Friday, September 30, 2016

Pakistan Hamara Dushman

खुल कर बोलें, पाकिस्तान हमारा दुश्मन है (अनिल बिहारी श्रीवास्तव) 70 साल होने को आए हैं हम यह बात खुल कर क्यों नहीं स्वीकार कर लेते कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन है। इन सात दशकों के दौरान भारत ने 70 बार से अधिक कोशिश की होगी कि पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य हो जाएं लेकिन हमारा यह बेशर्म, अडिय़ल, छिछोरा और असभ्य पड़ौसी अपनी फितरत से बाज नहीं आ रहा। उसका व्यवहार हमारे प्रति दुश्मन जैसा रहा है। दूसरी ओर हमारे यहां शुतुरमुर्ग प्रवृति के लोग हमेशा सच से मुंह छिपाते रहे। वे कभी हमारी संस्कृति, संस्कार और खान-पान का नाम लेकर या फिर पुरानी बातों का हवाला देकर दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्तों की वकालत करते रहे हैं। ऐसे लोगों से सिर्फ यह कहना है, कभी पाकिस्तानी फोैजियों, पूर्व फौजियों, सरकार चलाने वालों, राजनेताओं से लेकर आम लोगों तक उन बयानों, टिप्पणियों और प्रतिक्रियाओं पर नजर डालिए। पाकिस्तानियों की हर बात, हर शब्द में भारत और भारतीयों के प्रति ईष्र्या, कुढऩ और अपमानजनक भाव साफ दिखाई देता है। अफसोस होता है कि आज तक हम पाकिस्तानियों के दिमाग में भरी गंदगी को नहीं देख सके। कश्मीर घाटी में आतंकवादी बुरहान वानी को सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराये जाने के बाद पाकिस्तानियों का भौंड़ा विलाप कई देशों के लिए हैरान कर देने वाली बात रही। उरी में सेना की 12 ब्रिगेड हेड क्वार्टर पर आतंकवादी हमले से साबित हुआ है कि हमारा पड़ौसी एक आतंकवादी और नाकाम मुल्क है। वह कभी नहीं बदलेगा और न सुधरेगा। हमारी प्रगति, कामयाबी और ताकत से पाकिस्तानियों को ईष्र्या होती हेै। इन सच्चाइयों को जानते और समझते हुए भी हम सीना ठोंक क्यों नहीं कहते कि हां हम सभी भारतीय नागरिक पाकिस्तान को अपना शत्रु मानते हैं। रविवार, 18 सितम्बर 2016 को उरी में हुए आतंकवादी हमले ने 26/11 के मुम्बई हमले और इसी साल पठानकोट में वायुसेना अड्डे पर हुए हमलों की याद ताजा कर दी। उरी हमले को लेकर समूचे भारत में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। लोग चाहते हैं कि हमला करने और करवाने वालों के विरूद्ध कार्रवाई होनी चाहिए। मोदी सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान के विरूद्ध चौतरफा कार्रवाई होगी। सरकार के आश्वासन पर भरोसा कर लोग शांत भाव से कार्रवाई का इंतजार कर रहेे हैं। इस बीच पाकिस्तान द्वारा भारत के विरूद्ध परमाणु हमले की घमकी भी दी गई। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल धमकी मात्र है। पाकिस्तान जानता है कि ऐसा दुस्साहस उसके अस्तित्व को संकट में डाल देगा। शायद दुनिया के नक् शे से पाकिस्तान का नाम ही मिट जाए। फिर भी भारत को सतर्क रहना होगा क्योंकि एक असभ्य और गंवार पड़ौसी को समझना काफी कठिन होता है। मुंबई में आतंकी हमला हिला देने वाला था। केन्द्र की तत्कालीन संप्रग सरकार पर समूचे देश से भारी दबाव था। सरकार ने कुछ कदम उठाये थे। लेकिन अंदर-बाहर के दबावों के कारण पुन: संबंध बहाल कर लिए गए। मुंबई हमले के दोषी आज भी पाकिस्तान में छुट्टे सांडों के भांति