--अनिल बिहारी श्रीवास्तव
लीजिये, अब पेश है दिग्विजयी शोध की एक और रिपोर्ट! कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है कि दो राष्ट्र सिद्धांत के लिए पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना नहीं बल्कि वीर सावरकर जिम्मेदार थे, जिसे बाद में जिन्ना ने अपना लिया। दिग्विजय सिंह के इस बयान पर दो बातें तय हैं। एक-सभी जानते हैं कि इस बयान का उद्देश्य भाजपा, संघ अथवा हिंदु संगठनों को तिलमिला देने वाले प्रहार से अधिक एक-वर्ग विशेष तक कांग्रेस का मधुर संदेश पहुंचाना है। अब देखना यह चाहिए कि इस तरह की बातों का कितना राजनीतिक लाभ कांग्रेस को भविष्य में मिल पाएगा। दो-पिछला अनुभव बताता है कि दिग्विजय सिंह इस बार भी अपनी बात से टस-से-मस नहीं होंगे, भले ही आप इतिहास की कितनी ही किताबें और ग्रंथ लाकर उनके सामने पटक दें।
दिग्विजय सिंह के इस बयान पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाजपा ने कहा कि कांग्रेस महासचिव अब बौखला उठे हैं। बहरहाल, यहां इस बात पर विचार करने की जरूरत महसूस हो रही है कि आज दो राष्ट्र सिद्धांत की बात छेडऩे की क्या आवश्यकता थी? मुंबई हमलों और हिंदू आतंकवाद पर दिये गये पिछले बयानों की शृंखला में यह नई कड़ी जोडऩे का प्रयास किसको खुश करने के लिए किया गया है? जाहिर है कि दिग्विजय सिंह द्वारा जारी किये इस बेदागी सर्टिफिकेट से जिन्ना की आत्मा को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। पाकिस्तान में जारी अंदरुनी घमासान के बीच पाकिस्तानी के पास इतना वक्त नहीं है कि इस दिग्विजयी शोध पर नजर डालने की तकलीफ उठाये। सवाल यह भी है कि इस विशुद्ध सियासी वार के पीछे असल लक्ष्य क्या है? कह सकते हैं कि वीर सावरकर पर लक्ष्य साधने के पीछे कहीं न कहीं भावना मुस्लिम वोट पर कांग्रेस की पकड़ पुन: बनाने की है। वैसे विभाजन के छह दशक बाद जब पीढिय़ां बदल चुकी हैं कि यह जानने में कम ही लोगों की रुचि हो सकती है कि दो राष्ट्र सिद्धांत किसके दिमाग की उपज थी। इस बात में संदेह नहीं कि उस दौर में गुलामी से मुक्ति और आजादी का आगमन का अनुमान डेढ़-दो दशक पहले ही लोग लगाने लगे थे। भविष्य के नेतृत्व को लेकर ध्रुवीकरण की शुरूआत हो गई थी। कुछ प्रभावशाली लोगों को चिंता होने लगी थी कि आजाद ‘इंडिया’ का नेतृत्व कौन करेगा? बहुसंख्यक हिंदू या अल्पसंख्यक मुसलमान? ऐसा माना जाता है कि नेतृत्व में स्वयं और मुस्लिम समुदाय के लिए सीमित अवसरों की संभावनाओं के कारण मोहम्मद अली जिन्ना ने धर्म के आधार पर मुसलमानों के लिए अलग देश पर जोर दिया।
दरअसल, दो राष्ट्र सिद्धांत के लिए सिर्फ जिन्ना अथवा सावरकर जैसे हिंदू नेताओं को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। इसका बीज तो औरंगजेब जैसे बादशाह ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार डाल कर किया था। औरंगजेब ने मुगल शासन का इस्लामीकरण करके दोनों समुदायों के बीच संदेह और संशय शुरू किया था। कालान्तर में संदेह की खाई चौड़ी होती चली गई। अंग्रेजों ने अपने शासनकाल के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में उलझाये रखने के लिए जो कारनामे दिखाये उसका वर्णन इतिहास की किताबों में दर्ज है। बीसवीं सदी के पहले तीन दशकों के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों के बीच से अनेक ऐसे नेता सामने आए जिन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए अथक प्रयास किये। निश्चित रूप से पाकिस्तान का जन्म दो राष्ट्र सिद्धांत के कारण संभव हो सका। लेकिन बंटवारे की वह पीड़ा क्या लोग आज तक भूल पाए हैं। उस बंटवारे से जो नुकसान हुआ वह कल्पनाओं में सीमित नहीं किया जा सकता। आज उसी बात को छेडऩा गड़े मुर्दे उखाडऩे जैसी बात है। सावरकर पर आरोप मढ़ कर क्या हासिल होगा? जिन्ना को कोसकर क्षतिपूर्ति संभव नहीं है। ऐसी हरकतें कटुता बढ़ाती हैं। आज के भारत में समुदायों के बीच सद्भाव पर जोर दिया जाना चाहिए। यह बात वोटबैंक की राजनीति के घातक तीर चलाने वाले क्या कभी समझ पाएंगे?
Friday, January 28, 2011
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