--अनिल बिहारी श्रीवास्तव
सवाल सिर्फ यह है कि राष्ट्र ध्वज अगर अपने ही देश में नहीं फहराया जा सकता तब उसे और कहां फहराया जाए? श्रीनगर के लाल चौक पर २६ जनवरी, गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने और श्रीनगर मार्च के भाजपा के कार्यक्रम का जिस तरह विरोध किया गया तथा भाजपा कार्यकर्ताओं को श्रीनगर जाने से रोका जा रहा वह आश्चर्यजनक और शर्मनाक है। २६ जनवरी को लाल चौक पर तिरंगा फहराने के कार्यक्रम के पीछे भाजपा का राजनीतिक उद्देश्य हो सकता है लेकिन इस कार्यक्रम का विरोध कर कांग्रेस और जम्मू कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार ने स्वयं ही भाजपा के उद्देश्य की पूर्ति कर दी। तिरंगा फहराये जाने की घोषणा पर पहली प्रतिक्रिया जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की आई। उन्हें लगता है कि यह अनावश्यक काम है। उमर को भय अलगाववादियों और कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तानी पिट्टुओं के भडक़ उठने का है। वह अपनी आशंकाएं और भय व्यक्त करने से नहीं चूके। केंद्र सरकार को अपनी चिंता से अवगत करा दिया। उसके बाद से ही कांग्रेस उमर के सुर में सुर मिलाने लगी। भाजपा के ध्वजारोहण कार्यक्रम पर उमर जैसे राजनेता और अक्षम प्रशासक की चिंता समझी जा सकती है। हैरानी तो कांग्रेस द्वारा व्यक्त किये गये विरोध पर है। एक वाम नेता ने तक भाजपा के श्रीनगर मार्च का विरोध किया है। ताजा खबर यह है कि ध्वजारोहण कार्यक्रम के नाकाम करने जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार तथा केंद्र, दोनों ही सक्रिय हो गए हैं। जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा सील कर दी गई हैं। प्रमुख प्रवेश मार्गों पर तैनात जम्मू कश्मीर सश बल के जवान तैनात हैं जो वाहनों की तलाशी ले रहे हैं। आज के अखबारों में चूहे-बिल्ली के खेल जैसा समाचार प्रमुखता से छपा है। समाचार में कहा गया है कि कर्नाटक के भाजपा के लगभग ढाई सौ कार्यकर्ताओं को ले जा रही ट्रेन रद्द कर दी गई। भाजपा वालों को श्रीनगर जाने से रोकने के लिए ऐड़ी-चोटी एक कर दी गई है। वैसे इस सच को हमें स्वीकार करना चाहिए कि लाल चौक पर तिरंगा फहराये जाने के कार्यक्रम का विरोध और इसको लेकर की गई मोर्चा बंदी की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। उमर अब्दुल्ला ने स्वयं ही भाजपा को प्रचार लूटने का मौका दे दिया है उमर से ही सवाल करना चाहिए कि भाजपा के कार्यक्रम को लेकर उन्हें किस बात की चिंता खाये जा रही थी? अरे जनाब! सियासी मर्दानगी नाम की कोई बात भी होती है। भाजपा के कार्यक्रम का विरोध करके उमर अब्दुल्ला ने स्वयं साबित कर दिया कि उनके दिमाग पर अलगाववादियों का खौफ किस हद तक है? भाजपा के कार्यक्रम को असफल करके आप आतंकवादियों और अलगाववादियों के हौसले ही बढ़ा रहा है। इससे संदेश यह जाएगा कि कश्मीर घाटी में सरकार, प्रशासन और पुलिस सिर्फ नाम के लिए हैं, वहां होता वही है जो अलगाववादी और आतंकवादी चाहते हैं। यह कैसी विडम्बना है कि जिस क्षेत्र में पिछले ६ दशकों के दौरान राष्ट्र के लाखों, करोड़ रुपये लग गए और जिस क्षेत्र की रक्षा करते हजारों लोग शहीद हो चुके हैं, वहीं तमाम तरह की अड़चनें हैं। शेष भारत का कोई भी नागरिक कश्मीर घाटी में अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता परंतु वास्तविक नियंत्रण रेखा और सीमा पार से पाकिस्तानी घुस आते और गड़बड़ी फैलाते रहते हैं। उमर अब्दुल्ला से यह सवाल करने का हक राष्ट्रवादियों को है कि आखिर क्यों वह राष्ट्रवाद के वैचारिक आंदोलन को अलगाववाद के हाथों पराजित देखना चाहते हैं? लालचौक पर तिरंगा फहराने के कार्यक्रम में कुछ गलत नहीं था? उमर की उछल कूद ने उसे अनावश्यक रूप से संवेदनशील बना दिया।
Monday, January 24, 2011
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