Wednesday, February 9, 2011

सूत न कपास.....!

---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
२००२ के गुजरात दंगों पर मई २०१० में सौंपी गई विशेष जांच दल की रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है लेकिन एक साप्ताहिक पत्रिका ने दावा किया है कि रिपोर्ट में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराया गया है। यह कथित खुलासा पूर्व में आई उन खबरों से बिल्कुल विपरीत है जिनमें कहा गया था कि विशेष जांच दल ने मोदी को क्लीन चिट दी है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आर.के. राघवन की अध्यक्षता में विशेष जांच दल गठित किया था। इस दल की रिपोर्ट पर सर्वोच्च न्यायालय की बेंच आगामी ३ मार्च को अगले कदम के बारे में आदेश देगी। निश्चित रूप से पत्रिका द्वारा किया गया खुलासा सनसनीखेज है लेकिन इसक सत्यता के बारे में अभी कुछ कह पाना मुश्किल है। फिर विचारणीय बिंदु यह हो सकता है कि रिपोर्ट सार्वजनिक होने से पहले किसने इसे लीक किया। उससे हटकर दूसरी बात यह है कि पत्रिका में छपी रिपोर्ट में तथ्य और प्रमाण कम तथा आकलन, अनुमान तथा अटकल अधिक समझ में आ रही है। यह कह सकते हैं कि पत्रिका ने रिपोर्ट के बारे में जो कुछ छापा उसमें आरोप अधिक समझ आ रहे हैं। प्रमाण कहां हैं? मोदी पर महत्वपूर्ण रिकार्ड नष्ट कर देने, साम्प्रदायिक विचारधारा, भडक़ाऊ भाषण, अल्पसंख्यकों से भेदभाव, संघ नेताओं को प्रमुखता और तटस्थ अफसरों को प्रताडि़त करने के आरोप लगाये गये हैं। राघवन की अगुआई वाले विशेष जांच दल की रिपोर्ट अधिकारिक रूप से सार्वजनिक हुए बगैर कैसे मान लिया जाए कि जिस रिपोर्ट को लेकर पिछले २४ घंटों से सनसनी पैदा करने की कोशिश की जा रही है, वह असल है। यदि रिपोर्ट सही है तब भी मोदी को कठघरे में खड़ा करने लायक अंश इसमें नजर नहीं आ रहे। विशेष जांच दल स्वयं स्वीकार कर रहा है कि मोदी के विरुद्ध सीधी कानूनी कार्रवाई शुरू करने का कोई पुख्ता प्रमाण उसके हाथ नहीं लगा है। प्रश्न यह है कि क्या विशेष जांच दल की कल्पना और अनुमानों को आधार बनाकर मोदी को अदालती कार्रवाई के लिए घसीटा जा सकता है। इस तरह का कोई प्रयास कानूनी लड़ाई में आखिर कितनी देर रुक पायेगा? असली रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर ही अधिक कुछ कहना संभव होगा। इस बात में संदेह नहीं कि सन् २००२ के गुजरात दंगे हमारे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्षता की भावनाओं पर एक गहरा आघात रहे हैं। इन दंगों में हुई दो हजार से अधिक लोगों की मौत को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। वह हृदय पर एक गहरे जख्म की तरह है। यदि गोधरा में कारसेवकों को जिंदा जलाये जाने की घटना के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर भडक़े साम्प्रदायिक दंगे किसी बड़ी साजिश का परिणाम थे, तब इसके लिए दोषी व्यक्तियों को दंडित किया जाना जरूरी है। लेकिन यहां इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि अतीत में इस देश में कितनी ही साम्प्रदायिक हिंसा की शुरूआत छोटी-छोटी बातों पर हुई थी। उनमें दोनों ओर के साम्प्रदायिक और असामाजिक तत्व मुख्य रूप से लिप्त रहे। यह बात हजम नहीं होती कि गुजरात दंगों की साजिश रचने में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई प्रत्यक्ष भूमिका निभाई होगी। गुजरात दंगों के बाद कानून एवं व्यवस्था और राज्य के विकास के मामले में मोदी ने कसावट दिखाकर अपनी क्षमताओं और दूरदर्शिता का लोहा मनवा लिया है। वह हिंदुत्व के संरक्षण के समर्थक हो सकते हैं परंतु उनसे किसी सियासी मूर्खता की आशा करना अपने आप में मूर्खता होगी। हमारे यहां राजनीति, पत्रकारिता और कुछ अन्य क्षेत्रों में कथित सेकुलैरिस्टों की एक ऐसी लॉबी है जो घूम-फिर कर मोदी को घेरने की कोशिश करती रहती है। राघवन की अगुआई वाले विशेष जांच दल की असल रिपोर्ट सार्वजनिक होने दें। उससे पहले मोदी को घेरने के लिए छटपटाना अव्वल दर्जे की कम अवली कहलाएगी।

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