घूमते हैं। भारत में लोगों ने मान लिया होगा कि उस तरह का हमला अब पाकिस्तान की ओर से नहीं होगा। यह गलतफहमी जल्द दूर हो गई। इसी साल की शुरूआत में पठानकोट में एयरफोर्स अड्डे पर आतंकी हमला किया गया। अब उरी में ब्रिगेड हेडक्वार्टर को निशाना बनाया गया। इस बात पर कौन भरोसा करेगा कि पाकिस्तान सरकार, सेना अथवा आईएसआई को इन हमलों की जानकारी नहीं रही होगी। पाकिस्तान सरकार और सेना के इशारे पर ही ये हमले किए गए हैं। इसे पाकिस्तानियेां की नपुंसकता कहना ही सही होगा। सैन्य हमला कर भारत के साथ युद्ध करने के बजाय वे आतंकवादियों का भारत के विरूद्ध उपयोग करते हैं। हमारे नागरिक और जवान उनके षडयंत्रों का शिकार होते आ रहे हैं। भारत मेें उठ रही यह मांग उचित है कि पाकिस्तान के साथ हर तरह के संबंध खत्म कर देने चाहिए। उसकी विध्वंसकारी हरकतों का जवाब जैसे को तैसा की नीति से देना चाहिए। उरी हमले के बाद लोगों में भारी आक्रोश है। कई तरह की बातें सुनने में आईं। मसलन, पाकिस्तान के विरूद्ध सीधी फौजी कार्रवाई हो, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आतंकवादी शिविरों पर हमला किया जाए, पाकिस्तान के साथ 1960 में पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया नदी जल समझौता रद्द कर दें, पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करवाने के लिए समूचे विश्व में अभियान चलाया जाए क्योंकि अधिकांश देश आतंकवाद से त्रस्त हैं और पाकिस्तान को दुनिया भर में आतंकवाद का सप्लायर माना जाने लगा है और पाकिस्तान को आर्थिक रूप से कमजोर कर देने के लिए हर संभव कदम उठाए जाने जरूरी है। उरी हमले के तुरंत बाद भारत के पक्ष में यह बात हुई है कि अमेरिकी कांग्रेस में एक विधेयक पेश किया गया जिसमें मांग की गई है कि पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाए। यदि यह विघेयक पारित हो जाता है तब पाकिस्तान की हालत पतली होते देर नहीं लगेगी। वैसे इस तथ्य को अवश्य ध्यान में रखा होगा कि लगभग सवा दो दशक पूर्व भी अमेरिका में पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने की मांग उठी थी। तत्कालीन अमेंरिकी प्रशासन इस पर सहमत नहीं था लेकिन आज हालात भिन्न हैं। अत: भारत को प्रयास करते रहना होगा। दुनिया मान चुकी है कि पाकिस्तान एक नाकाम देश है। धर्म के आधार पर पाकिस्तान की स्थापना हुई थी। धार्मिक कट्टरपन और अन्य समुदायों के प्रति नफरत के बीज पाकिस्तान के जन्म के समय ही पड़ गए थे। वहां पिछले सात दशकों के दौरान बच्चों के मस्तिष्क में दूसरों विशेषकर भारत के प्रति नफरत और घृणा को जहर भरा जाता रहा। पाकिस्तान के शासकों ने अपनी नाकामियों को छिपाने और राजनेताओं ने अपनी रोटियां सेंकने के लिए कट्टरपन को बढ़ावा दिया। लोगों में भारत के प्रति ईष्र्यां भडक़ाई गई। यह जानते हुए भी कि कश्मीर पर उनके दावे का कोई वैधानिक आधार नहीं है पाकिस्तानी शासक अपने यहां लोगों को कश्मीर के सपने दिखाते रहे। पाकिस्तानी राजनेता, शासक और सेना भी जानती है कि कश्मीर के एक हिस्से पर उन्होंने अवैध कब्जा कर रखा है। वे यह भली-भांति समझते हैं कि कश्मीर को पाकिस्तान कभी भी भारत से नहीं छुड़ा पाएगा। इसके बावजूद कश्मीर की आड़ में भारत में उनकी तमाम खुरापात