---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
कल्पना के बाहर की बात है । देश के एक राज्य में ऐसे वन मंत्री महोदय हैं जिनका कहना है कि जंगलों में हाथी, गेंडे, तेंदुये, हिरण और जंगली भैंसों की बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाया जाए। उनका सुझाव कम विचित्र नहीं है। मंत्री जी फरमाते हैं, ‘‘इन अतिरिक्त पशुओं को उन शौकीन लोगों के लिए नीलाम कर देना चाहिए जो इन्हें पालना चाहते हों या फिर इन्हें विदेशी चिडिय़ाघरों में भेज दिया जाए। ’’ वन मंत्री महोदय का मानना है कि उपर्युक्त दो काम नहीं किये जा सकते हैं तो इन वन्य जीवों की नसबंदी करके छोड़ दिया जाए ताकि उनकी आबादी न बढ़े। यह दो कौंड़ी का सुझाव पश्चिम बंगाल के वन मंत्री अनंत रे ने दिया है। उनकी विकृत सोच पर राज्य के वन विभाग के चापलूस अधिकारी मुग्ध हैं। तैयारी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को पत्र भेजने की है ताकि इस मूर्खतापूर्ण पहल को केंद्र की मंजूरी मिल सके। हैरानी इस बात को लेकर है कि अनंत रे जैसे अज्ञानी और उलट दिमाग व्यक्ति को पश्चिम बंगाल के वन विभाग की जिम्मेदारी किसके सुझाव पर सौंपी गई? अनंत रे ने प्रेस के समक्ष अक्ल का नमूना पेश करते हुए साबित कर दिया है कि उन्हें वन और वन्य जीवों के महत्व का रत्तीभर ज्ञान नहीं है। वह वन्य जीव संरक्षण कानून तक के बारे में नहीं जानते। उन्हें तेजी से घट रही वन्य जीवों की संख्या, उसको लेकर दुनिया भर में व्यक्त की जा रही चिंता और वन्य जीवों की रक्षा के लिए किये जा रहे विश्वव्यापी प्रयासों की जानकारी नहीं है। वन मंत्री का यह तर्क कौन स्वीकार कर पाएगा कि वन्य जीवों की आबादी बढऩे से वे कई बार जंगलों से लगी इंसानी बस्तियों और गांवों में आ जाते हैं तथा लोगों को घायल कर देते हैं। रे को याद दिलाना जरुरी है कि हाल ही में हिमाचल प्रदेश में किसानों के संगठन के दबाव में सरकार ने बंदरों को गोली मारने की छूट दे दी थी। इस आदेश की सर्वत्र आलोचना हुई। राज्य सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में आना पड़ा। लेकिन अनंत रे अपने आप में एक मात्र उदाहरण नहीं हैं। ऐसे निर्मोही, दुष्ट और क्रूर सोच वाले लोग आये दिन देखने-सुनने को मिलते हैं। पिछले दो-ढाई दशक में सैकड़ों तेंदुओं को लोगों ने घेर कर इसलिए मार डाला क्योंकि उन्होंने इंसानी बस्तियों में घुसने की गलती की थी। कितने लोग इस विषय पर विचार करते हैं कि हाथी, गेंडे और तेंदुये जैसे वन्य जीव अपने प्राकृतिक आवास से बाहर क्यों आ जाते हैं? वन्य जीव विशेषज्ञों का मत है कि बढ़ती मनुष्य आबादी के कारण शहर फैल रहे हैं। खेतों पर कांक्रीटी जंगल खड़े होने लगे। खेती के लिए जमीन और लकड़ी की लालच के चलते सुनियोजित ढंग से वनों का सफाया किया जा रहा। वन सिमट रहे हैं। जहां घने वन थे वहां पेड़ कम हो गए। जब छाया, पानी और भोजन नहीं मिलेगा तो भूखे-प्यासे वन्य जीव क्या करेंगे? वे बचे-खुचे जंगलों से बाहर निकलने का दुस्साहस करते हैं। वहां मौत उनके इंतजार में खड़ी मिलती है। पीट-पीट कर मार डाला जाता है। यह तथ्य कोई स्वीकार नहीं करता कि जब पेड़-पौधे और अन्य जीव ही इस धरती पर नहीं होंगे, ऐसी स्थिति में मनुष्य जीवन कितने दिन चलेगा? पश्चिम बंगाल के वन मंत्री अनंत रे पर वनों और वन्य जीवों की रक्षा का जिम्मेदारी है। यह विचित्र व्यक्ति वन्य जीवों की नसबंदी का सुझाव दे रहा है। ऐसे व्यक्ति को वन मंत्री पद पर रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। रे को तत्काल चलता किया जाना चाहिए।
Wednesday, February 23, 2011
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