Wednesday, February 9, 2011

सियासी चोट्टों पर चोट


---अनिल बिहारी श्रीवास्तव
तर्क में दम है और बात काफी हद तक सही भी है। सब चलता है कि मानसिकता और नैतिकता मूल्यों की अनदेखी पूरी बेशर्मी से की जा रही हो, ऐसी स्थिति में सिर्फ आरोप के कारण किस मुंह से पी.जे. थॉमस से यह आशा करते हैं कि आप हाय तौबा मचायें और वह दबाव में आकर मुख्य सतर्कता आयुक्त पद से इस्तीफा दे देंगे। थॉमस ने स्वयं पर लगाये गये आरोप, मुख्य सतर्कता आयुक्त पद पर अपनी नियुक्ति और अपने विरुद्ध कही जा रही बातों के जवाब में जो सवाल उठाया है उस पर सरकार, राजनीतिक दलों, न्यायपालिका, मीडिया और आम आदमी को अवश्य विचार करना चाहिए। थॉमस की बात में दम है। उनका कहना है कि यदि विभिन्न अपराधों में संलिप्त व्यक्ति विधायक, संसद सदस्य और मंत्री बन सकता है तो उनके खिलाफ आरोपों को लेकर इतनी हायतौबा क्यों?

थॉमस के वकील के के.वेणुगोपाल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश एस.एच.कपाडिय़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष दी गई दलील का कोई जवाब मीडिया के महारथियों समेत किसी के पास है? वेणुगोपाल का कहना है कि ‘‘१५३ संसद सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं। इनमें से ७४ सांसदों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक आरोप हैं। इसके बावजूद वे महत्वपूर्ण पदों पर रह सकते हैं तब उनके मुवक्किल (पीजे थॉमस) क्यों नहीं? ‘‘वेणु गोपाल के तर्क ठोस हैं। इसे ही कहते हैं सही समय पर सही जगह चोट करना। थॉमस के विरुद्ध आरोप अपनी जगह हैं। उनकी सच्चाई का फैसला अदालत करेगी। लेकिन उपर्युक्त टिप्पणी हमें अभी भी चेत जाने को आगाह कर रही है। सरकार को विचार करना होगा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों, गंभीर अपराधों के आरोपियों और भ्रष्ट तत्वों को विधायिका से कैसे दूर रखा जा सकता है? राजनीतिक दलों का यह तर्क घिसा-पिटा, कालातीत और बेदम हो चला है कि जब तक किसी को अदालत दोषी करार नहीं दे देती वे उसे अपराधी कैसे मान सकते हैं। इसी तर्क की दम पर लालू प्रसाद यादव जैसे लोग चारा मामले में आरोपों के बावजूद सत्ता सुख भोगते रहे। इसी तर्क के कवच से शहाबुद्दीन जैसा अपराधी लोकतंत्र के सबसे पवित्र स्थान-संसद का सदस्य बन बैठा था। इसी तर्क को ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.करुणानिधि अपने चहेते पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा के बचाव में कर रहे हैं।

मुद्दा यह है कि आरोप लगने पर सरकारी कर्मचारी या अधिकारी सस्पैंड किया जा सकता है अत: वैसी ही व्यवस्था राजनीति के रथियों के लिए क्यों नहीं की जा सकती है? बात सिर्फ यह हो कि दो साल से अधिक सजा वाले कानूनी प्रावधान के तहत मुकदमा दर्ज होते ही व्यक्ति की चुनाव लडऩे की पात्रता निलंबित कर दी जाए। वह मतदान कर सकता है लेकिन चुनाव न लड़ सके। हमारी राजनीति में अपराधीकरण का जो विष फैला है वह उपर्युक्त उपाय मात्र से ७५ फीसदी साफ हो जाएगा। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त पिछले दो-चार माह में कम-से -कम एक दर्जन बार इस मुद्दे को उठा चुके हैं। उनकी मांग है कि जिसके विरुद्ध चार्जशीट अदालत में दाखिल हो चुकी हो उसे चुनाव लडऩे से अपात्र माना जाए। इस मांग में गलत और अनुचित क्या है? आरोप लगने पर शासकीय कर्मी सस्पैंड हो जाते हैं। अत: वही व्यवस्था नेतागिरी में भी लागू होनी चाहिए। फिर ऐसे चोट्टों के चुनाव नहीं लडऩे से हमारे लोकतंत्र और राज व्यवस्था पर कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा। मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा की जा रही मांग और थॉमस की ओर से वेणुगोपाल द्वारा दिये गये तर्क को अन्यथा नहीं लें। इसी में लोकतंत्र और राष्ट्र का हित है। इस समय कई देशों में मची उथल-पुथल से सबक लेकर ही कुछ कर लें। यह तय है कि अब तक हुई गलतियों को भविष्य माफ नहीं करेगा।

6 comments:

अभिषेक मिश्र said...

सार्थक पोस्ट. स्वागत.

केवल राम said...

आदरणीय Anil Bihari Shrivastava जी
पहली बार आपके ब्लॉग तक आना हुआ ...आपका लेखन बहुत सशक्त है और समाजोपयोगी भी ..आशा है आप निरंतरता बनाये रखेंगे ..इसी आशा के साथ ...शुभकामनायें

केवल राम said...

कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

Anonymous said...

इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

शुभाकॉंक्षी|
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
(देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
मोबाइल : 098285-02666

Sushil Bakliwal said...

जागरुकता कि दिशा में सार्थक प्रयास...

हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
http://najariya.blogspot.com/

संगीता पुरी said...

इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!