की एक अलग वजह समझ में आ रही है। दरअसल भारत में आजादी के बाद हुए विकास, मजबूत हुई अर्थ व्यवस्था से सारे के सारे पाकिस्तानी कुढ़ते हैं। हमारी ओर से चूक यह होती रही कि हम छह-साढ़े छह दशकों के दौरान यह उम्मीद लगाए रहे कि एक न एक दिन इस दुष्ट पड़ौसी का दिल अवश्य बदलेगा। इस अटल सत्य की अनदेखी कैसे हो गई कि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती। भारत बार-बार पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य बनाने की कोशिशें करता रहा। इसके पीछे कभी बाहरी दबाव था तो कभी परिस्थितियों के चलते ऐसा किया जाता रहा। हमारे यहां कुछ दिग्भ्रमित विद्वानों ने भी कई बार सत्ताधीशों को बरगला कर पाकिस्तान के साथ संबंध बहाल कराने का प्रयास किया। पाकिस्तान के रोम-रोम में खुरापात, नफरत और जलन है। इसे हमारी तकदीर ही कहें कि दुनिया के अधिकांश देश पाकिस्तान को अच्छी तरह पहचान गए हैं। इसलिए जब वह भारत के विरूद्ध कु छ बोलता है तो इसे आमतोैर पर बकवास माना जाता है। आज अमेरिका,ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन सहित दर्जनों देश आतंकवाद से जूझ रहे हैं। वे जानते हैं भारत भी उनकी तरह आतंकवाद से ग्रस्त हेै। पाकिस्तान के कुकर्म पूरी तरह सामने आने के बाद जो सवाल उठे हैं उनमें एक बड़ा सवाल यह है कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए? भारत के लोगों और सुरक्षा बलों के जवानों को आतंकवादियों किए जाने वाले कायराना हमलों से कैसे बचाया जाए? अब तक सामने आती रही अपनी इस कमजोरी को स्वीकार करना होगा कि अब तक के आतंकी हमलों के बाद हमारे यहां सरकार से लेकर आम आदमी तक गुस्सा तो काफी उमड़ता रहा परन्तु वह ठण्डा भी जल्द होता रहा। इसी बात ने पाकिस्तान और उसके द्वारा भेजे जाने वाले आतंकवादियों के हौसलों को बढ़ा दिया। वे बार-बार दुस्साहस करते चले गए। चंूकि पाकिस्तान ने कारगिल के बाद से कोई प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई नहीं की है अत: उस पर सीधे फौजी हमला बोलने पर जोर नही दिया जाता रहा परन्तु और भी कई ऐसे रास्ते हैं जिनसे उसके कान मरोड़े जा सकते हैं। 1947,1965 और 1971 के युद्धों से पाकिस्तान ने सबक लिया है कि वह भारत के साथ सीधी फौजी कार्रवाई में उलझ कर घाटे रहा है। इसी लिए उसने आतंकवाद का भारत के विरूद्ध उपयोग करना शुरू कर दिया। यह काम वह 1965 से करता आ रहा है। उरी हमले के बाद विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि पाकिस्तान के विरूद्ध पूरे धैर्यपूर्वक लगातार और लम्बी कार्रवाई करनी होगी। उससे अनेंक मोर्चों पर लडऩा होगा। पाकिस्तान पर राजनीतिक और कूटनीतिक प्रहार किए जाएं और यहां सेना और सुरक्षा बलों को आतंकवादियों का मुंह तोडऩे के लिए खुली छूट दी जानी चाहिए। इन सबके साथ उसके आर्थिक चोट पहुंचाने का कोई अवसर नहीं छोडऩा होगा। इन विकल्पों को अपनाते हुए दया, उदारता और संस्कार जैसी बातों ताले में बंद रखना होगा। साफ बात यह है कि जब वो हमें दुश्मन मानते हैं तो हम उन्हें अपना दुश्मन क्यों नहीं मानें? कहां होती रही चूक कश्मीर घाटी के पृथकतावादी तत्व हों या वहां सक्रिय आतंकवादियों की बात करें अथवा उत्तर-पूर्व के उग्रवादियों को लें इन सब के मामले कोई पक्की