(अनिल बिहारी श्रीवास्तव)
यदि अदालत में यह बात साबित हो जाती है कि गत दिवस पुणे में शिवसेना के आह्वान पर बंद और विरोध प्रदर्शन के दौरान १३ बसों को आग लगाये जाने की घटना शिवसेना नेताओं के उकसावे का परिणाम थी, तब उन बसों का मूल्य तथा बंद के दौरान हुए अन्य नुकसान की भरपाई शिवसेना के नेताओं से कराई जानी चाहिए। महाराष्ट्र पुलिस ने शिवसेना के एक्जीक्यूटिव प्रेसीडेंट उद्धव ठाकरे के निज सहायक मिलिंद नरवेकर तथा विधान परिषद के सदस्य नीलम गोरहे के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की है। इन पर कानून एवं व्यवस्था की समस्या खड़ी करने का आरोप है। पुलिस ने नरवेकर और गोरहे की फोन वार्ता टेप की थी जिसमें ये दोनों शिवसेना नेता बंद के दौरान बसों और अन्य सरकारी संपत्तियों पर हमला कराने तथा मुंबई-पुणे हाई-वे पर यातायात अवरुध्द करने के षड्यंत्र पर बात कर रहे थे। उस दिन लोनावाला के निकट दो ट्रेनों को रोकने पर शिवसेना के कुछ कार्यकर्ता गिरफ्तार किये गये थे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नियंत्रण वाले पुणे नगर निगम ने एक प्रस्ताव पारित कर ऐतिहासिक लाल महल से छत्रपति शिवाजी के शिक्षक कोण्ददेव की प्रतिमा हटाने का फैसला लिया था। प्रतिमा हटा दी गई जिस पर भाजपा और शिवसेना भडक़ उठी। धरना, प्रदर्शन, बहिष्कार, रैली, सभाएं इत्यादि लोकतंत्र में बहुत आम र्हं। लेकिन पिछले कई वर्षों से यह बात देखी जा रही है कि प्रदर्शनों और बंद के आयोजनों के दौरान हिंसा एवं उपद्रव भडक़ उठते हैं। सरकारी और निजी संपत्तियां नष्ट की जाती हैं और भय का माहौल बना दिया जाता है। अपनी मांग जबरिया मनवाने और ताकत दिखाने के लिए उपद्रवों और सडक़ जाम को प्रभावी हथियार मान लिया गया है। उधर, वोटबैंक की राजनीति के चलते सत्तापक्ष कड़ी कार्रवाई के आदेश देने से बचता है। कड़वा सच यह है कि उपद्रवी और तोडफ़ोड़ की घटनाओं से निबटने की बजाय नपुंसकों की तरह उसे बर्दाश्त कर सरकार चलाने वालों ने उपद्रवीं तत्वों के हौसले बढ़ा दिये हैं। हमारे आम जीवन में बढ़ी अनुशासन की अनदेखी ने स्थिति और अधिक बिगाड़ दी है। तुरंत और प्रभावी न्याय व्यवस्था के अभाव ने मुश्किल और बढ़ाई है। विध्वंसकारी मानसिकता के लोग ट्रेनों को रोकने और उनमें आग लाने में झिझकते । हाल के वर्षों में ट्रेनों पर ऐसे दो हमले देखने में आए कुछ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश में बाबा साहेब अम्बेडकर की प्रतिमा एक विक्षिप्त व्यक्ति ने मामूली सी क्षतिग्रस्त कर दी थी। उसकी प्रतिक्रिया महाराष्ट्र में एक ट्रेन को रोककर उसे आग लगा दिये जाने के रूपमें मिली। लोगों को जातिवादी राजनीति में माहिर एक नेता ने उकसाया था। राजस्थान में पिछले गुर्जर आंदोलन के दौरान रेल्वे और अन्य सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया था। गुर्जरों के मौजूदा आंदोलन में भी रेल पटरियों पर धरना देकर सीधे राष्ट्र को चोट पहुंचाई गई है। इस तरह के धरनों और जाम के कारण आम आदमी को काफी तकलीफ हुई। राजस्थान पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। सवाल यह है कि आखिर कब तक हम बसों और ट्रेनों को आग लगाने, बस-ट्रेनों का आवागमन अवरुद्ध करने और अन्य निजी एवं सरकारी संपत्तियों को कब तक अनुशासनहीन, बिगड़ैल, उपद्रवी तत्वों का निशाना बनाने के दृश्यों को देखते रहेंगे? महाराष्ट्र पुलिस ने शिवसेना के विध्वंसकारी सोच वाले दो नेताओं को जिस तरह घेरा है वह सराहनीय है। राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों पर इसी तरह कानूनी शिकंजा जकड़ा जाना चाहिए। गुण्डागर्दी और विध्वंस की इजाजत लोकतंत्र नहीं देता।
Saturday, January 1, 2011
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