(अनिल बिहारी श्रीवास्तव)
अंतरराष्ट्रीय संरक्षण संघ की रेड लिस्ट के अनुसार भारत में पक्षियों की ८२ प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। पक्षियों की लगभग सवा बारह सौ प्रजातियां इस देश में पाई जाती हैं। जिन पक्षी प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बताया जा रहा है उनमें सफेद सिर वाली बतख, कैरिना, स्कल, चुलाटा, ग्रेड इंडियन बस्टर्ड, बेंगाल फ्लोरिकन, लेजर फ्लोरिकन और जिप्स इंडिकस प्रजातियां शामिल हैं। इनमें से पक्षियों की कुछ प्रजातियां देखने को भी नहीं मिलतीं। कभी किसी का ध्यान इस बात पर नहीं जा रहा है कि खतरा पक्षियों अकेले पर नहीं मंडरा रहा है। पक्षी या वन्य जीवों का अस्तित्व खतरे में है तो यह तय मानें कि मनुष्य का भविष्य भी सुरक्षित नहीं है। पिछले दिनों कम-से-कम चार बड़े अखबारों में पक्षियों की घटती संख्या पर आंखें खोल देने वाले लेख प्रकाशित किये थे। तथ्यों के आधार पर बताया गया था कि आज हमारे आसपास दिखते रहे कौये, गिद्ध, गोरैया चिडिय़ा, तोते और फाख्ता अचानक बहुत कम हो गये हैं। यहां गिद्धों की संख्या में इतनी गिरावट आई है कि लंदन तक में उसको लेकर चिंता व्यक्त की गई। अब पितृपक्ष में कौये देख लेना भाग्य की बात हो गई है। तोतों के झुण्ड आकाश में कहां दिखाई देते हैं? बगुलों को मांस प्रेमियों से खतरा बढ़ा है। सबसे बड़ी बात हमारे घरों के आसपास फुदकने वाली नन्हीं चिरैया-गोरैया तक काफी कम हो गई हैं। गोरैया उन इने-गिने पक्षियों में से एक है जिसे मनुष्य बस्तियों में मनुष्यों के बीच फुदकते देखा जाता रहा है। कितने लोगों ने महसूस किया कि अब पहले जैसे गोरैया नहीं दिखतीं।
अंतरराष्ट्रीय संरक्षण संघ ने पक्षियों के विलुप्त होने के लिए जो कारण गिनाये हैं उनमें जंगलों की तेजी से कटाई, पक्षियों का शिकार, पक्षियों के प्राकृतिक आवासों में बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप तथा कृषि बागवानी में कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग शामिल है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने व्यापक अध्ययन के बाद उन कारणों को गिनाया जो पक्षियों की हत्या के लिए जिम्मेदार पाए गए। बीस वर्षों तक किये गये अध्ययन के अनुसार कांच की खिड़कियों और दरवाजों से टकराकर हर साल १० से लेकर ९० करोड़ पक्षी मर जाते हैं। पश्चिमी देशों में बिल्ली पालने का शौक बहुत देखा जाता है। हर साल ७० लाख पक्षियों को पालतू बिल्लियां मार डालती हैं। विश्व भर के हाइवेज पर ५ से १० करोड़ पक्षी कारों ट्रकों की चपेट में आकर मारे जाते हैं। विद्युत पारेषण लाइनें, कृषि में कीटनाशकों के उपयोग, नगरों बस्तियों में विकास के लिए वृक्षों की कटाई, टेलीकॉम के संचार टावरों, वाहनों और कारखानों के कारण बढ़ रहे प्रदूषण, अवैध शिकार, बिजली लाइनों और व्यावसायिक मत्स्य दोहन कुछ ऐसे प्रमुख कारण हैं जो हर साल करोड़ों पक्षियों का सफाया कर रहे हैं।
पक्षियों के साथ समस्या यह है कि मनुष्यों में बहुत थोड़े लोगों को ही परिस्थितिकी असंतुलन मेंं पक्षियों की भूमिका का महत्व मालूम है। सरकार चलाने और चलवाने लोगों को पक्षियों पर संकट की परवाह ही नहीं है। थोड़ी सी सक्रियता और सख्ती से पक्षियों को बेमौत मरने से बचाया जा सकता है। शहरीकरण में आज खड़े हो रहे कांक्रीट जंगलों के बीच एक पल के लिए पक्षियों के विषय में विचार होना चाहिए। आवासीय परिसरों में उद्यान अनिवार्य हो तथा कम से कम पांच बड़े वृक्ष लगाने के स्पष्ट निर्देश हों। बहुमंजिली इमारतों, अपार्टमेंट के चारों ओर वृक्षारोपण करने के साथ ही कुछ ऊंचाई तक ऐसी दीवार बनाई जाए जिसमें पक्षियों को घोंसले बनाने के लिए छोटे-छोटे चैम्बर हों। दरअसल, बच्चों में पशु -पक्षियों के प्रति प्रेम की भावना को बढ़ा कर इन मूक प्राणियों के संरक्षण में योगदान दिया जा सकता है। आप अपना घर बनाने के लिए वन्य जीवों और पक्षियों के प्राकृतिक आवास उजाड़ते जा रहे हैं। इससे परिस्थितिकी डगमगाने की ओर है। यह तय मानें कि इसका मानवीय जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। आज उनकी तो कल हमारी बारी है।
Monday, January 10, 2011
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