Thursday, February 24, 2011

साजिशों की शिकार बी.एस.एन.एल

---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत संचार निगम लिमिटेड यानी बी.एस.एन.एल को हर माह ४०० करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है। यही स्थिति रही तो इस वर्ष के अंत तक बी.एस.एन.एल दिवालिया हो जाएगी। लोगों को यह जानने की उत्सुकता अवश्य होगी कि मात्र छह सालों में ऐसा क्या हो गया जो बी.एस.एन.एल इतने बड़े आर्थिक संकट की ओर बढऩे लगी है। सन् २००४ में जब पहली बार केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार आई थी उस समय बी.एस.एन.एल के नाम पर ३० हजार करोड़ की नकदी थी। २००९-१० में बी.एस.एन.एल के राजस्व में १० फीसद कमी आई। इसके अलावा इस कंपनी को ३जी स्पेक्ट्रम की फीस के तौर पर १८५०० करोड़ रूपये चुकाने पड़े हैं।

हालांकि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने वादा किया है कि इस कंपनी को डूबने नहीं दिया जाएगा लेकिन प्रश्न यह है कि सरकार की ओर से मिलने वाली किसी भी आर्थिक-बैसाखी के सहारे बी.एस.एन.एल कितने कदम और चल पाएगी? तीन लाख से अधिक कर्मचारियों वाली बी.एस.एन.एल को देश की सबसे बड़ी और पुरानी दूर संचार कंपनी कहा जा सकता है। कंपनी का नया रूप ग्रहण करने से पूर्व यह दूरसंचार विभाग की इकाई के रूप में काम कर रही थी। दूरसंचार सेवाओं में निजी कंपनियों को प्रवेश की अनुमति देकर सरकार ने निश्चित रूप से देश में एक क्रांति सी ला दी। अफसोस इस बात पर है कि जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बी.एस.एन.एल को अपनों के विश्वासघात, प्रतिस्पर्धियों के व्यावसायिक प्रपंच और सरकार की अदूरदर्शिता की मार खानी पड़ी। बी.एस.एन.एल के हाथों को नियमों की रस्सियों से बांध कर निजी कंपनियों से मुकाबला करने के लिए छोड़ दिया गया। निजी कंपनियों ने पहले उसके लैण्डलाइन आधार में सेंध मारी। इसके बाद शुरू हुआ मोबाइल सेवा में मुकाबला। प्रमोद महाजन, रामविलास पासवान, दयानिधि मारन से लेकर ए.राजा तक जितने भी दूरसंचार मंत्री हुए उनके फैसले बी.एस.एन.एल के हित में नहीं रहे। प्रमोद महाजन के कार्यकाल में बी.एस.एन.एल को मोबाइल सेवा शुरू करने की अनुमति विलम्ब से मिली। नतीजा यह हुआ कि निजी आपरेटर बाजार पर कब्जा जमाने में कामयाब हो गए। इसके बाद उपकरण के टेंडर आदि में राजनीतिक अड़ंगेबाजी देखी गई। बी.एस.एन.एल की मोबाइल सेवा शुरू होने में इतना अधिक विलम्ब करवा दिया गया कि उपभोक्ताओं में इसके प्रति आकर्षण ही खत्म हो गया। फिर निजी कंपनियों की तरह बी.एस.एन.एल पेशेवर अंदाज नहीं अपना पाई। लैण्ड लाइन, मोबाइल और ब्रॉड बैण्ड सेवाओं में उसकी योजनाएं प्रतिस्पर्धी नहीं रहीं। सत्ताधारी राजनेताओं की खुराफातों से कमजोर हुई बी.एस.एन.एल में विभीषण पैदा हो गए। कुछ माह पूर्व भोपाल में एक उदाहरण सामने आया। बताया जाता है कि एक व्यक्ति ने ब्रॉड बैण्ड सेवा के लिए बी.एस.एन.एल द्वारा लगाई गई केनापी में जानकारी चाही। वह वहां से वापस अपने घर नहीं पहुंचा और एक निजी कंपनी के लोग आ धमके। वे काफी कम दर पर ब्रॉड बैंड सेवा उपलब्ध कराने का वादा कर रहे थे। ऐसे आरोप सुनने में आते रहे हैं कि कुछ बड़े अधिकारी भारी वेतन के लालच में बी.एस.एन.एल छोडक़र निजी कंपनियों में चले गए। उन्होंने भी बी.एस.एन.एल के हितों पर गहरी चोट की है।

हाल के वर्षों में बी.एस.एन.एल के विनिवेश की चर्चा चली थी। यह आरोप लगाने में संकोच नहीं हो रहा कि साजिश के तहत बी.एस.एन.एल को बीमार बनाया जा रहा है ताकि इसके विनिवेश में अधिक विरोध का सामना न करना पड़ा। २जी स्पेक्ट्रम और एस बैंड आवंटन में हुए भ्रष्टाचार के पर्दाफाश के बाद बी.एस.एन.एल के विरूद्ध चौतरफा साजिशों की आशंका से कैसे इंकार किया जा सकता है। ऐसा लगता, पिछले डेढ़ दशक में बी.एस.एन.एल को जिस तरह नुकसान पहुंचाया गया उसमें हुए भ्रष्टाचार की राशि लाखों करोड़ों रूपयों में होगी।

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