Friday, March 23, 2012

श्री श्री ने दिखाया आईना

(अनिल बिहारी श्रीवास्तव) आध्यात्मिक गुरू तथा आर्ट आफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर की एक टिप्पणी पर केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल की प्रतिक्रिया अवांछनीय की श्रेणी में रखने योग्य है। सरकारी स्वूâलों के संबंध में श्री श्री रविशंकर के विचारों का कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ने विरोध किया है। भाजपा के शाहनवाज हुसैन श्री श्री रविशंकर के विचारों से असहमत दिखे। उन्होंने बयान की निंदा की है। लेकिन कांग्रेस नेता और केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल फट से पड़े। सिब्बल ने कहा, ‘‘श्री श्री ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है। वंâई मंत्री और राष्ट्र्रपति तक सरकारी स्वूâलों से पढ़कर निकले हैं।’’ आध्यात्मिक गुरू के बयान पर प्रतिक्रिया के स्तर से ही साबित हो जाता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों के लोगों ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि श्री श्री ने यह बात किस संदर्भ में की तथा सरकारी स्वूâलों से उनका अभिप्राय क्या था? तथ्यों को जाने बगैर विरोध में जुबान फटकारना सियारों के झुण्ड द्वारा मचाए जाने वाले शोर से कम थोड़े ही होता है। खबर है कि अंबाबाड़ी के आदर्श विद्या मंदिर स्वूâल में आयोजित कार्यक्रम में श्री श्री ने कहा, ‘‘ प्राइवेट स्वूâलों में सरकारी स्वूâलों से अधिक अनुशासन है। सरकारी स्वूâलों में पढ़े बच्चों में संस्कार नही होते हैं। इसी वजह से वे हिंसा और नक्सलवाद की तरफ बढ़ रहे हैं। सरकार को सरकारी स्वूâल बंद कर देना चाहिए। प्राइवेट स्वूâलों को नक्सल प्रभावित इलाकों में जाकर शिक्षा देने का काम करना चाहिए।’’ निष्पक्ष राय यह है कि श्री श्री के उपर्युक्त बयान को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। उसमें थोड़ी सच्चाई अवश्य है। नवोदय विद्यालय एवं केन्द्रीय विद्यालय तथा सरकारी उपक्रमों द्वारा संचालित स्वूâलों से हटकर विचार करने में हमें इस तथ्य को स्वीकार करने पर विवश होना पड़ेगा कि अधिकांश राज्यों में सरकारी स्वूâलों की हालत बहुत खराब हैं। बच्चों को अच्छे संस्कार देने की बात छोड़िये, वहां पढ़ाई तक सही और पूरी नहीं होती है। कहीं शिक्षकों का अभाव है, कहीं आरक्षण और जुगाड़ के रास्ते ऐसे लोग मास्साब बन बैठे जिन्होंने खुद की पढ़ाई घिसट-घिसट कर पूरी की होगी। ज्ञान-दान के माहात्म के चलते वे शिक्षक नहीं बने। सुरक्षित सरकारी नौकरी और अच्छे वेतन के मोह ने कई अयोग्य लोगों को शिक्षक बनवा रखा है। इस देश के गांवों और कस्बों में लाखों ऐसे स्वूâल मिल जाएंगे। जिनका न तो अपना ठीकठाक भवन है और न ही ज्ञान की वर्षा करने वाले गुरूजन है। श्री श्री रविशंकर ने आँखें खोल देने वाली बात की है। उनके अनुसार व्यक्तित्व के निर्माण में २५ प्रतिशत योगदान ईश्वर कृपा का होता है। २५ प्रतिशत परिवार का, २५ प्रतिशत स्वूâल का तथा २५ प्रतिशत योगदान मित्रों का होता है। परिवार और शिक्षण संस्था का माहौल ही बच्चे के आधे व्यक्तित्व का निर्माण कर देता है। यहां अच्छे संस्कार मिलने पर बच्चा