व्यवस्था के लिए गम्भीर खतरा खड़ा करना शुरू कर दिया था। इस धन का उपयोग आतंकवाद, मादक पदार्थों का गैरकानूरी व्यापार में भी हो रहा था। सरकार के फैसले से दो फायदे होने कि आशा की जा रही है। एक- नकली मुद्रा के फैलाव पर प्रभावी रोक लग सकेगी। दो- अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी। रियल एस्टेट सहित कई अन्य क्षेत्रों में दाम गिरने की आशा व्यक्त की जा रही है। इससे देश में कैशलेस व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाने के लिए माहोैल बनेगा। उल्लेखनीय है कि आम आदमी तमाम परेशानियों के बाद भी यह स्वीकार कर रहा है कि नोटबंदी के अच्छे नतीजे आएंगे। नोटबंदी लागू होने के बाद आशंका से भरा जो माहौल देश के विभिन्न भागों में दिखाई दिया उसके लिए सरकार को कुछ हद तक ही दोष दिया जा सकता है। इसके लिए विपक्षी नेताओं की बयानबाजी और कतिपय मीडिया समूहों द्वारा किया गया कवरेज भी जिम्मेदार है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता के दायित्वों के नाम फैसले का विरोध जैसा लक्ष्य साध कर कतिपय टीवी चैनलों ने कवरेज किए। ऐसे टीवी कवरेज देख कर अति साधारण समझ रखने वाला तक समझ रहा था कि इरादा सरकार की बखिया उधेडऩे का चल रहा है। सबसे तेज होने का दावा करने वाला एक टीवी चैनल तो मोदी के राष्ट्र के नाम प्रसारण के खत्म होने के आधा घण्टा बाद ही नोटबंदी फैसले के विरूद्ध टीका-टिप्पणी करने लगा था। चर्चा शुरू कर दी गई थी। चर्चा में भाग लेने वाले एक अतिथि ने नोटबंदी का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री की प्रशंसा करनी चाही तो उन्हें यह कह कर रोक दिया गया कि हमारी चर्चा का विषय किसी की स्तुति नहीं है। दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक मीडिया में एक अन्य वर्ग था जो नोटबंदी से आमजन को हो रही परेशानी सामने लाने के साथ-साथ इस फैसले के फायदे बताते जा रहा था। बहरहाल, मोदी के ताजा भाषण से अनिश्चितता और भ्रम का माहौल अवश्य सुधरेगा। मोदी ने जिस तरह के आक्रामक तेवर दिखाए और देशवासियों से सहयोग के लिए भावुक अपील की है उसका असर दिखना ही चाहिए। उन्होंने कालेधन वालों और भ्रष्ट तत्वों के विरूद्ध अपनी अन्य परियोजनाओं की बात कर अवश्य ही कई लोगों की नींद उड़ा दी होगी। प्रधानमंत्री ने यह तक कहा है कि पिछले 70 सालों से देश को लूटने वालों का काला चिट्ठा भी वह खोल सकते हैं इस काम के लिए अगर एक लाख लोगों को नौकरी देनी पड़ी तो वह ऐसा करने से झिझकेंगे नहीं। एक बात तो तय है कि मोदी सरकार ने कई लोगों का चैन छीन लिया है।

Thursday, November 10, 2016

बड़े और कड़े फैसले अचानक ही लिए जाते हैं (अनिल बिहारी श्रीवास्तव) 500 और 1000 के नोट अचानक बंद किए जाने की घोषणा के साथ ही प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया था। जो लोग अर्थ शास्त्र पर अधिकार रखते हैं और जिन्हें काले धन के खतरों की समझ है वे तो बोल ही रहे थे लेकिन इसके साथ उन लोगों ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिन्हें अर्थतंत्र की विशेष समझ नहीं है, जिन्होंने काले धन के बारे में सिर्फ सुना है और उसके दुष्प्रभाव को कभी प्रत्यक्ष तौर महसूस नहीं किया। प्रधानमंत्री के कदम का मोटे तौर पर स्वागत ही किया गया है। राजनीतिक कारणों से कुछ दलों और नेताओं ने दबी जुबान से समर्थन किया तो किसी ने स्वागत के साथ फैसले से जुड़ी खामियों गिना दीं। यहां दो प्रतिक्रियाओं का उल्लेख करना जरूरी लग रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उन्हें आम आदमी की