--अनिल बिहारी श्रीवास्तव
दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अहमद बुखारी और जमीयत-ए-उलेमा हिंद के नेता मौलाना महमूद मदनी इस समय दारुल ऊलूम के नये वाइस चांसलर मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी से नाराज हैं। देवबंद के नये चीफ ने गत दिवस गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा था कि वह गुजरात के आर्थिक विकास से काफी इंप्रेस हैं। उन्होंने गुजरात के दंगा पीडि़तों के लिए चलाये जा रहे राहत कार्यों पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि ‘‘सरकार और गुजरात के लोग इस मामले में काफी काम कर रहे हैं।’’ नि:संदेह २००२ के गुजरात दंगों से इस राज्य और स्वयं मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि देश-विदेश में प्रभावित हुई थी लेकिन पिछले आठ सालों में राज्य में कानून एवं व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार को जो सफलताएं मिलीं तथा गुजरात में जिस तेजी से आर्थिक विकास हुआ वह मोदी विरोधियों के लिए तक आश्चर्य का विषय है। मोदी की छवि एक सख्त प्रशासन, दूरदर्शी राजनेता और विकास का स्पष्ट खाका अपने मस्तिष्क में रखने वाले व्यक्ति के रूप में उभरी है। भारतीय कारपोरेट जगत ने मोदी सरकार के कामकाज के तरीके को सराहा है। कम-से-कम चार शीर्ष उद्योगपति खुलेआम कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य राजनेता हैं। विश्वास कर सकते हैं कि गुजरात का आम मुसलमान आज नरेंद्र मोदी के शासन में स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगा है । आठ साल पूर्व हुए दंगों के लिए मोदी को ही जिम्मेदार बताया जाता रहा है। हर समझदार और जिम्मेदार व्यक्ति दंगों के उस घाव को भूल जाना चाहता है। स्वयं देवबंद के वीसी वस्तानवी कह चुके हैं। ‘‘गुजरात दंगा मुद्दा आठ साल पुराना है और अब हमें आगे देखना चाहिए।’’
इन तथ्यों के बाद भी एक वर्ग रह-रहकर पुराने जख्मों को कुरेदने की कोशिश करता है। अहमद बुखारी और वस्तानवी की जानकारियों और सोच में अंतर स्वाभाविक है। कई विषयों पर उनका नजरिया भिन्न है। ऐसी स्थिति में इस बात पर विचार करना उचित होगा कि गुजरात में जो हुआ और आज वहां जो माहौल है उसके विषय में बुखारी और वस्तानवी में से किस के पास बेहतर जानकारी होगी। यहां धर्म की बात कतई नहीं की जा रही है। चर्चा का विषय विशुद्ध व्यावहारिक पक्ष है। इस दृष्टि से वस्तानवी का पलड़ा अवश्य भारी लगता है। सूरत के रहने वाले वस्तानवी एमबीए ग्रेजुएट हैं। यही तथ्य साबित करता है कि गुजरात के सच को उनसे बेहतर ढंग से उनके आलोचक नहीं देख पाए होंगे। फिर वस्तानवी राजनीति नहीं कर रहे। दूसरी ओर अहमद बुखारी एक पवित्र और ऐतिहासिक धर्मस्थल से अनेक बार ऐसी टिप्पणियां करते आए हैं जिन्हें राजनीतिक बयान कहा जाएगा। मौलाना महमूद मदनी राज्यसभा एमपी हैं ही। एक फर्क यह है कि मदनी और वस्तानवी को उदारवादी कहा जा सकता है। इसके विपरीत अहमद बुखारी के व्यवहार से दर्जनों बार महसूस हुआ मानो वे टकराव और ललकारने की मुद्रा में रहते हैं। नरेंद्र मोदी के प्रशासन की प्रशंसा का मुद्दा ही लें अहमद बुखारी ने दारूल उलूम के वाइस चांसलर वस्तानवी से इस मामले में माफी मांगने के लिए कह दिया। ऐसा लगता है कि वस्तानवी के यथार्थवादी नजरिये को अहमद बुखारी और उनसे सहमत लोग समझना नहीं चाहते। इतिहास गवाह है कि तरक्की पसंद लोग अतीत से चिपके रहने और किसी भी रूप बदला लेने या दिल में गांठ बांधे रखने में विश्वास नहीं रखते। ऐसे लोग और समाज आगे बढ़ जाते हैं। वस्तानवी मुस्लिम युवकों के लिए आधुनिक शिक्षा पर जोर देकर यह संदेश दे दिया है कि वह मुस्लिम समुदाय को अन्य समुदायों के बराबर लाने का स्वप्र संजोये हुए हैं। बुखारी साहब बतायें कि मुसलमानों की प्रगति के लिए उन्होंने स्वयं कितने प्रयास किये? आज दौर उदार आधुनिकता का है। इसमें कड़वाहट भूलनी होगी, वह चाहे अतीत की हो या बिल्कुल ताजा।
Monday, January 24, 2011
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