(अनिल बिहारी श्रीवास्तव)
डॉ. बिनायक सेन इस देश में नियमित रूप से अखबार पढऩे और टीवी चैनलों पर समाचार सुनने वालों के लिए जाना-पहचाना नाम है। सवाल यह है कि इस व्यक्ति के नाम के आगे किस विशेष ‘अलंकरण’ का उपयोग करना उचित होगा? स्वयंभू मानव अधिकार कार्यकर्ता, नक्सलियों का कूरियर, राष्ट्रद्रोही, विध्वंसकारी ताकतों का साथी या फिर खलनायक? छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने बिनायक सेन को राजद्रोह का दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा क्या सुनाई, रायपुर से लेकर कोलकाता तक, दिल्ली से लेकर लंदन और अमेरिका तक बिनायक सेन के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोग बौखला गए।
मानव अधिकारों की रक्षा के नाम पर सक्रिय ताकतें, कुछ बुद्धिजीवी और कतिपय कानूनविद फैसले के विरुद्ध जुबान फटकारने में जुट गये हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजिन्दर सच्चर फैसले पर चौंके हैं। कहने का मतलब वह नाखुश हैं। नाराज तो सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण भी बताये गये। वह सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले का हवाला देकर बताना चाह रहे हैं कि सेन को सुनाई गई सजा गलत है। मीडिया में भी बिनायक सेन के इक्का-दुक्का शुभचिंतक हैं। उन्होंने फटाफट कलम दौड़ाकर अपना निष्कर्ष पटक दिया कि बिनायक सेन के साथ न्याय नहीं हुआ। एक ओर देसी ज्ञानी अपना ज्ञान और कलम बिनायक गान में रगड़ रहे, वहीं दूसरी ओर एमेनेस्टी इंटरनेशनल ने आरोप लगा दिया कि बिनायक के मामले में निष्पक्ष सुनवाई के अंतरराष्ट्रीय मानदण्डों का पालन नहीं किया गया। एमेनेस्टी का दुस्साहस देखिये, वह सरकार से कह रही है कि बिनायक के विरुद्ध सारे आरोप वापस लेकर उसे मुक्त किया जाए।
दरअसल, बिनायक के मामले में जिस तरह मानव अधिकार कार्यकर्ता, इक्का-दुक्का बुद्धिजीवी और कानूनविद तथा एमेनेस्टी वाले बीच में कूदे हैं । वह उस न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप जैसी बात है जो अभी पूरी नहीं हुई । जब बिनायक सेन की पत्नी और उसके वकील ने हाईकोर्ट में अपील करने की घोषणा कर दी है फिर इतनी हायतौबा या राष्ट्र के साथ बौद्धिक बलात्कार का प्रयास आखिर क्यों? ऐसी बयानबाजी को भावी न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कहा जा सकता है। एक पल को मान लें कि अभियोजन पक्ष के तमाम तर्क, तथ्य और सबूत गलत थे और सुनवाई पूरी तरह निष्पक्ष नहीं रही तब भी क्या ऊपरी अदालत में न्याय मिलने की गुंजाइश नहीं है। बिनायक सेन पर राज्य के खिलाफ संघर्ष का नेटवर्क तैयार करने के लिए माओवादी नक्सलियों के साथ साठगांठ करने का था। आरोप यह भी है कि उसने जेल में कैद नक्सली सान्याल के कूरियर के तौर पर काम किया और सान्याल के संदेश भूमिगत नक्सलियों तक पहुंचाये थे। एक विद्वान पत्रकार ने सेन के संदर्भ में लिखा है कि ‘‘ वैचारिक मतभेद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र में दिखाई देते रहे हैं। वैचारिक मतभेद रखने वालों को शत्रु नहीं माना जा सकता।’’ इस तरह के संवाद सुनने में अच्छे लगते हैं। बिनायक सेन ने जिन लोगों तक सान्याल के संदेश पहुंचाये वे हथियारमंद गिरोह के सदस्य हैं, उन्होंने कितने ही निर्दोष नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों की हत्या की है और वे हथियारों के बूत्ते इस देश की सत्ता पर कब्जा करने का सपना देख रहे हैं। बिनायक सेन यदि बेकसूर है तब बड़ी अदालत से उसे न्याय अवश्य मिलेगा। वैसे बिनायक सेन से इतने नैतिक बल की आशा अवश्य की जाती है कि अगर उसने इस देश का कानून तोड़ा है तो इस बात को स्वीकार कर चुपचाप दण्ड भोगे। झूठे टोटकों के सहारे आखिर कैसे सजा से बचा जा सकता है।
Monday, December 27, 2010
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