Monday, December 27, 2010

उमा भारती अनप्रिडिक्टेबल हैं

(अनिल बिहारी श्रीवास्तव)
भारतीय जनता पार्टी में वापसी की अटकलों के बीच उमा भारती ने एक बार फिर विवादित बयान दे दिया। ऐसा वह क्यों करती या कहतीं हैं इस बारे में राजनीतिक गलियारों में दो तरह के विचार सुनने में आए। एक पक्ष का कहना है कि वह अपना महत्व बनाये रखने के लिए सोच-समझ कर ऐसे बयान देतीं है ताकि संदेश यह जाए कि भाजपा में लौटने की उन्हें गरज नहीं है। जरूरत भाजपा वालों की है जो उन्हें पार्टी में लौटने पर राजी करने की कोशिश कर रहे हैं।
एक अन्य पक्ष का मानना है कि उमाभारती के लिए सबसे उपयुक्त शब्द ‘अनप्रिडिक्टेबल’ है जिसका शब्दकोषों में अर्थ अननुमेय और तरंगी बताये गए हैं। अर्थात, ऐसा व्यक्ति जिसके विषय में कहना मुश्किल है कि वह कब क्या कर या कह बैठे। हाल के वर्षों में कांग्रेस के एक बड़े नेता ने उमाभारती के लिए अंग्रेजी भाषा के इसी शब्द का उपयोग किया था। बाद में भाजपा में ही कई नेताओं ने दबीजुबान से उक्त कांग्रेसी नेता की टिप्पणी का समर्थन किया था। उमाभारती ने जीवन में लंबा संघर्ष और त्याग किया है। उनकी उपलब्धियां साधारण नहीं हैं। उनके विरोधी तक मानते है कि राजनीति से जुड़े कुछ व्यावहारिक पक्षों का उन्होंने ध्यान रखा होता तब वह आज भाजपा की अगली पंक्ति के नेताओं में होतीं। लेकिन, उमाभारती स्वयं को बदलने के लिए शायद तैयार नही हैं। ‘‘पल में रत्ती पल में माशा और जरा में गुस्सा जरा में प्रसन्न’’ होने वाला उनका मन अधिकांश लोगों को परेशान कर देता है। बात यही खत्म नहीं हो जाती। उनके शुभचिन्तकों को तकलीफ उस समय अवश्य होती होगी जब उमाभारती उन्हीं के हित में किये जा रहे शुभचिन्तकों के प्रयासों को पलीता लगा देती हैं। उमाभारती की भाजपा में वापसी को लेकर गत एक-डेढ़ वर्ष के दौरान कई बार बातें हुईं, विरोध हुआ। याद करें हर बार उमाभारती की ओर से कोई कड़वा बयान आ गया।
पिछले दिनों उन्हें उत्तरप्रदेश में भाजपा को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सौंपे जाने की खबरें मीडिया में आई। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार मध्यप्रदेश भाजपा में उनकी वापसी का विरोध हो रहा है और उत्तरप्रदेश में भाजपा को तेजतर्रार नेता की जरूरत है। सुनने में आया कि यह फार्मूला वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और संघ नेतृत्व की सहमति से तैयार किया गया था। खास बात यह रही कि उमाभारती की वापसी की खबर को लेकर उत्तरप्रदेश भाजपा के नेताओं के उदर खदबदाने लगे। उन्हें आशंकाओं ने बेचैन कर दिया। यूपी वाले फामूले पर अभी मामूली सा काम हुआ होगा किन्तु साध्वी ने बयान दे दिया, ‘‘ भाजपा में सुषमा स्वराज, अरूण जेटली और वेंकैया नायडू जैसे जनाधार विहीन नेता उनका विरोध कर रहे हैं। ये सभी संगठन में बड़े पदों पर है अत: भाजपा में लौटकर भी इन सभी को झेलना उनके लिए मुश्किल होगा। ‘‘ उमा ने अचानक यू टर्न ले लिया। उन्होंने बहुत साफ शब्दों में कह दिया कि वह भाजपा में नहीं लौट रही हैं। उमाभारती के ऐसे व्यवहार और बयान ने किसे हक्का-बक्का नहीं कर दिया होगा। खुले आम ऐसी टिप्पणी करने से पहले साध्वी ने एक पल के लिए इस वास्तविकता पर विचार नहीं किया कि इससे उन शुभचिन्तकों की स्थिति क्या होगी जो उन्हें पार्टी में लाना चाह रहे हैं। वह भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बात कह चुकी हैं। भारतीय जनशक्ति नाम से किया गया उनका प्रयोग कमोवेश फ्लाप रहा। इन तमाम सच्चाइयों के बीच एक सवाल खड़ा है कि उमाभारती भविष्य में करेंगी क्या ? उनके एक आलोचक ने कटाक्ष किया वह ‘‘अनप्रिडिक्टेबल’’ है।

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