(-अनिल बिहारी श्रीवास्तव)
बड़ी हैरानी हुई, जब कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा असम में दिये गये बयान एक को पढ़ा। दिग्विजय सिंह ने इस विवादास्पद दावे को खारिज किया है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण असम की आबादी में असंतुलन आ गया है। बकौल दिग्विजय, ‘‘असम में १९९१ में जनगणना हुई ही नहीं थी। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का अनुपात १९८१ और २००१ की जनगणना के अनुसार है।’’ वह कहते हैं कि असम की स्थिति अन्य राज्यों से बहुत अधिक भिन्न नहीं है। कांग्रेस महासचिव ने यह भी कहा, कोई भी बांग्लादेशी जो भारत आया और बिना उचित औपचारिकताओं को पूरा किये यहां रह रहा है उसे अवैध आप्रवासी मानना होगा। दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी आप्रवासियों के बीच हिन्दू और मुस्लिम जैसा भेद करने की कोशिश कर रही है।’’ कांग्रेस महासचिव के बयान पर आगे कुछ कहने से पहले जरुरी यह है कि असम में अवैध आप्रवासियों के संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के विचारों में आए ताजा बदलाव पर नजर डाली जाये। भाजपा ने सोमवार को चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की है कि असम विधानसभा के चुनाव से पूर्व राज्य की मतदाता सूचियों से बांग्लादेश से घुसपैठ कर आ बसे अवैध आप्रवासियों के नाम हटाये जाएं। भाजपा की यह मांग बहुत जायज है लेकिन भाजपा में असम के राजनीतिक मामलों को देखने वाले प्रभारी विजय गोयल ने अपनी टिप्पणी से कांग्रेस को स्थिति का लाभ उठाने और पलटवार का अवसर दे दिया। गोयल का कहना है कि मतदाता सूची में हिन्दू बांग्लादेशियों के नाम पर भाजपा को आपत्ति नहीं है। भाजपा की आपत्ति मुस्लिम बांग्लादेशियों के नामों पर है।
बांग्लादेश से घुसपैठ, घुसपैठियों को यहां मिल रहे संरक्षण और अब उनको लेकर चल रही वोट बैंक की राजनीति गंभीर विषय है। असम में कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में वामदलों पर बांग्लादेशियों को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं। राजनीतिक स्वार्थों के चलते असम और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार में बैठे लोग सियासी अंधों जैसे बने रहे। आज बांग्लादेश से लगे असम के कई इलाकों में आबादी में असंतुलन आ गया है। इस असंतुलन को कोई जनगणना नहीं होने का नाम लेकर स्वीकार नहीं करता है। तब वह राष्ट्र और हमारी आने वाली पीढियों के साथ गद्दारी कर रहा है। इसी तरह धर्म के आधार पर अवैध आप्रवासियों के बीच भेद करना भी क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिए राष्ट्र के साथ विश्वासघात जैसी बात है। अवैध आप्रवासियों के प्रति ऐसी नरमी, उन्हें संरक्षण दिये जाने और उनके आगे राष्ट्रहित को हाशिये में डालने का निकृष्टतम उदाहरण हमारे राजनीतिक दल और राजनेताओं ने पेश किया है। संभवत: समूची दुनिया में कहीं और ऐसे उदाहरण देखने में नहीं आते होंगे। इस समय लगभग ढाई करोड़ बांग्लादेशी भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं। इनके कारण हमारे संसाधनों पर भारी दबाव पड़ रहा है। हमारे सामाजिक ताने-बाने पर खतरा मंडरा रहा है। आंतरिक सुरक्षा पर खतरा महसूस होने लगा है।
पिछले चालीस सालों से बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की समस्या पर चिंता व्यक्त की जा रही है। एक समूची पीढ़ी बूढ़ी हो गई लेकिन निकम्मी सरकारें और धूर्त राजनेता इस घुसपैठ को रोक नहीं पाये। राष्ट्र के साथ ऐसी मक्कारी पर भला किसे कोफ्त नहीं होगी? एक विचित्र बात यह देखी गई कि जब कभी किसी ने बांग्लादेशियों की घुसपैठ का मामला उठाया, वोट के सौदागरों ने इसे भारतीय मूल के बंगाली मुसलमानों के विरुद्ध साजिश नाम दे डाला। यह खेल रुकने का नाम नहीं ले रहा। प्रत्येक विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पूर्व अवैध आप्रवासियों का मुद्दा जोड़ पकड़ लेता है। इस बार भी वही नजारा देखने में आ रहा। कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही सवाल किया जा सकता है, ‘‘आखिर घुसपैठियों की आड़ में वे कब तक राजनीति की रोटियां सेंकेंगी ? अवैध आप्रवासियों के नाम मतदाता सूचियों से हटाने मात्र से समस्या का हल नहीं निकलेगा। टुच्ची राजनीति छोडक़र इन दोनों राजनीतिक दलों को चाहिए कि घुसपैठियों को पहचान कर उन्हें वापस उनके देश में खदेडऩे के उपायों पर विचार करें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment