Monday, January 3, 2011

मोटे दिमाग वाले होते हैं वामपंथी

(अनिल बिहारी श्रीवास्तव)
यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन के अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष सामने रखा है कि दक्षिणपंथी या वामपंथी होना आपके दिमाग के आकार पर निर्भर करता है। उनके अनुसार राजनीतिक झुकाव को तय करने में दिमाग के आकार की अहम भूमिका होती है। अध्ययन के मुताबिक दिमाग के एमीगाडला लोब हिस्से से भावुक प्रतिक्रियाएं निकलती हैं। स्वयं को लिबरल और वामपंथी मानने वाले लोगों में एंटीरियर सिंगुलेट दक्षिणपंथी लोगों से मोटे पाये गये। कंजरवेटिव और दक्षिणपंथी लोगों में वामपंथियों की तुलना में दाहिने हिस्से में एमीगाडला लोब बड़े आकार का पाया गया। मोटे शब्दों में कहें कि जिनका दिमाग मोटा होता है वे वामपंथी विचारधारा के समर्थक होते हैं। हालांकि उक्त अध्ययन ९० लोगों पर केंद्रित था और अध्ययनकर्ताओं का निष्कर्ष कुछ तर्कों पर आधारित हो किन्तु इसके बाद भी इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अभी भी कमी है।

पिछले तीन-चार सौ सालों के दौरान विश्व में कम से कम आधा दर्जन प्रमुख राजनीतिक विचारधाराओं का उदय और उनका फैलाव देखा गया। इनमें वामपंथी विचारधारा प्रमुख है जो कालान्तर में अनेक देशों तक फैली। सोवियत संघ के विघटन से वामपंथी विचारधारा को गहरा आघात लगा। अनेक पुराने वाम देशों में अब इसके नामलेवा नहीं मिलते। लगभग आधा दर्जन देशों में यह अभी भी प्रभावी है लेकिन इसके भविष्य पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। आज अधिकांश लोग मूल रूप से वामपंथी अर्थात लेफ्टिस्ट और दक्षिण पंथी राइटिस्ट विचारधारा को जानते हैं। यह बात कितने लोग जानते हैं कि लेफ्टिस्ट और राइटिस्ट शब्दों का चलन कब तथा कहां शुरू हुआ? लगभग पूरी १९ वीं शताब्दी में फ्रांस लेफ्टिस्ट और राइटिस्ट विचारधारा में विभाजित रहा। गणतंत्र के समर्थकों को लेफ्टिस्ट (वामपंथी) और राजतंत्रीय व्यवस्था के समर्थकों को राइटिस्ट कहा जाता था। लेफ्ट विंग शब्द फ्रांसीसी क्रांति से आया। इस विचारधारा के मानने वाले अध्यक्षीय आसन के बायें ओर बैठते थे। कालांतर में इस सम्बोधन का उपयोग समाजवाद, साम्यवाद के लिए किया गया। कहीं-कहीं विरोधियों ने अराजकतावाद के लिए इसी सम्बोधन का उपयोग करने में झिझक नहीं दिखाई। जबकि, मूलत: सामाजिक लोकतंत्र और सामाजिक उदारवाद को व्यक्त करने वामपंथी या लेफ्टिस्ट शब्द का उपयोग किया जाता रहा है। इसको मानने वाले पूंजीवाद के विरोधी रहते रहे हैं।

दुनिया के अधिकांश हिस्सों से वामपंथ के पैर उखडऩे के बाद यह धारणा बनने लगी कि वामपंथ का एक रूप-साम्यवाद आज के विश्व में व्यावहारिक नहीं रहा। चीन जैसे साम्यवादी तीर्थ में व्यापक लोकतंत्र की मांग उठने लगी है। यही स्थिति म्यांमार और नार्थ कोरिया की बताई जा रही है। भारत में वामपंथी प्रभाव पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल तक सीमित रहा। साम्यवादी-वामपंथी आज केरल और पश्चिम बंगाल में वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। वामपंथ के समर्थक भारतीय माओवादियों के लिए सही सम्बोधन अराजकतावादी होगा। हैरानी होती है कि आज माओवादियों और साम्यवादियों के बीच टकराव हो रहा है, वहीं भारत के बुद्धिजीवी साम्यवादी तत्वों की माओवादियों के प्रति सहानुभूति महसूस की जाती है। पिछले दो-सवा दो सौ साल का इतिहास गवाह है कि तमाम अच्छाइयों के बाद भी वामपंथ में आंतरिक विरोधाभास है। यही द्वन्द्व इसे प्राकृतिक रूप से फैलने-पसरने से रोके रहा। हमारे देसी वामपंथियों के बारे में सिर्फ यही कहें कि वे वाम विचारधारा की लाश ढो रहे हैं। किसी ने वामपंथियों पर सटीक कटाक्ष किया, ‘‘भारत में बायें हाथ को उल्टा हाथ और दाहिने हाथ को सीधा हाथ कहा जाता है। ९९ प्रतिशत लोग सीधे हाथ का ही अधिक प्रयोग करते हैं। बायें अर्थात वाम विचार वालों का काम ही उल्टा होता है। अत: उनका दिमाग मोटा हो तो कोई क्या करेगा?’’

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