Thursday, January 27, 2011

सेना जैसी कार्रवाई हो भ्रष्ट तत्वों पर

--अनिल बिहारी श्रीवास्तव
सुकना भूमि घोटाले में थल सेना के पूर्व उप प्रमुख मनोनीत लेफ्टिनेंट जनरल पी.के. रथ को कोर्ट मार्शल ने दोषी करार देते हुए उनकी वरिष्ठता में दो साल की कटौती का आदेश दिया है। भ्रष्टाचार के मामलों पर लगातार चिंता व्यक्त कर रहे लोगों ने कोर्ट मार्शल के आदेश का स्वागत किया है। यह आदेश उन लोगों के लिए सबक हो सकता है जो पद के मद में नियम-कानूनों को अपनी जेब में रखने का भ्रम पाल लेते हैं और भ्रष्ट और अनैतिक कृत्यों में लिप्त हो जाते हैं। यह पहला मामला है जब इतने शीर्ष स्तर के सैन्य अधिकारी को भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया। जनरल कोर्ट मार्शल ने लेफ्टिनेंट जनरल रथ को तीन आरोपों में दोषी पाया है। इनमें पश्चिम बंगाल के सुकना सैन्य केंद्र से लगे भूखंड पर शिक्षण संस्थान बनाने के लिए निजी रीयल एस्टेट व्यापारी को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करना शामिल है। अन्य आरोपों में शिक्षण संस्थान के निर्माण के लिए गीतांजलि ट्रस्ट के समझौते पर हस्ताक्षर करना और इस बाबत पूर्वी कमान में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित नहीं करना शामिल है।
लेफ्टिनेंट जनरल रथ थल सेना के पूर्व उप मुख्य मनोनीत जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहे हैं। कोर्ट मार्शल ने अपने फैसले में रथ की दो वर्ष वरिष्ठता में कटौती, पेंशन की गणना में १५ वर्षों की सेवा में कमी का आदेश देते हुए कड़ी फटकार लगाई है। इस सजा को रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मिलने के बाद देखना यह है कि रथ का अगला कदम क्या होता है। वैसे लेफ्टिनेंट जनरल रथ की सिर्फ एक वर्ष की सेवा अवधि शेष रह गई है अत: यह मानें कि सेना से उनकी विदाई का समय आ गया है। देश में भ्रष्टाचार को लेकर इस समय सर्वत्र चिंता व्याप्त है। राजनीति से लेकर नौकरशाह बिरादरी तक भ्रष्टाचार की गंदगी में सने हुए लोग नजर आने लगे हैं। न्याय पालिका तक में भ्रष्टाचार के कैंसर के पहुंच जाने की बातें होने लगी हैं। भारतीय सेना को अब तक भ्रष्टाचार से काफी हद तक अछूता माना जाता रहा है लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल रथ के उदाहरण ने साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार का कैंसर हमारी सेना तक पहुंच चुका है। सेना की जिम्मेदारी राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करने की है। आंतरिक स्थिति पर कभी पुलिस और प्रशासन का नियंत्रण नहीं रह पाता तब सेना को ही मदद के लिए बुलाया जाता है। यह कल्पना रीढ़ की हड्डी में कंपकंपी पैदा कर देती है कि यदि सेना में ही भ्रष्ट तत्व पहुंच जाएंगे तो राष्ट्र कितने दिन गुलाम होने से बचा रह सकता है?
पिछले दिनों एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर रही है कि भ्रष्टाचार के आरोप में जिस शासकीय सेवक के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो गई हो उसे तत्काल बर्खास्त किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव के पीछे मकसद लंबी अदालती लड़ाई का लाभ लेने से भ्रष्ट शासकीय सेवकों को रोकना है। इस आशय के निर्णय पर अमल की राह में सबसे बड़ी रुकावट राजनीतिक बिरादरी के भ्रष्ट तत्व होंगे। पिछले कुछ समय से मुख्य चुनाव आयुक्त मांग कर रहे हैं कि जिन लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाए उन्हें चुनाव लडऩे से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। मुख्य चुनाव आयुक्त के इस सुझाव का सियासी बिरादरी से विरोध होना स्वाभाविक है। बहरहाल, यह समय केंद्र सरकार के लिए परीक्षा का है। भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोपों में घिरी सरकार को साबित करना है कि वह बेदाग है और उसके इरादे अच्छे हैं। यह उसी स्थिति में संभव होगा जब भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कड़े फैसले लिये जाएं। सेना का शीर्ष स्तर का एक अधिकारी दंडित किया जा सकता है। अत: भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों को दुरुस्त करने में कैसा संकोच?

No comments: