--अनिल बिहारी श्रीवास्तव
जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी-पीडीपी ने विजन आन कश्मीर नाम से एक पॉवर पाइंट पे्रेजेंटेशन तैयार किया है। खास बात यह है कि इस प्रेजेंटेशन में कराकोरम और अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बताया गया है। यह एक तथ्य है कि भारत इस क्षेत्र को हमेशा से अपना मानता है। यही नहीं पीडीपी श्रीनगर को चीन के यारकंड से जोडऩा चाहती है। पीडीपी का यह कारनामा स्वीकार नहीं किया जा सकता। महबूबा मुफ्ती और पीडीपी सवालों के घेरे में हैं। पीडीपी की इस हरकत पर केंन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने गंभीरता से लेते हुए चेतावनी दे दी है कि पीडीपी ने नक्शे को नहीं सुधारा तो कार्रवाई करेंगे। गृहमंत्री की नाराजगी समझ मे आने वाली बात है परंतु पीडीपी के विरूद्ध तत्काल कोई कार्रवाई करने में केंद्र की झिझक उजागर हो रही है। यह तय मानें की पीडीपी ने यह हरकत जानबूझकर और किसी दूरगामी रणनीति को ध्यान में रखकर की है। इससे दो दिन पहले ही पीडीपी ने कश्मीर की तुलना मिस्र से की थी। यह कहने में झिझक नही हो रही कि महबूबा मुफ्ती सियासत के बुखार के चलते अपनी ज्ञान ज्योति खो बैठी हैं। नक्शे वाले मसले पर उनका मूर्खतापूर्ण तर्क यह है कि ‘‘नक्शे को गलत संदर्भ में लिया जा रहा है, यह कश्मीरियों की सहूलियत के लिए इस्तेमाल किया गया है।’’ कैसी सहूलियत और क्या संदर्भ? महबूबा मुफ्ती की अब तक की राजनीतिक यात्रा पर नजर डालें। एक बात साफ तौर पर समझ में आती है कि उनका रवैया टकराव वाला रहा है। वह विवाद को गरमाने और उसकी आंच में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने मे माहिर हो गई हैं। पिछले पांच सात सालों पर गौर करें महबूबा मुफ्ती और उनके अब्बा हुजूर के अधिकांश फैसलों और हरकतों से पाकिस्तान या पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों और कश्मीर अलगाववादियों को ही लाभ मिला होगा।
दो टूक शब्दों में कह सकते हैं कि महबूबा मुफ्ती और उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की निष्ठा हमेशा संदिग्ध रही है। बाप बेटी की इस जोड़ी ने कितनी बार कश्मीर घाटी में अलगाववादियों के द्वारा पाकिस्तानी झंडा फहराये जाने का विरोध किया? अमरनाथ बोर्ड भूमि आवंटन के खिलाफ अलगाववादियों द्वारा किये गए उपद्रवों में महबूबा की भूमिका आग में घी जैसी रही। सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाने वालों के खिलाफ महबूबा ने कभी मुंह नहीं खोला। महबूबा ने हमेशा भारत के विरूद्ध नागिन की तरह जहर उगला है। वह जवाब दें कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर मे कश्मीरियों के मानव अधिकारों के हनन पर क्यों चुप रहती हैं ? विडम्बना यह है कि महबूबा मुफ्ती और मुफ्ती मोहम्मद सईद की फितरत से वाकिफ होते हुए भी इस देश का राजनीतिक नेतृत्व इन्हें मुंह लगाये रखता रहा। अब तो यह संदेह होने लगा है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुआई वाली सरकार में मुफ्ती मोहम्मद सईद को गृहमंत्री बनाया जाना किसी अंतरराष्ट्र्रीय साजिश का हिस्सा था। सईद ने १९९० में अपने बेटी रूबिया सईद के अपहरण के नाटक में अपहर्ताओं के सामने जिस तरह घुटने टेके उसी के बाद कश्मीर घाटी में आतंकवाद बढ़ा। गृहमंत्री रहते सईद यदि अपहर्ताओं को छोडऩे से इंकार कर देते तब उनकी छवि एक कायर और अक्षम गृहमंत्री के रूप बनने से बच जाती। वैसे महबूबा मुफ्ती के व्यवहार को देखते हुए यह आशंका निराधार नही कहीं जा सकती कि रूबिया का अपहरण सईद की जानकारी में ही और रूबिया की सहमति से किया गया होगा।
बहरहाल, यहां बरबस ही आस्तीन के सांप वाली कहावत याद आ गई। यह पक्की बात है कि आस्तीन में गोल-मटोल सांप नहीं रह सकता। यदि वह किसी तरह आस्तीन में घुस जाये तब उसे डसने में अधिक जुगत नही भिड़ानी पड़ेगी। ऐसा लगता है कि महबूबा मुफ्ती सईद जैसे लोगों को ध्यान में रख कर ही आस्तीन का सांप जैसी कहावत गढ़ी गई होगी। ऐसे लोग सांप ही हैं। आस्तीन में रहें या स्वतंत्र विचरण करें दोनों स्थिति में खतरनाक हैं। पिछले दिनों एक अनुसंधान रिपोर्ट पढ़ी। बताया गया था पहले सांपों के पैर होते थे। पता नहीं चल रहा कि विकास के क्रम में पैर कैसे गायब हो गये? वैज्ञानिकों का कहना है कि पैरों वाले सांप आज भी देख जाते हैं। हालांकि पैरों की मौजूदगी उनकी शारीरिक संरचना के समक्ष नगण्य सी होती है। ऐसे सांप आस्ट्रेलिया में दिखाई देते है। हम कहते हैं पीडीपी वालों ने अपनी देशद्रोही हरकत से साबित कर दिया कि वे भी पैरों वाले सांप की प्रजाति से ही हैं।
Friday, February 18, 2011
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