---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में पंद्रह वर्षीय एक किशोरी की दुपहिया वाहन दुर्घटना में मौत से आहत नीमा समाज ने बच्चों को वाहन चलाने देने के संबंध में जो निर्णय लिये उन पर सभी अभिभावकों को अवश्य ध्यान देना चाहिए। खबरों के अनुसार समाज ने निर्णय लिया है कि अब कोई भी अभिभावक अपने १८ साल से कम उम्र के बच्चों को वाहन चलाने की अनुमति नहीं देगा। १८ साल से अधिक उम्र के बच्चों को पहले वाहन चलाने का विधिवत प्रशिक्षण लेकर यातायात नियमों को जानना होगा। इसके बाद ही वे ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करेंगे। निश्चित रूप से नीमा समाज की यह पहल अनुकरणीय है। देश में इस समय जिस तेजी से सडक़ दुर्घटनाओं और उनमें मरने वालों की संख्या बढ़ रही है उसके साथ एक तथ्य यह जुड़ा है कि दुर्घटनाओं में दुपहिया वाहन सवारों की संख्या काफी अधिक है। ऐसा क्यों हो रहा है? मोटे तौर पर समझ में यह आता है कि देखा-देखी और होड़ के चलते बच्चे माता-पिता पर दुपहिया वाहन के लिए दबाव डालते हैं। कभी माता-पिता दबाव में आकर दुपहिया वाहन दे देते हैं और कभी अपनी सुविधा के लिए ऐसा करते हैं। कुछ अभिवाहक यह देखकर फूले नहीं समाते कि उनका बेटा या बेटी (जो पाय:१८ वर्ष से कम आयु के ही होते हैं) कैसे फर्राटे से मोटर साइकिल दौड़ा लेते हैं। ऐसे ही बच्चों के साथ दुर्घटना की स्थिति अक्सर बनते देखी जाती है। नि:संदेह १६ वर्ष से अधिक के बच्चों को बिना गियर की दुपहिया वाहन चलाने की अनुमति है लेकिन उसे चलाने से पूर्व तेज रफ्तार के जोखिम और यातायात नियमों के बारे में जानकारी होनी ही चाहिए। देखा यह जा रहा है कि संतुलन साध लेने, रफ्तार बढ़ाने-घटाने की समझ और ब्रेक लगाना सीख लेने को पर्याप्त मान लिया जाता है। जबकि इसके साथ यातायात नियमों के कड़ाई से पालन की शिक्षा जरूरी होती है। जब से तेज रफ्तार मोटर साइकिलों का चलन बढ़ा है दुर्घटनाओं की संख्या काफी बढ़ गई। छोटे-छोटे शहर से लेकर महानगरों की सडक़ों पर इन आधुनिक फटफटियों की धमा चौकड़ी देखी जा सकती है। इस मामले में नव धनाढ्यों की संतानें आगे पाई जाती हैं। वे अपनी जान जोखिम में डालने के साथ-साथ दूसरों के जीवन पर भी संकट खड़े करते रहते हैं। पुलिस रिकार्ड छान लिये जाएं ऐसे सैकड़ों मामले सामने आ जाएंगे जिनमें किसी किशोर या युवक दुपहिया वाहन चालक की गफलत से किसी की जान चली गई या कोई जीवन भर के लिए लाचार बन गया। इस स्थिति के लिए तीन पक्ष जिम्मेदार माने जा सकते हैं। एक-बच्चों को बगैर प्रशिक्षण के दुपहिया वाहन थमाने वाले माता-पिता, दो-सडक़ परिवहन विभाग जहां कुछ रुपये दलालों के माध्यम से रिश्वत देकर आसानी से ड्राइविंग लायसेंस थमा दे दिया जाता है और तीन-ट्रैफिक पुलिस जो आमतौर पर वसूली में ही व्यस्त रहती है। पिछले दिनों एक खबर आई थी। सरकार ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर सजा और जुर्माने के प्रावधानों को कड़ा कर रही है। सवाल उठता है कि इससे होगा क्या? पहले आप ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को सख्त बनाइये? बिना लाइसेंस वाहन चलाने वालों पर भारी जुर्माने का प्रावधान हो। नाबालिग बच्चे वाहन चलाते मिलें तो अभिभावकों पर दस गुना जुर्माना लगाया जाये। इसके बाद ही स्थिति में सुधार की गुंजाइश है। लेकिन नीमा समाज ने एक अभूतपूर्व रास्ता दिखाया है। सभी समाजों को विचार करना चाहिए कि हमारे बच्चों का जीवन अमूल्य है। उसकी रक्षा के लिए कुछ कड़े फैसले लेना ही चाहिए ताकि बाद मेें पछताना न पड़े।
Sunday, March 6, 2011
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