परवाह नहीं है। इस तरह फैसला लिए जाने से किसानों, छोटे दुकानदारों और गृहणियों के लिए अत्यंत अस्त-व्यस्त करने वाली स्थिति पैदा हो गई है। असली अपराधी रियल एस्टेट या विदेशों में छुपाकर रखे गए अपने कालेधन से चिपककर बैठे हैं। बहुत बढिय़ा श्रीमान मोदी! गौरतलब है कि राहुल की प्रतिक्रिया से पहले कांगे्रस के कुछ बड़े नेता संतुलित अंदाज में मोदी के फैसले का स्वागत कर चुके थे। बहरहाल, दूसरी प्रतिक्रिया का उल्लेख करना जरूरी है। यह एक नितांत अल्प शिक्षित कड़ी मेहनत कर अपने परिवार को चलाने वाली महिला लक्ष्मी(परिवर्तित नाम) की है। यह महिला घरों में खाना बनाने का काम करती है। सुबह सात बजे से रात नौ बजे तक उसे खटते देखा जा सकता है। 9 नवम्बर की सुबह कहती सुनी गई- मोदी(जी) ने बढिय़ा काम किया है। उन्होंने काली कमाई वालों को जोरदार तमाचा मारा है। प्रधानमंत्री के फैसले के चलते लक्ष्मी को हुई चिन्ता सिर्फ इस बात की है कि उसकी झुग्गी में रखे पांच-पांच सौ के दो नोटों को बदलने बैंक तक जाना पड़ेगा परन्तु वह खुश है। दोनों ही प्रतिक्रियाओं में कितना अंतर है। दोनों व्यक्तियों की शिक्षा, स्तर और बौद्धिक समझ में जमीन-आसमान सा अंतर है। एक को प्रधानमंत्री के फैसले पर कथित शंकाएं हैं और दूसरे को प्रधानमंत्री पर भरोसा है। दरअसल, राहुल गांधी की प्रतिक्रिया में मैदानी वास्तविकताओं का अभाव दिखाई देता है। उसके पीछे कारण राजनीतिक हो सकता है। इस तरह के गम्भीर और चिंतन योग्य विषय पर कुछ भी कहने के पहले हवा का रुख देखना उचित होता है। कांगे्रस उपाध्यक्ष दीवार पर लिखी इबारत तक ठीक से क्यों नहीं पढ़ पा रहे हैं। अधिकांश उद्योगपतियों, अर्थशास्त्रियों, व्यावसायियों, राजनीतिक दलों तथा राजनेताओं और आम लोगों ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उधर, मोदी के आलोचकों की प्रतिक्रियाएं देखने पर तर्क की बजाय उनकी खीझ अधिक सामने आती है। यह खीझ सिर्फ राजनीति से जुड़े लोगों तक सीमित नहीं थी। इसकी झलक मीडिया के एक वर्ग में तक में देखी गई जो मोदी का राष्ट्र के नाम सम्बोधन खत्म होते ही नाक-भौंह सिकोडऩे लगा था। फैलाए गए भ्रम का प्रभाव था कि पेट्रोल पम्पों और एटीएम में लोगो की ऐसी लाइनें लगीं कि दूसरे दिन शाम तक कम नहीं हो सकीं। वित्तमंत्री अरूण जेटली की इस बात से कौन सहमत नहीं होगा कि सरकार के इस फैसले से कालेधन के कारोबारियों पर प्रभावी लगाम कस सकेगी। इससे आतंकवाद, मादक पदार्थों के कारोबार, कालाधन और भ्रष्टाचार में लिप्त तत्वों पर सीधी चोट पड़ी है। साथ ही दो नंबर में धन के लेने-देने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगने के साथ बैंकिं ग क्षमता में वृद्धि होगी। कुछ लोगों को शिकायत है कि सरकार ने 500 और 1000 के नोट बंद करने से पहले पर्याप्त समय नहीं दिया। वे आम आदमी की कथित मुश्किलों को गिना, ट्वीट कर और कुछ टीवी चैनलों पर नकारात्मक बहसों में भागीदारी कर माहौल बिगाडऩे की कोशिश करते दिखाई दिए। यह कारस्तानी कल रात से ही शुरू कर दी गई थी। क्या ऐसी हरकतों से सरकार के फैसले पर कोई फर्क पडऩे वाला है? मोदी सरकार ने गोपनीयता के साथ पूरी तैयारी कर रखी थी। ताजा खबर यह है कि बैंकों ने नई करंसी और छोटे नोट पहुंचाए जा चुके हैं। एकाध दिन में सब कुछ सामान्य हो जाएगा। अर्थ व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाले इस फैसले की सफलता की पूरी आशा है। आखिर ऐसे कड़े फै सले इसी तरह अचानक लिए जाते हैं। ढिंढोरा पीट कर काम किया जाता तब काला धन रखने वालों को बच निकलने का मौका नहीं मिल जाता?