----अनिल बिहारी श्रीवास्तव
आल इंडिया जाट आरक्षण समिति के आह्वान पर आंदोलनरत जाट समुदाय ने उत्तर प्रदेश में रेल लाइन और हाईवे से अवरोध हटा लिये हैं। जाटों के नेताओं ने कहा है कि केंद्र सरकार की नौकरियों में जाटो के लिए आरक्षण के बारे में जल्द निर्णय नहीं लिया गया तो वे नये सिरे से व्यापक आंदोलन शुरू करेंगे। खबर है कि हरियाणा में आंदोलनकारी जाट अभी भी अपने कदम पीछे हटाने को तैयार नहीं है। जाट आंदोलनकारियों ने गत ५ मार्च से रेल लाइन और हाइवे पर अवरोध पैदा कर आवागमन ठप्प सा कर दिया था। उनके आंदोलन से अकेले रेल्वे को एक अरब रूपये की चोट पड़ी है। आम आदमी को अलग परेशानी हुई। बीमार लोग इलाज के लिए दिल्ली नहीं जा पा रहे थे, कितने ही बेरोजगार समय पर इंटरव्यू के लिए नहीं पहुंच पाए। एक अनुमान के अनुसार हर दिन लखनऊ से ही १३-१४ हजार लोग देश की राजधानी जाते और कमोवेश इतनी ही बड़ी संख्या में वहां से लौटते हैं। कल्पना की जा सकती है कि रेल और सडक़ परिवहन ठप्प किए जाने से आम आदमी को कितनी पेरशानी हुई होगी। राजस्थान में गुर्जर आंदोलनों के समय इसी तरह का नजारा देखने को मिला था। गुर्जरों का आंदोलन भी आरक्षण के लिए रहा हैं। आरक्षण संबंधी गुर्जरों और जाटों की मांग के पक्ष-विपक्ष में सैंकड़ों तक दिये जा सकते है। मुद्दा यह है कि कोई भी समुदाय या सम्प्रदाय अथवा जाति के लोग अपनी मांग मनवाने के लिए आम आदमी का जीवन क्यों मुश्किल कर देते हैं? राष्ट्र की सम्पत्ति को क्यों नुकसान पहुंचाया जाता है? सबसे बड़ी बात यह है कि वोट बैंक खोने के डर से जहां सरकार चलाने वाले लोग नपुंसकों की तरह देखते हैं वहीं अवसरवादी राजनेता ऐसे आन्दोलन को अपने-अपने ढंग से हवा देते हैं। राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के दौरान लोगों को हुई परेशानी और सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान के बावजूद तत्कालीन वसुन्धरा राजे सरकार और केंद्र हाथ पर हाथ बांधे ताकते रहे। उस समय भी न्यायपालिका को आगे आकर जवाब-तलब करना पड़ा। इस बार जाट आंदोलन से लोगों को हो रही परेशानी पर भी मायावती सरकार खर्राटे मार कर सो रही थी। हाईकोर्ट द्वारा रेल लाइन से आंदोलनकारियों को हटाये जाने का आदेश देने पर राज्य सरकार जागी। मुख्यमंत्री मायावती ने जाट आंदोलनकारियों के ट्रैक से हटने का Ÿोय लेने में पलभर की देर नहीं की। मायावती तो जाट समुदाय की मांग को पहले ही समर्थन दे चुकी हैं। मजाल है कि कोई उनसे पूछ सके कि आंदोलन के कारण आम लोगों ने १५ दिनों तक जो कष्ट भोगा उस समय आप कहां थीं? किसी की मांग कितनी न्यायोचित या वाजिब हैं, एक अलग प्रश्न है लेकिन लोकतंत्र में मिली आंदोलन की सुविधा का जैसा दुरूपयोग भारत में दिखाई देने लगा है वैसा दुनिया में और कहां देखा गया है? आप किसी भी जाति, समुदाय अथवा सम्प्रदाय के हों लेकिन यदि किसी भी प्रकार से अपने लोगों की भावनाएं उभारने का माद्दा है तब सिकन्दर बनते देर नहीं लगेगी। ट्रेनों का आवागमन रोक देना, ट्रेनों और अन्य परिवहन साधनों को निशाना बनाना, खाद्यान्न अथवा दूध आदि की आपूर्ति रोकने की धमकी देना, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना, आखिर यह सब क्या है? उस पर तुर्रा यह कि आपके विरूद्ध बल प्रयोग नहीं होना चाहिए। कानून के शासन के बावजूद ऐसी मनमानी क्या जंगल राज या जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावतों को सच साबित नही कर देती हैं? वोट बैंक की राजनीति से उठकर सभी को गंभीर रूप लेती इस प्रवृत्ति को रोकने पर विचार करना होगा। टीवी चैनलों गाल बजाने और अखबारों में कलम दौड़ाने वालों को भी निडर होकर सकारात्मक सुझाव देने होंगे।
Tuesday, March 22, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment