भगवान विष्णु का वास क्षीरसागर है। इसे विष्णुलोक, वैकुंठ वगैरह नामों से भी जाना जाता है। विष्णु को सृष्टि का संचालक माना गया है, वे तीनों देवों में ऐसे हैं जो इस सृष्टि का पालन करते हैं फिर क्या कारण है कि भगवान विष्णु को धरती या स्वर्ग जैसे किसी स्थान की बजाय समुद्र का वासी माना गया है। वे शेषनाग पर लेटे हैं और हमेशा क्षीरसागर में ही रहते हैं, ऐसा क्यों? पुराणों और अन्य धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु जिस क्षीरसागर में रहते हैं वह कामधेनु गाय की पुत्री सुरभि के दूध से भरा है। वहीं पर भगवान विष्णु शेषशैया पर विश्राम करते हैं और वहीं से इस सृष्टि का संचालन करते हैं। वास्तव में यह प्रतीकात्मक स्वरूप है। अगर दार्शनिक या व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो क्षीरसागर, शेषनाग आदि सभी सांकेतिक हैं। दरअसल भगवान विष्णु सृष्टि के संचालक हैं और मूलत: वे एक गृहस्थ के प्रतिनिधि हैं। इसलिए भगवान विष्णु या कृष्ण सभी कर्म को महत्व देते हैं।
क्षीरसागर इसी दुनिया का प्रतीकात्मक रूप है। यह दुनिया भी क्षीरसागर की तरह अथाह है और इसमें सागर के पानी जितने ही सुख-दु:ख भी हैं। जिस शेषनाग पर भगवान लेटे हैं, वह मूलत: गृहस्थ जीवन का प्रतीक है। व्यक्ति संसार में सबसे ज्यादा गृहस्थी की जिम्मेदारियों से बंधा होता है। जिसमें परिवार, समाज, देश, गुरुजन और आत्मकल्याण ये पांच जिम्मेदारियां उसकी गृहस्थी से जुड़ी होती हैं। ये ही शेषनाग के पांच फन हैं। विशेष बात यह है कि ये पांच जिम्मेदारियां ही हमारा सबसे बड़ा सहारा और आश्रय भी है। जिम्मेदारियों और हमारे आश्रय के बीच का सामन्जस्य ही गृहस्थी को सफलतापूर्वक चला सकते हैं।
Tuesday, November 2, 2010
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