---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लीबियाई शासक मुअम्मर गद्दाफी को नया अल्टीमेटम दिया है। ओबामा का कहना है कि गद्दाफी के विरुद्ध बढ़ते जन आंदोलन के कारण उन्हें अब पद छोड़ देना चाहिए। दरअसल, अमेरिका को चिंता इस बात को लेकर है कि गद्दाफी की वफादार सेना एक बार फिर भारी पडऩे लगी है गद्दाफी के वफादारों ने विद्रोहियों के कब्जे से कुछ क्षेत्रों को मुक्त करा लिया है। लीबिया के घटनाक्रमों और गद्दाफी को पदच्युत कराने में अमेरिका और उसके पश्चिम दोस्तों की बढ़ती रुचि से आशंका यह होने लगी है कि लीबिया का हश्र इराक जैसा हो सकता है। लीबिया एक ऐसे लंबे गृहयुद्ध में उलझने जा रहा है जिसके बाद स्थायी शांति की आशा अगले कई सालों तक संभव नहीं दिखती। पिछले एक पखवाड़े के दौरान कुछ बातें स्पष्ट रूप से समझ में आई हैं। जैसे अमेरिका गद्दाफी के विरुद्ध सैन्य बल का उपयोग करने को छटपटा रहा है लेकिन इस मकसद की पूर्ति में सबसे बड़ा रोड़ा रूस, चीन और भारत हो सकते हैं। अमेरिका जैसी मनोदशा फ्रांस और ब्रिटेन की देखी जा रही है। फ्रांस और ब्रिटेन पहले ही लीबिया को नो फ्लाई जोन घोषित कर चुके हैं। ताजा रिपोर्टो से साबित हो चुका है कि ब्रिटेन ने पहले से ही अपने जासूस लीबिया में छोड़ रखे थे। अत: यह आरोप लगाने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिए कि लीबिया में चल रहे मौजूदा विरोधी आंदोलन की रूपरेखा लंदन, पेरिस और वाशिंगटन में तैयार की गई होगी तथा मौजूदा प्रदर्शनों के रिमोर्ट कंट्रोल इन्हीं तीन राजधानियों में हैं। यह उत्सुकता का विषय हो सकता है कि लीबिया के नागरिकों के कथित दमन को लेकर आज अमेरिका, ब्रिटेन फ्रांस और यूरोपीय संघ इतना क्यों विचलित हैं? मुअम्मर गद्दाफी को इस तरह धमकियां क्यों दी जा रही हैं। हैरानी की बात है कि अमेरिका ने अपनी बातें संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव के मुंह से निकलवा कर अपने तर्कों को न्यायोचित ठहराने की कोशिश तक कर डाली। नि:संदेह मुअम्मर गद्दाफी को एक तानाशाह ही माना जाएगा। लीबिया के इस शासक के अब तक के कार्यकाल के दौरान आम लोगों को उतनी आजादी न मिली हो जैसी कहीं और देखी जा जाती है लेकिन यह भी सच है कि गद्दाफी ने पूरी दमदारी से चार दशकों तक लीबिया को एकसूत्र में बांधे रखा। गद्दाफी के आत्मविश्वास पूर्ण व्यवहार को लोग अकड़ कह सकते हैं। यही अकड़ अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की आंखों में मिर्च की तरह पीड़ा देती रही। गद्दाफी को सउदी अरब और मिस्र के पूर्व शासकों की तरह अमेरिका के समक्ष कभी मिमियाते नहीं देखा गया। दुनिया में इस तानाशाह के दोस्त भी कम नहीं है। भारत, रूस और चीन से लीबिया के रिश्ते ठीक-ठाक रहे हैं। ईरान, निकारागुआ, क्यूबा और ब्राजील के साथ लीबिया के संबंध बहुत अच्छे हैं। ईरान ने खुली धमकी दी है कि यदि लीबिया पर हमला किया गया तो वहां अमेरिका सैनिकों की कब्रगाह बना दी जाएगी। दरअसल, ऐसा लगता है कि अमेरिका वही गलती या साजिश लीबिया में दोहराने जा रहा है जो इराक में सद्दाम हुसैन के विरुद्ध की गई थी। एक आधुनिक इराक को अमेरिकी साजिश ने हिंसा ग्रस्त राष्ट्र में बदल डाला। अमेरिका ने अपनी कठपुतली सरकार बैठा दी परन्तु कहना मुश्किल है कि इराक में कल क्या होगा? लीबिया में अमेरिकी मंडली की रुचि गद्दाफी को सत्ता से हटाने तक सीमित नहीं है। यह क्यों न कहें कि इराक की तरह लीबिया के तेल के लिए यह सारा झगड़ा है। जार्ज डब्ल्यु बुश की सनक के चलते इराक बर्बाद हो गया। बराक ओबामा लीबिया को तहत-नहस करने पर उतारु हैं।
Thursday, March 17, 2011
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