Friday, February 25, 2011

मुस्लिम आरक्षण: वोट बैंक का खेल

---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
सोमवार को अखबारों में यह खबर पूरी सुर्खियों के साथ छपी है कि केंद्र में कांग्रेस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार मुस्लिम आरक्षण पर फैसला लेने का मन बना रही है। उल्लेखनीय है कि रंगनाथ मिश्र आयोग की संसद में पेश की गई रिपोर्ट में भी अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का सुझाव दिया गया था। अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि सरकार का इरादा समूचे अल्पसंख्यक समुदाय को इस योजना में शामिल करने का है या फिर किसी सियासी तिकड़म के द्वारा सिर्फ मुस्लिमों को आरक्षण देने की कोशिश की जाएगी। वैसे सरकार की राह उतनी आसान नहीं होगी क्योंकि प्रमुख विपक्षी दल-भारतीय जनता पार्टी धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देने का विरोध करती आई है। मुसलमानों को आरक्षण देने की बात सोनिया गांधी द्वारा अल्पसंख्यक आयोग को दिये गए आश्वासन से जोड़ी जा रही है। सच यह है कि यह सारा खेल असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी और केरल विधानसभा के इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर खेला जा रहा है। कांग्रेस की नजर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम वोट बैंक पर भी लगी जो अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे जानकारियों के अनुसार मुसलमानों को आरक्षण की रेवड़ी देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, केरल, कर्नाटक और कुछ अन्य राज्यों में आरक्षण के फार्मूलों का सहारा लिया जाएगा। ऐसे राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे में से मुसलमानों को आरक्षण दिया जा रहा है। मुसलमानों को आरक्षण को लेकर देश में कभी भी आम सहमति नहीं बन पाई। कतिपय राजनीतिक दल जिनमें वामपंथी गठबंधन भी शामिल हैं मुस्लिम आरक्षण की वकालत करते रहे हैं लेकिन इस समर्थन का एक मात्र उद्देश्य मुसलमानों के वोटों को हथियाना ही रहा है। दूसरी ओर भाजपा समेत बहुसंख्यक समुदाय का एक बड़ा वर्ग मानता है कि धर्म के आधार पर आरक्षण एक खतरनाक और विध्वंसकारी सोच है। उनका मानना है कि आरक्षण से मुस्लिम समुदाय का कोई विशेष भला नहीं होगा। जरूरत मुस्लिमों में शिक्षा के प्रसार, और स्व-रोजगार आदि पर जोर दिये जाने की है। जरूरत उन कारणों को तलाशने और उन्हें दूर करने की है जिनके चलते मुस्लिम अन्य समुदायों की तुलना में पिछड़ गए। इस काम में मुस्लिम धार्मिक और सामाजिक नेताओं का सहयोग मिलना चाहिए। यह कड़वा सच है कि कुछ स्वार्थी तत्व आम गरीब, अशिक्षित और पिछड़े मुसलमानों का मार्गदर्शन करने की बजाय उन्हें बरगलाते हैं। धार्मिक शिक्षाओं की अपने-अपने अंदाज में व्याख्यायें कर दी जाती हैं। अलग पहचान दिखाने के नाम पर कोशिश उन्हेंं मुख्य धारा से अलग रखने की होती है। जब तक आम मुसलमान को भ्रमित किया जाता रहेगा वह मुख्य धारा से जुड़ाव कैसे महसूस कर पाएगा? कैसे वह अन्य समुदायों के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की चुनौती का जवाब दे सकेगा? पिछले दिनों दारूल उलूम देवबंद के नए चान्सलर ने तक आरक्षण की बैसाखी की बजाए मुस्लिमों की शिक्षा को जरूरी बताया था। इस देश के साथ यह दुर्भाग्य जुड़ गया है कि यहां के अकर्मण्य राजनेताओं ने जातिवाद और छद्म धर्मनिरपेक्षता को समानता के नाम पर हथियार के रूप में उपयोग शुरू कर दिया है। उनके खेल ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए शुरू की गई आरक्षण व्यवस्था के मूल उद्देश्य को ही तार-तार कर दिया। आज आबादी के अनुपात में सीना ठोंक कर आरक्षण मांगा जाता है। समझ में नहीं आता कि आरक्षण का यह खेल कब तक चलेगा। आरक्षण देश को कहां ले जाएगा?

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