---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
कहना मुश्किल लग रहा है कि चित्रकार प्रणब प्रकाश की उस पेंटिंग की आलोचना करें या चुप रहा जाए जिसमें बूकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुंधति राय को बिस्तर पर चीनी नेता माओ और अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के साथ नग्रा लेटे हुए चित्रित किया गया है। प्रणब प्रकाश इससे पहले प्रसिद्ध चित्रकार एम.एफ. हुसैन की न्यूड पेंटिंग बनाकर खबरों में रह चुके हैं। माओ और लादेन के साथ अंरुधति राय के न्यूड पेंटिंग बनाने के लिए प्रणब प्रकाश का अपना तर्क है। उनका कहना है कि ‘‘अरुंधति राय उन बेरहम नक्सलियों का समर्थन करती हैं जिन्होंने बेकसूर भारतीयों के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है।’’ यह लेखिका उन निर्दयी कश्मीरी हत्यारों के साथ सांठगांठ करती रही है जिन्हें अपने कृत्य पर रत्तीभर पश्चाताप नहीं होता।’’ प्रणब प्रकाश यही नहीं रुक रहे हैं। उन्होंने बुद्धिजीवी समुदाय के उन लोगों पर भी प्रहार किया जो अरुंधति राय का समर्थन करते हैं। ‘‘प्रणब का कहना है, ये लोग प्रचार की धुन में उस भूखे बंदर की तरह नाचते हैं जो एक केला खाने को मिलने की आशा में मदारी द्वारा बजाये जा रहे डमरू की आवाज में नाचता है।’’ प्रणब प्रकाश के पेंटिंग पर अंरुधति राय और उनकी बौद्धिक-वानर सेना की ओर से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया सुनने में नहीं आई है।’’ वैसे भी वे किस मुंह से प्रणब प्रकाश की पेंटिंग का विरोध कर सकते हैं। जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अरुंधति राय और उनकी Ÿोणी के अन्य तथाकथित बुद्धिजीवी, तमाम बकबक करते हैं, उसी अधिकार का उपयोग प्रणब प्रकाश ने किया है। अरुंधति राय को लिखना और जुबान हिलाना आता है। प्रणब प्रकाश को कैनवास पर कूची के सहारे रंग बिखेरने की कला की गहरी समझ है। अरुंधति राय जुबान से निकले हजारों शब्दों का जवाब प्रणब प्रकाश ने एक चित्र बनाकर दे दिया। निश्चित रूप से उवत पेंटिंग को सिरफिरों की अक्ल को दुरुस्त कर देने वाला माने अरुंधति राय में हत्यारों और अलगाववादियों के प्रति हमदर्दी और मोहब्बत उमड़ती है। अत: उन्हें समझ लेना चाहिए कि करोड़ों राष्ट्र भक्तों को अरुंधति के नाम से या उनकी शक्ल देखकर वमन को जी करता है। उसकी अभिव्यक्ति प्रणब प्रकाश की यह पेंटिंग कर गई। एक नारी के रूप में अरुंधति की हैसियत के बावजूद यहां उनका समर्थन करने की इच्छा नहीं हो रही है। प्रणब प्रकाश ने प्रचार के भूखे कतिपय बुद्धिजीवियों पर बड़ा सटीक प्रहार किया है। ये अपनी सिरफिरी सोच से सरकार के फैसले प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। बिनायक सेन का मामला ही लें। छत्तीसगढ़ की अदालत ने इस माओवादी को दोषी पाकर सजा सुनाई है लेकिन तथाकथित मानव अधिकारवादी और प्रचार के भूखे बुद्धिजीवी अदालत के फैसले को ही गलत बताने में जुट गये। रैलियां और प्रदर्शन आयोजित किये गये। अंग्रेजी मीडिया में बैठी वामपंथी लॉबी ने बिनायक सेन के समर्थन में अपनी पूरी ताकत झोंक डाली। सारी दुनिया में बिनायक सेन जैसे ड्रामेबाज को महान समाजसेवी और गरीबों के हमदर्द के रूप में प्रचारित किया गया। लंदन में ऐमनेस्टी इंटरनेशनल तक ने सेन की रिहाई की मांग कर दी। राहत की बात है कि सरकार न डरी न डिगी। बिनायक सेन जेल में हैं और उसे अपने अपराध के कारण जेल में ही रहना चाहिए। सेन की पत्नी कह चुकी हैं कि उसे यहां के न्याय प्रणाली पर भरोसा नहीं है। अरुंधति भी इस देश को कोस चुकी हैं। हमारा मानना है कि मिसेज सेन और अरुंधति को उस देश में चले जाना चाहिए जो उन्हें झेलने को तैयार हो। हां, अरुंधति राय को प्रणब प्रकाश की पेंटिंग की प्रिंट कापी अवश्य भेंट की जाए। उसे अहसास होना चाहिए कि ‘‘जैसे देव की वैसी पूजा’’ इसी को कहते हैं।
Monday, March 7, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment