Friday, January 28, 2011

ईमानदारी की कीमत

--अनिल बिहारी श्रीवास्तव
मालेगांव के अपर जिलाधिकारी यशवंत सोनावणे को तेल माफिया द्वारा जिंदा जला दिये जाने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठा है कि आखिर कब तक इस देश में ईमानदार अधिकारियों को अपनी जान से हाथ धोते रहना पड़ेगा? कब सरकार बेईमानों से निबटने के लिए कानूनों को सख्त करने और ईमानदार अधिकारियों की हत्या करने वालों को फांसी की सजा सुनिश्चित कर पाएगी? सोनावणे को मंगलवार को मनमाड़ के तेल माफिया पोपट शिन्दे और उसके साथियों ने कैरोसीन डालकर जिंदा जला दिया था। प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार सोनावणे उस तेल माफिया के कारनामों की वीडियो शूट कर रहे थे। महाराष्ट्र में पेट्रोलियम उत्पादों में मिलावट कर हर दिन लाखों रुपयों की कमाई करने वाले तेल माफिया को काफी ताकतवर और खतरनाक माना जाता है। यह तय माना जा रहा है कि तेल माफिया के कारनामों की महाराष्ट्र सरकार को पूरी जानकारी थी। लेकिन सरकार इनसे निबटने की बजाय अब तक सोती रही। सोनावणे की हत्या के चलते आम लोगों तथा शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों में गुस्सा भडक़ गया है। अत: इसके बाद महाराष्ट्र सरकार को जागना ही था। वह जागी। खबर है कि राज्य में २०० स्थानों पर छापे मारे गये तथा १८० लोगों को हिरासत में ले लिया गया है। इस घटना से समाजसेवी अण्णा हजारे इतना नाराज हैं कि उन्होंने अपना मौनव्रत तोडक़र दोषियों को सरेआम फांसी देने की मांग की है। अण्णा हजारे जैसी हस्ती सोनावणे के हत्यारों को फांसी देने की मांग कर रहे हैं। इसी तथ्य से घटना को लेकर उनकी और आम लोगों की नाराजगी को समझा जा सकता है। प्रश्न यह है कि क्या सोनावणे के हत्यारों को फांसी देना संभव हो पाएगा? अनुभव इस तरह की किसी संभावना से इंकार करता है। लंबी न्याय प्रक्रिया और आजकल चल निकला ‘रेयरेस्ट इन रेयर’ के पहाड़े ने कितने ही हत्यारों को फांसी से बचा रखा है। एन.एच.आई.ए. के प्रोजेक्ट इंजीनियर सत्येंद्र दुबे और इंडियन आयल मार्केटिंग आफीसर एस.मंजूनाथन को अपनी ईमानदारी के कारण जान गंवानी पड़ी। दुबे की हत्या के मामले में तीन लोग दोषी पाये गये लेकिन उन्हें उम्र कैद की सजा हुई। वे फांसी से बच गये। मंजूनाथन की हत्या के दोषी पवन कुमार उर्फ उर्फ मोनू मित्तल को फांसी की सजा सुनाई लेकिन उसे फांसी पर लटकाये जाने के आसार कम हैं। रेयरेस्ट आफ रेयर का पहाड़ा उसे भी फांसी से बचा सकता है। पहले ही कितने ही हत्यारे दोषी ठहराये जा चुके हैं। उन्हें मृत्युदण्ड सुनाया गया। कानूनी तिकड़मों और अपीलों, क्षमायाचना अर्जी की आड़ में उन्हें फांसी से बचाया जा रहा है। जिस देश में सरकार हत्यारों को उनके अपराध के अनुसार सजा सुनिश्चित कर पा रही हो वहां हत्यारों, माफिया, अपराधी तत्वों और आतंकवादियों के हौसले बुलंद होंगे ही। मरने वाला अपनी जान से जाता है। जबकि लोगों की रक्षा और उन्हें न्याय दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। लेकिन हमारे यहां अपराध के अनुरूप कितनी बार न्याय सुनिश्चित हो पाया है। सोनावणे के हत्यारों को फांसी से कम सजा स्वीकार नहीं की जा सकती। वे पेट्रोलियम उत्पादों में मिलावट कर देशवासियों और राष्ट्र के साथ धोखा कर रहे थे। पकड़े जाने के भय से उन्होंने प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी को जिंदा जला दिया। इस जघन्य कृत्य के दौरान उन्हें एक पल के लिए कानून या सजा का भय नहीं हुआ? वैसे ही देश में जागरूक और ईमानदार लोग काफी कम हो गये हैं। प्रशासन में ईमानदारी दुर्लभ है। इन इने-गिने ईमानदारों को बचाने और इनका मनोबल बढ़ाने के लिए जरुरी है कि ईमानदारों को ललकारने वालों पर पूरी ताकत से हमला किया जाए। सोनावणे की आत्मा को शांति सही न्याय होने पर ही मिलेगी। सोनावणे के हत्यारों को फांसी पर लटकता देखना जरूरी है। ऐसी सजा ही कानून का खौफ पैदा कर पाएगी।

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