--अनिल बिहारी श्रीवास्तव
विदेशी मुद्रा की तस्करी के आरोप में भारत में गिरफ्तार किये गये पाकिस्तानी गजल गायक राहत फतेह अली खान को पाकिस्तान की ओर से आए दबाव के चलते रिहा कर दिया गया। इस मामले से अनेक सवाल अवश्य उठ खड़े हुए। पहली बात यह है कि क्या इस देश में आम लोगों और खास लोगों के लिए अलग-अलग प्रावधान हैं। आशंका यह भी निराधार नहीं है कि सब चलता है की अपनी मानसिकता के चलते भारत सरकार इस पाकिस्तानी कलाकार को धीरे से चलता कर दे। खबर है कि राजस्व गुप्तचर निदेशालय ने राहत फतेह अली खान और उनके दो साथियों के पासपोर्ट जब्त कर लिये हैं। उन्हें आगे की पूछताछ के लिए १७ फरवरी को पुन: बुलाया गया है। इस बीच उस इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की जांच की जा रही है जिसके न्यौते पर राहत यहां आए थे। राहत फतेह अली खान और उनके ट्रुप के सदस्यों को एक लाख २४ हजार डालर जैसी काफी बड़ी लेकिन अघोषित रकम ले जाते हुए रविवार की शाम राजस्व गुप्तचर निदेशालय ने नई दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पकड़ा था। यह कार्रवाई पुख्ता सूचना के आधार पर की गई थी। नियम यह है कि विदेशी मूल का कोई नागरिक ५००० अमेरिकी डालर से अधिक की नगद राशि और ५००० डालर किसी अन्य माध्यम के तौर पर नहीं रख सकता है। यदि इससे अधिक राशि है तब उसकी सूचना कस्टम डिपार्टमेंट को देनी चाहिए। साफ बात है कि राहत फतेह अली खान ने इस देश के कानून का उल्लंघन किया है।
राहत फतेह अली खान की गिरफ्तारी पर पाकिस्तान सरकार की सक्रियता स्वाभाविक थी। लेकिन इस गिरफ्तारी के विरोध में पाकिस्तानियों का सडक़ों पर उतर आना उनकी कुण्ठा और भारत के प्रति अविश्वास का प्रमाण है। राहत के बचाव में पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक, रेशमा और मीरा के बयान दुनियादारी के प्रति उनकी ना समझी का प्रमाण है। यह कहना निरी मूर्खता ही है कि राहत ने जान बूझकर गलत काम नहीं किया है। ऐसे बचाव के बयानों से क्या अर्थ निकालें? दुनिया भर में कार्यक्रम और सैकड़ों बार विदेश यात्राएं कर चुके राहत इतना भी नहीं जानते कि विदेशियों के लिए किस देश के क्या कुछ खास नियम-कानून हैं। भारतीय फिल्म इश्किया मैं ‘‘दिल तो बच्चा है जी’’ गाकर फिल्म फेयर अवार्ड जीतने वाले इस गजल गायक को बच्चा मान कर माफ नहीं किया जा सकता।
राहत फतेह अली खान को विदेशी मुद्रा ले जाते पकड़े जाने पर काफी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। किसी ने कहा है, राहत की गिरफ्तारी से १९९९ में आई फिल्म सरफरोश की याद आ गई। फिल्म में पाकिस्तानी गजल गायक गुलफाम हसन की भूमिका नसीरुद्दीन शाह ने अदा की है। फिल्म में गुलफाम हसन भारतीयों के बीच अपनी लोकप्रियता का दुरुपयोग करते हुए यहां आतंकवाद फैलाने का काम करता था। वह बाद में पकड़ा और मारा जाता है। हम नहीं कह रहे हैं कि राहत फतेह अली खान और सरफरोश के पात्र गुलफाम हसन के बीच कोई समानता है। लेकिन एक बात तो है गुलफाम हसन पाकिस्तानी था वह यहां के कानून का उल्लंघन कर रहा था। राहत भी पाकिस्तानी है उन पर भी कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगा है। राहत के मामले में लीपा-पोती नहीं होना चाहिए। उन्होंने कानून तोड़ा है और उन पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है। अभी कुछ माह पूर्व किसी अखबार में गजल गायक जगजीत सिंह और पाश्र्वगायक अभिजीत के बयान पढ़े थे। उन्होंने भारत में मौजूद पाकिस्तानी कलाकारों के हमदर्दों से सवाल किया था कि इस धरती में उन्हें कलाकार नहीं मिलते जो पाकिस्तानी कलाकारों के पीछे भागते हैं? बात सही है ये पाकिस्तानी कलाकार यहां आते, खूब कमाते और धन बटोरकर चलते बनते। दौलत और शोहरत यहां कमाते हैं और मौका आने पर जहर उगलने से तक पीछे नहीं रहते। मगर करें तो करें क्या? अपना सिक्का ही खोटा है। यह तय मानें की भारत सरकार राहत को रोके नहीं रख पाएगी। हां, उन लोगों को पहचान कर कानूनी कार्यवाही अवश्य की जाए तो देश का धन उलीच कर पाकिस्तानियों की जेब में डालते हैं।
Friday, February 18, 2011
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