रणनीति का अभाव साफ महसूस होता रहा है। यही बात कुछ राज्यों में मौजूद नक्सलवादियों के संदर्भ में की जा सकती है। इन्हें पनपने और फैलने से पहले ही कुचलने की जरूरत रही है। किसी बड़ी वारदात के बातें तो खूब की जातीं रहीं लेकिन विध्वंसकारी तत्वों को सख्ती से कुचलने के ठोस उपाय नहीं हो पाए। कभी राजनीति आड़े आ गई और कभी अनावश्यक उदारता। उग्रवादी, आतंकवादी, पृथकतावादी और विध्वंसकारी गतिविधियों में लिप्त लोगों को देश का दुश्मन मानने में संकोच क्यों होता रहा। ऐसे तत्वों को बेरहमी से कुचलने की छूट सुरक्षा बलों को दिए बगैर आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती। इस तरह के मामलों में अमेरिका, इजरायल और रूस से कुछ सीखने की जरूरत है। अपने शत्रुओं पर कार्रवाई में ये तीनों राष्ट्र जरा भी विलम्ब नहीं करते। रूस ने चेचेन पृथकतावादियों और आतंकवादियों को पूरी दृढ़ता के साथ कुचला। राष्ट्र और अपने लोगों की सुरक्षा के मामले में उसने कभी समझौता नहीं किया। स्वयंभू मानव अधिकारवादियों के विलाप की ओर ध्यान नहीं दिया। उधर, वल्र्ड टे्रेड सेंटर पर हमले के बाद कया कोई आतंकवादी संगठन अमेरिका में दुस्साहस कर पाया? 9/11 के उस हमले के बाद अमेरिका ने डेढ़ माह के अंदर पैट्रियाट एक्ट बनाया। सुरक्षा एजेंसियों को छानबीन की आजादी मिली। एफबीआई को और अधिक शक्ति शाली बनाया गया। आतंकी मामलों में अदालती आदेश की जरूरत समाप्त कर दी गई। हमारे सुरक्षाबल, पुलिस और गुप्तचर एक तरह से दांत के शेर की तरह बना दिए गए हैं। वो आतंकवादियों से कैसे जूझें। टाडा और पोटा के विरूद्ध बोटों के सौदागरों ने राजनीति शुरू कर इन कानूरों का मकसद ही पूरा नहीं होने दिया। आतंक से निबटने की चुनौतियां अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस जैसे देशेंा में आतंकवाद से निबटने के लिए गुप्तचर और सुरक्षा एजेंसियों को खुली छूट है। भारत में ऐसा नहीं है। यहां भ्रष्टाचार, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, घुसपैठ, छद्म धर्म निरपेक्षता, तुष्टिकरण, वोट बैेंक की राजनीति, हमारी उदार राष्ट्र के रूप में छवि और लोगों की मानसिकता ने समस्या खड़ी कर रखी है। दिल्ली के बटाला हाउस एन्काउंटर को याद करें। एक जांबाज पुलिस अधिकारी शहीद हो गया था। लेकिन कांगे्रस नेता दिग्विजय सिंह ने उस मुठभेड़ को फर्जी बता कर न केवल पुलिस अधिकारी की शहादत का अपमान किया बल्कि आतंकवादियों से आए दिन जूझने वाले सुरक्षा बलों के जवानों के मनोबल को प्रभावित किया होगा। जीरो टॉलरेन्स आतंकवाद और अन्य विध्वंसकारी गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश के लिए जीरो टॉलरेन्स की नीति जरूरी हो गई है। आतंकवादियों और उग्रवादियों से अपने तरीक से निबटने की छूट सुरक्षा बलों को मिलनी चाहिए। ऐसी ही व्यवस्था रूस में बताई जाती है। वहां चेचेन उग्रवादियों को जीरो टॉलरेन्स की नीति से कुचला जा सका। जिस व्यक्ति से राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा महसूस हो या जिसके हाथों निर्दोष लोगों के मारे जाने की आश्ंाका हो उसे किसी भी कारण से कैसे छोड़ा जा सकता है। भारत में आतंकवाद और उग्रवाद से लड़ रहे सुरक्षा कर्मियों को कानूनी संरक्षण पर विशेष जोर देना होगा।