मित्र भी अच्छे बनाता है। इन तीन परिस्थितियों में अनुवूâलता रहने पर ईश्वर कृपा सुनिश्चित होती है। ऐसा बच्चा बड़े होने पर कुसंस्कारी, भ्रष्ट, अनुशासनहीन और राष्ट्रद्रोही हो ही नहीं सकता। इस कड़वे सच को स्वीकार करना होगा कि प्रायवेट स्वूâलों और सरकारी स्वूâलों के बीच शिक्षण स्तर तथा माहौल में जमीन आसमान सा अंतर है। परिवार अथवा स्वूâल का जैसा माहौल होगा बच्चा बड़ा होकर वैसा ही परिणाम देगा। श्री श्री रविशंकर की टिप्पणी का विरोध करने वालों, विशेषकर कपिल सिब्बल, को किसी भी एक जिले में सरकारी स्वूâल और प्रायवेट स्वूâल की स्थितियों, उनके शिक्षा स्तर, अन्य गतिविधियों का तुलनात्मक अध्ययन करवाना चाहिए। यह पता लगाया जाए कि संबंधित जिले से पढ़कर ऊपर उठे कितने लोगों ने राजनीति, प्रशासन, समाजसेवा, चिकित्सा और पत्रकारिता जैसे पेशों में अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया और उन्होंने किन स्वूâलों से उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की थी। इसके अलावा सरकारी स्वूâलों से निकल कर अपराध की दुनिया, अंडर वल्र्ड में छा जाने वाले लोगों के आँकड़े एकत्र करने चाहिए। दूध का दूध और पानी का पानी होते कितनी देर लगेगी? आज के युवकों में बढ़ती अनुशासनहीनता तथा उदण्डता के लिए निश्चित रूप से उनका परिवार और शिक्षण संस्थाएं और आसपास का सामाजिक माहौल जिम्मेदार हैं। एक भ्रष्ट, आपराधिक मानसिकता वाले और संस्कारहीन व्यक्ति की संतान में अच्छे संस्कारों की आशा वैâसे की जा सकती है? बच्चे कच्ची माटी की तरह होते है। सरकारी स्वूâल के किसी भले शिक्षक के साथ गुरू-शिष्य रिश्ते की पवित्र डोर बंध गई तो सब भला हो जाता है अन्यथा जो होता है उसे सभी जानते, देखते और समझते हंैं। संस्कार की पहली पाठशाला परिवार हैं। व्यक्तित्व विकास की पहली सीढ़ी परिवार होते हैं। अतः जरूरत अच्छे स्वूâलों अकेले की नहीं हैं। आवश्यकता चरित्र के मामले में २४ वैâरेट सोने जैसे खरे अभिभावकों की भी होती है। इस देश को कुछ बातों के लिए निजी स्कलों का आभारी होना चाहिए। निजी स्वूâल भले ही मोटी फीस वसूलते हैं परतु शिक्षा और अनुशासन के मामले में वे अधिकांश सरकारी स्वूâल से बेहतर ही मिलते रहे हैं। स्तरहीन शिक्षा के कलंक से बचने की वो भरसक कोशिश करते हैं। गत वर्ष कर्नाटक के रायचूर जिले में द्वितीय प्री यूनिवर्सिटी परीक्षा में शामिल हुए ९३४२ विद्यार्थियों में से ६९.९१ प्रतिशत पेâल हो गए थे। इनमें से अधिकांश विद्यार्थी ग्रामीण क्षेत्रों से आए थे। विशेषज्ञों ने कहा था कि ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के घटिया स्तर के कारण ऐसा परिणाम आया। कर्नाटक के उस परिणाम को हांडी के चॉवल की तरह लें। ऐसे नाकाम छात्रों में से कुछ छात्र यदि गैर कानूनी काम करने वालों के जाल में पँâस जाएं तो आश्चर्य नही होगा। उन्हें न अच्छी शिक्षा मिली और न अच्छे संस्कार मिले होंगे। श्री श्री के कथन की पुष्टि रायचूर का उपर्युक्त उदाहरण करता हैं। बेहतर होगा कि सिब्बल स्वयं अपनी मानसिक स्थिति की फिक्र करें। आखिर बच्चों को अच्छा ज्ञान दिलवाना उन्हीं की जिम्मेदारी है।

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