---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई.कुरैशी द्वारा लखनऊ में की गई इस टिप्पणी को सत्य से साक्षात्कार कराने का प्रयास मानना चाहिए कि लोकतंत्र की कमियों के कारण जनता का मोहभंग हो इससे पहले उन्हें दूर करना जरूरी है क्योंकि सही दिशा में सुधार नहीं हुए तो एक दिन जनता ही ऊबकर तख्तापलट कर देगी। मुख्य चुनाव आयुक्त की टिप्पणी काफी हद तक चुनाव सुधारों से जुड़ी है। लेकिन जिस समय श्री कुरैशी यह बात कह रहे थे लगभग उसी समय देश के ६० नगरों-महानगरों में भ्रष्टाचार के खिलाफ निकाली गई रैलियों में लाखों लोग भाग ले रहे थे। रैलियों में भाग लेने वाले आमजन, समाज सेवियों और धर्मगुरुओं ने मिलकर सरकार को यह संदेश दे दिया कि भ्रष्टतंत्र के विरुद्ध जनतंत्र जाग उठा है। वक्ताओं के विचारों से आम आदमी की भावनाएं सामने आई हैं। २जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में भ्रष्टाचार, आदर्श सोसायटी घोटाला और बिल्कुल ताजी घटना मनमाड़ में एडीशनल कलेक्टर को तेल माफिया द्वारा जिंदा जला डालने ने लोगों को हिलाकर रख दिया। आम आदमी हैरान है कि मध्यप्रदेश में आईएएस दम्पत्ति ने मात्र दो दशकों में कैसे लगभग चार सौ करोड़ की सम्पत्ति जमा कर ली। सरकारी इंजीनियरों और अधिकारियों के यहां से पकड़ी जा रही अवैध संपत्ति संंबंधी रिपोर्टे पढक़र आंखें फटी रह जा रही हैं। मोटे तौर पर राजनेताओं, नौकरशाहों और अपराधी तत्वों के बीच सांठगांठ समझ में आ रही है जिसके कारण देश में भ्रष्टाचार खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा और सरकार में बैठे लोग या तो भ्रष्ट तत्वों की अनदेशी करते रहे या फिर अकर्मण्यों की भांति ऊंघते दिखे। मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई कुरैशी विशुद्ध गैर-राजनीतिक व्यक्ति हैं। वह अपराधी तत्वों को राजनीति से दूर रखने की बात पर जोर दे रहे हैं तब इसका सीधा अर्थ है कि वह लोकतंत्र की पवित्रता सुनिश्चित करना चाहते हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ ६० शहरों में निकाली गई रैलियों के मुख्य आयोजकों में श्रीश्री रविशंकर और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल हैं। रैलियों की अगुआई जिन हस्तियों ने की उनमें से ९९.९ प्रतिशत का किसी राजनीतिक दल के साथ सक्रिय सम्पर्क अथवा संबंध नहीं है। नि:संदेह पानी सिर से ऊपर जाने वाली बात है। स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही भ्रष्टाचार के वायरस का प्रकोप भारत में बढऩे लगा था लेकिन उसे समय रहते कुचलने की जरूरत सरकार चलाने वालों ने महसूस नहीं की। कल केंद्रीय कानून मंत्री एम.वीरप्पा मोइली ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों का निबटारा एक साल में हो जाएगा। उनका दावा है कि कोई भी केस तीन साल से अधिक नहीं चलेगा। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मोइली अदालतों में लगे करोडा़ें मामलों के शीघ्र निबटारे के लिए कमर कस चुके हैं। इसे एक अच्छा संकेत मान सकते हैं। प्रश्न यह है कि लोकतंत्र की पवित्रता और भ्रष्टाचार मुक्त तंत्र कैसे सुनिश्चित हो? दोनों ही विषयों पर गंभीर और ठोस प्रयास की जरूरत है। सत्ताधारी राजनेताओं को सिर्फ दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देते हुए कड़े फैसले लेने होंगे। विचार करें कि ट्यूनिशिया और मिस्र में सरकार के विरुद्ध आम आदमी सडक़ों पर क्यों उतर आया? वहां इन सरकार विरोधियों की अगुआई कोई स्थापित राजनेता नहीं कर रहा है। दोनों देशों में लोग भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और अन्य समस्याओं से इस हद तक त्रस्त हो गए कि जान की परवाह किये बगैर सडक़ों पर उत्तर आए हैं। मिस्र के घटनाक्रमों पर चीन तक सकते की हालत में है। हमारे यहां कल की भ्रष्टाचार विरोधी रैलियों को गंभीरता से लेकर सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाये तो लोगों में आक्रोश बढ़ेगा। कुरैशी तख्ता पलट जैसी स्थिति की आशंका से आगाह कर चुके हैं। अब समझने और फैसला लेने की बारी सरकार चलाने वालों की है।
Tuesday, February 1, 2011
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