Sunday, February 27, 2011

उपद ठूंठ पर बैठना

---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
बाबा रामदेव ने कांग्रेस की चुनौती स्वीकार कर ली है। बाबा यहीं नहीं रुके। उन्होंने पलटवार किया है। बाबा अपने ट्रस्ट की जांच कराने को तैयार हैं लेकिन चाहते हैं कि नेहरू-गांधी परिवार के ट्रस्टों की भी जांच हो। बाबा ने मांग की है कि नेहरू-गांधी परिवार के प्रत्येक सदस्य की कमाई और उनके खर्च का विवरण राष्ट्र को दिया जाए। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा बाबा रामदेव के विरुद्ध छेड़े गये इस वाव् युद्ध में आगे काफी कुछ देखने-सुनने को मिलने की आशा है। एक बात तय है कि दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव पर निशाना साधते समय कल्पना नहीं की होगी कि इस निशानेबाजी पर देश भर में इतनी व्यापक प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी। उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि बिना झोली के फकीर सा दिखने वाला योगगुरु विशुद्ध राजनेताओं की स्टाइल में बखिया उधेडऩे की मुद्रा में आ जाएगा। दिग्विजय सिंह ने गत दिवस आरोप लगाया था कि बाबा रामदेव के ट्रस्ट के पास करोड़ों की सम्पत्ति है जिसकी जांच होनी चाहिए। यह योग गुरु पर सीधा हमला था। विश्लेषकों का कहना है कि कालेधन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध बाबा रामदेव द्वारा चलाये जा रहे अभियान को कांग्रेस के कुछ लोग राजनीतिक साजिश मान रहे हैं। उन्हें लगता है कि बाबा रामदेव संन्यासी हैं और अपनी लोकप्रियता के बूते वह कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह द्वारा लगाये गये आरोपों को उसी अभियान का जवाब माना जा रहा है। प्रश्न यह है कि बाबा रामदेव द्वारा चलाये रहे अभियान के बीच उन पर लगाया गया आरोप क्या गलत समय पर उठाया गया गलत कदम नहीं है।
कहा जा रहा है कि कालेधन और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने तथा उसकी अनदेखी करने जैसे आरोपों से घिरी कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार के बचाव में तो बाबा रामदेव को घेरने की कोशिश नहीं की गई है? यदि उत्तर हां है तब कहना होगा कि इससे कांग्रेस को ही नुकसान होगा। बाबा रामदेव ने टेलीविजन कैमरों के सामने सीना ठोंककर कह दिया है कि उनके नाम पर एक इंच भूमि तक नहीं है। उनका कोई बैंक एकाउण्ट नहीं है।’’ योग गुरु मानते हैं कि उनके ट्रस्ट के पास १११५ करोड़ रुपये की सम्पत्ति है। उन्हें देशवासियों के आध्यात्मिक उत्थान और सभी के लिए आरोग्य सुनिश्चित करने के लिए अधिक धन की आवश्यकता है। अत: आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण और बिक्री तथा योग प्रशिक्षण की फीस और दान के रूप में मिलने वाला धन उनका ट्रस्ट लेता रहेगा।
यह तय है कि बाबा रामदेव अपने कदम वापस नहीं लेंगे। कुछ लोग सलाह देते हैं कि बाबा योग गुरु हैं, संन्यासी हैं अत: उन्हें राजनीति की दलदल में नहीं उतरना चाहिए। सुनने में ऐसी टिप्पणी कुछ हद तक उचित लगती है किन्तु विचारणीय मुद्दा यह है कि बाबा ने अभी तक राजनीति के शुद्धिकरण और पुनर्जन्म की बात की है। उन्होंने कहां कहा है कि वह स्वयं राजनीति में आ रहे हैं। वैसे भी इस देवभूमि का इतिहास गवाह है कि यहां संकट की स्थिति और मुश्किलों के दौर में ऋषि-मुनि, संत और संन्यासी राष्ट्र की रक्षा के लिए आगे आते रहे हैं। कांग्रेस द्वारा छेड़े जाने से उन्हीं विभूतियों की Ÿोणी में बाबा रामदेव के आ खड़े होने की संभावना बन गई है। अब कांग्रेस क्या करेगी? बरबस एक मुहावरा याद आ गया, ‘‘उपद ठूंठ पर बैठना।’’ यह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से मिलता-जुलता है। कांग्रेस की स्थिति कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है।

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