-- अनिल बिहारी श्रीवास्तव
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर दक्षिण दिल्ली के जंगपुरा में नूर मस्जिद की जमीन को दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा अपने कब्जे में लिये जाने को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों की प्रतिक्रिया कुछ हद तक स्वाभाविक मानी जा सकती है लेकिन इस मुद्दे पर कतिपय राजनेताओं की उछलकूद आश्चर्यजनक है। यह विश्वास और अधिक मजबूत हुआ है कि हमारे कुछ राजनेताओं को वोट बैंक की राजनीति से हटकर सूझता ही नहीं है। वे लोगों की भावनाओं का शोषण करते समय एक पल के लिए विचार नहीं करते कि देश में कानून का शासन नाम की कोई चीज है, उनके व्यवहार से कानून एवं व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है और साम्प्रदायिक उन्माद फैल सकता है। डीडीए ने गत १२ जनवरी को उस जमीन पर बने निर्माण को ध्वस्त कर दिया था। यह एक अलग बात है कि इस कार्रवाई के कुछ घण्टों बाद ही, रातों रात उस भूखण्ड पर अस्थायी मस्जिद खड़ी कर दी गई और नूर मस्जिद नाम से एक बोर्ड लगा दिया गया। वहां तैनात पुलिस वाले कहते है कि उन्होंने ऐसा करने से लोगों को रोका था लेकिन वे नहीं माने। कितनी हैरानी की बात है कि लोग नही माने तो पुलिस वाले चुपचाप उन्हें देखते रहे। जाहिर है कि इस मामले में राजनेताओं की दिलचस्पी को देखते हुए दिल्ली विकास प्राधिकरण और पुलिस ने भी सब चलता है वाला रवैया अपना लिया होगा।
ऐसा कहा जा रहा है कि वह धार्मिक स्थल लगभग ३० वर्षो से वहां था। लेकिन इस बारे में कितने लोग मुंह खोल रहे है कि वह निर्माण वैध था अथवा अवैध? गत शुक्रवार को दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी ढहा दिये गए ढांचा स्थल पर नमाज अता की। उसके साथ मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों का वहां जाने की वजह समझ में आती है। प्रश्न यह है कि समाजवादी पार्टी के अगुआ मुलायम सिंह यादव उस समय वहां क्या कर रहे थे? यदि संवेदनशील मामलों में राजनीति में माहिर मुलायम कही धमक पड़ें ऐसी स्थिति में भला अन्य राजनेता चुप कैसे बैठेंगे? राजद के विधायक शोएब इकबाल भी ढहाए गए ढांचे की जगह पर गए और नमाज अता की। समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमरसिंह के साथ फिल्मी दुनिया से राजनीति में पदार्पण करने वाली सुंदरी जयाप्रदा आ धमकी। स्थानीय कांग्रेस विधायक तरविंदर सिंह मरवाह को पहुंचना ही था। आखिर मामला वोट बैंक का जो है।
इन घटनाक्रमों के बीच एक नई और साहसिक बात यह हुई कि जंगपुरा रेजिडेंटस एसोसिएशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की मांग की है। यहां शेष राजनेताओं की बात करके उनका अनावश्यक रूप महत्व नहीं बढ़ाना चाहते लेकिन मुलायम सिंह यादव आखिर कब क्षुद्र स्वार्थो के लिए स्तरहीन राजनीति से मुक्त हो पाएंगे? मुलायम सिंह यादव को यह भ्रम हो गया है कि अपने पुराने सियासी हथकंडों के बूते वह उन मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल हो जाएंगे जो पिछले चुनावों मे सपा को ठेंगा दिखा चुके हैं। लंबी राजनीतिक पारी के बावजूद उनका कुलाटी खाना जारी है। मुलायम ऐसा कोई मौका नही छोडऩा चाहते जिससे वह मुस्लिम मतदाताओं के प्रति अपनी वफादारी साबित कर सकें। वैसे उन का पी.आर. कमजोर है। उन्हें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उनके पुन: बदलते व्यवहार और हथकंडों पर आम आदमी क्या सोच रहा है। मुलायम की गिरगिटिया राजनीति से मुस्लिम मतदाता परिचित हो चुका है।
Tuesday, January 18, 2011
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